Dev Deepawali 2019: इस साल दिवाली (Diwali) के पावन अवसर पर अयोध्या (Ayodhya) नगरी को साढ़े पांच लाख दीयों की रोशनी से रोशन कर भव्य तरीके से दीपावली (Deepawali) का उत्सव मनाया गया. अब दिवाली के ठीक 15 दिन बाद भगवान शिव (Lord Shiva) की नगरी काशी (Kashi) में धूमधाम से देव दीपावली (Dev Deepawali) मनाने की तैयारियां जोरों पर है. दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक महीने की पूर्णिमा (Kartik Purnima) तिथि पर देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस साल देव दीपावली का यह पावन त्योहार 12 नवंबर 2019 (मंगलवार) के दिन मनाया जाएगा. बनारस में इस दिन एक खास किस्म को रौनक देखने को मिलती है और पूरी काशी नगरी दीयों की रोशनी से गुलजार हो जाती है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर (Tripurasur) नामक दानव का वध किया था, जिसके मारे जाने पर देवताओं ने दीपक जलाकर विजय दिवस मनाया था. इस साल बनारस (Varanasi) के मनकामेश्वर घाट पर तीन लाख दीये जलाए जाएंगे, जबकि कुड़ियाघाट पर 5100 दीये प्रज्जवलित किए जाएंगे.
काशी के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में लोग अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार, देव दीपावली का त्योहार मनाते हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर काशी में क्यों धूमधाम से मनाई जाती है देव दीपावली, इसका महत्व और शुभ मुहूर्त क्या है.
देव दीपावली शुभ मुहूर्त
देव दीपावली तिथि- 12 नवंबर 2019 (मंगलवार)
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 11 नवंबर 2019 की शाम 06.02 बजे से,
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 12 नवंबर 2019 शाम 07.04 बजे तक.
प्रदोष काल- शाम 05.11 बजे से शाम 07.48 बजे तक. यह भी पढ़ें: Kartik Purnima 2019: कार्तिक पूर्णिमा कब है? इस दिन गंगा स्नान और दीपदान से नष्ट होते हैं सारे पाप, जानें इसका महत्व
देव दीपावली से जुड़ी पौराणिक कथा
एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर ने भगवान ब्रह्ना की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त करके खुद को अमर समझने लगा. वरदान प्राप्ति के बाद त्रिपुरासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और उन्हें स्वर्ग लोक से बाहर निकाल दिया. त्रिपुरासुर के आतंक से बचने के लिए सभी देवता मदद मांगने के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचे. देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिए भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया, जिस दिन उन्होंने त्रिपुरासुर का वध किया था उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी. त्रिपुरासुर का वध हो जाने पर देवताओं ने खुशी जाहिर की. शिव की नगरी काशी में दीये जलाए और दीप दान किया. कहा जाता है कि तभी से काशी में कार्तिक पूर्णिमा को धूमधाम से देव दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है.
गौरतलब है कि देव दीपावली पर पूरी काशी नगरी, गंगा घाट असंख्य दीयों और रंग-बिरंगी लाइटों की रोशनी से नहा उठते हैं. रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट और वरुणा नदी के तट और घाटों पर स्थित देवालय, महल, भवन, मठ और आश्रम दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं. शाम के समय घाट की सीढियों पर मिट्टी के असंख्य दीये जलाए जाते हैं और दीप दान करके देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है.