Dev Diwali 2019: कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्यों मनाई जाती है देव दिवाली, जानें पौराणिक कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
देव दिवाली 2019 (Photo Credits: Facebook)

Dev Diwali 2019: देव दीपावली एक प्रसिद्ध उत्सव है जो हर साल पवित्र शहर वाराणसी में मनाया जाता है. देव दीपावली, को देव दिवाली के रूप में भी जाना जाता है. यह त्योहार कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव ने दानव त्रिपुरासुर को मारकर देवताओं को उससे मुक्त कराया था. भगवान शिव की जीत के बाद देवताओं ने दीप जलाकर और दान कर खुशी व्यक्त की थी. भगवान शिव की जीत के उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है. इसे त्रिपुरोत्सव (Tripurotsav) या त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima) के रूप में भी जाना जाता है. देव दीपावली पर भक्त दिन और शाम को दीपदान करने के बाद पवित्र गंगा नदी में डूबकी लगाते हैं. इस दिन शाम को गंगा के तट पर सभी घाटों की सीढ़ियाँ लाखों दीपों से जगमगा उठती हैं. गंगा के घाट ही नहीं बल्कि बनारस के सभी मंदिरों में लाखों दीए जलाते हैं.

इस साल देव दीपावली 12 नवंबर को मनाई जा रही है. ये त्योहार हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन दिवाली के त्योहार के 15 दिन बाद मनाया जाता है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं, जिस वजह से कार्तिक पूर्णिमा के पूरे महीने को काफी पवित्र माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन पितरों के निमित्त दान-पुण्य करने से पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिलती है. इसलिए इस दिन बड़ी संख्या में पितर तर्पण भी किया जाता है. साथ ही इस दिन स्नान, अर्घ्य, जप-तप, पूजन, कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से पापों से मुक्ति मिलती है.

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तिथि और शुभ मुहूर्त:

कार्तिक पूर्णिमा तिथि- 12 नवंबर 2019.

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 11 नवंबर 2019 को शाम 06.02 बजे से,

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 12 नवंबर 2019 की शाम 07.04 बजे तक.

पौराणिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम के एक राक्षस ने पुरे देवतागण को परेशान कर रखा था, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर देवातों को उससे छुटकारा दिलाया. तारकासुर के तीन बेटे थे तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. अपने पिता की मौत से तीनों को बहुत गुस्सा आया. तीनों ने मिलकर ब्रम्हाजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की. ब्रम्हाजी उनकी तपस्या से खुश हुए और उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा. उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा.

तीनों भाईयों ने सोच-विचार कर ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर पृथ्वी और आकाश में घूम सकें. एक हजार साल बाद जब हम तीनों भाई मिलें तो हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं. उन्होंने कहा कि जो देवता इन तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, उसी के हाथों हमारी मृत्यु हो. ब्राह्मा जी से इस वरदान को प्राप्त करके तीनों बेहद खुश हुए. वरदान के अनुसार, तारकक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया. इस वरदान का तीनों गलत फायदा उठाने लगे और सभी देवताओं को परेशान करने लगे. परेशान देवता मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव ने इन तीनों असुरों का वध किया. त्रिपुरासुर के वध के कारण शिव जी को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. उन्होंने त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा को किया था, इसलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.