Children's Day 2019 Bal Diwas: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वैसे तो उनकी शिक्षा-दीक्षा विदेशों में हुई थी, मगर गांधीजी (Gandhiji) के साथ राजनीति की मुख्य धारा से जुड़ने के बाद वह स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े. आजादी (Azadi) के बाद वे देश के प्रधानमंत्री बनकर देश सेवा में लिप्त हो गये. प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इतने व्यस्त जीवन में उनके भीतर बाल-प्रेम की भावना कब और कैसे प्रस्फुटित हुई, जिसने उन्हें 'चाचा नेहरू' रूप में इतना लोकप्रिय बना दिया कि आज की पीढ़ी के बीच भी वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री से ज्यादा 'चाचा नेहरू' के नाम से ही जाने जाते हैं.
पं. जवाहरलाल नेहरू मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) की तीन संतानों में सबसे बड़े थे. उनसे छोटी उनकी दो बहनें विजया पंडित और कृष्णा पंडित थी. दो छोटी बहनों के इकलौते बड़े भाई होने के नाते उन्हें अपनी बहनों से बहुत प्रेम था, उन्होंने बड़े भाई की भूमिका को बड़ी शिद्दत से जीया. कमला नेहरू से शादी के बाद उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी (Indira Priyadarshini) जैसी बेटी मिली, जिसे वे अपनी जान से ज्यादा स्नेह करते थे.
तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे इंदिरा प्रियदर्शिनी के लिए वक्त निकाल ही लेते थे. कहा जा सकता है बच्चों के प्रति स्नेह और प्यार की यह प्रवृत्ति उन्हें घर से ही मिली, जिसने उन्हें हर बच्चों से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई. उनका बाल प्रेम अकसर उनके दैनिक जीवन के हिस्से के रूप में नजर आता था. देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद एक दिन वे त्रिमूर्ति भवन के लॉन में मार्निंग वॉक कर रहे थे, तभी लॉन में उन्हें एक रोता-बिलखता बच्चा दिखा. एक पल के लिए वे वहां रुके, चारों तरफ देखा तो उन्हें कोई नहीं दिखा. बच्चे की रोने की गति तेज होती जा रही थी.
नेहरू बच्चे को गोद में उठाकर प्यार करने लगे तो बच्चा शांत ही नहीं हुआ बल्कि मुस्कुराते हुए नेहरू को देखने लगा. नेहरू भी टहलना भूलकर उसके साथ खेलने लगे. उसी समय बच्चे के माता-पिता जो वास्तव में बगीचे के माली थे, आ गए उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका बच्चा देश के प्रधानमंत्री की गोद में खेल रहा है. ऐसा ही एक और प्रसंग है. नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर थे. वे कार से मद्रास (आज का चेन्नई) के मुख्य मार्ग से गुजर रहे थे, उनकी कार का काफिला जहां से भी गुजरता लोग उनकी एक झलक पाने के लिए बेचैन होकर उन्हें करीब से देखने की कोशिश करते.
इसी बीच नेहरू ने देखा कि एक वयोवृद्ध गुब्बारे वाला भी पंजे उठा-उठा कर उन्हें एक झलक देखने की कोशिश करता है, अंततः जब थक गया तो वहीं बैठ गया. कहते हैं कि नेहरू गाड़ी रुकवाकर उस गुब्बारे वाले के पास गये, और अपने सचिव जो कि वहां की स्थानीय भाषा से परिचित था, से कहकर गुब्बारे वाले के सारे गुब्बारे खरीदकर वहीं पास खड़े बच्चों में बंटवा दिया. वृद्ध गुब्बारे वाले को यकीन ही नहीं हो रहा था कि देश का इतना बड़ी शख्सियत उसके पास इतनी सहजता से खड़ा उससे बात करने की कोशिश कर रहा था. ताउम्र संघर्षों से जूझने वाले उस वृद्ध की आंखों में आंसू आ गये.
नेहरू का बच्चों के प्रति यह प्रेम केवल भारत तक सीमित नहीं था, चाचा नेहरू के नाम से वे विदेशों में भी काफी लोकप्रिय थे. उन्हीं के द्वारा लिखे एक पत्र के अनुसार एक बार जापान के कुछ बच्चों का उन्हें एक पत्र मिला, जिसमें उन्होंने एक हाथी भेजने की फरमाइश की थी. नेहरू ने बच्चों की इस फरमाइश को गंभीरता से लिया और भारतीय बच्चों की तरफ से उन जापानी बच्चों को एक नन्हां सा हाथी भेजते हुए उन्हें पत्र लिखा कि यह नन्हा हाथी दोनों देश के बच्चों के बीच प्रेम के रिश्तों को और प्रगाढ करेगा.
नेहरू जी को गुलाब से भी बहुत प्यार था, एक गुलाब वह हमेशा अपने सीने पर अंकित रखते थे. उनका कहना था कि गुलाब और बच्चे दोनों एक जैसे होते हैं. कलियों और बच्चों दोनों को ही अपने सह. स्वरूप में आने के लिए उनका स्वस्थ विकास होना बहुत जरूरी है. दोनों की ही परवरिश में स्नेह के साथ सावधानी बरतनी आवश्यक होती है. वे अकसर अपने भाषणों में बच्चों के विकास एवं सही परवरिश को अहमियत के साथ जिक्र करते. क्योंकि आज के बच्चे ही देश की वास्तविक ताकत और समाज की नींव होते हैं. नेहरू ने बच्चों की वर्तमान शिक्षा को अपर्याप्त मानते हुए उसके स्तर को सुधारने पर जोर दिया.
उन्होंने बच्चों की शिक्षा के वैज्ञानिक तरीको के साथ तर्कसंगत शिक्षा की भी वकालत की, क्योंकि वे जानते थे कि शिक्षा के जरिये ही संकीर्ण मानसिकता, धार्मिक उन्माद और साम्यवादी विचारों को दूर किया जा सकता है. वह वैज्ञानिक और मानवीय मानसिकता को बढ़ावा देना चाहते थे. उन्होंने अंग्रेजी माध्यम वाली शिक्षा में भी अपनी रुचि दर्शाई, वह जानते थे कि अंग्रेजी ही यूनिवर्सल लेंग्वेज है और इसी से देश का भी और बच्चों का विकास होगा.
नेहरू ने देश के सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के लिए पांच साल की योजनाएं बनाईं थीं. उन्होंने ललित कला अकादमी और साहित्य अकादमी की स्थापना में मदद की थी. वह इन संस्थानों के पहले अध्यक्ष थे. अपने प्रधानमंत्रित्व काल में नेहरू जी ने बच्चों के विकास के लिए और भी कई योजनाएं बनाई थीं, वे बच्चों के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन आसमयिक मृत्यु ने उनके कदम बीच में ही रोक दिये.