पाकिस्तान में आत्मघाती हमले तेजी से बढ़ रहे हैं. हाल ही में चुनावी रैली के दौरान हुए विस्फोट में बच्चों सहित 50 से ज्यादा लोग मारे गए. आखिर इतनी तेजी से आत्मघाती हमले क्यों बढ़ रहे हैं? इसके पीछे कौन जिम्मेदार है?30 जुलाई को अफगानिस्तान की सीमा से सटे पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बाजौर में हुए आत्मघाती बम विस्फोट में मृतकों की संख्या 50 के पार बताई गई है. इस हमले में जमीयत उलेमा इस्लाम (जेयूआई-एफ) के समर्थकों को निशाना बनाया गया था. जेयूआई-एफ के प्रमुख ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह पूरी तरह ‘खुफिया बल की विफलता' है. जेयूआई-एफ नेता फजल-उर-रहमान ने ट्विटर पर पूछा, "वे कहां हैं? हमारी बात कब सुनेंगे? हमारे जख्मों को कब भरेंगे? ऐसी व्यवस्था कब बनाएंगे, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा हो?” पाकिस्तान में आत्मघाती बम विस्फोट सहित आतंकवादी हमले लगातार बढ़ रहे हैं और कई लोग इन बढ़ते हमलों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
बाजौर में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी ‘इस्लामिक स्टेट' मिलिशिया के स्थानीय सहयोगी ने ली है. ‘इस्लामिक स्टेट खुरासान' (आईएसआईएस-के) का आरोप है कि जेयूआई-एफ एक पाखंडी इस्लामिक राजनीतिक समूह है, जो धर्मनिरपेक्ष सरकार और सेना का समर्थन करता है. सिर्फ ‘इस्लामिक स्टेट' ही नहीं, बल्कि अन्य चरमपंथी समूह भी पाकिस्तान में अपने राजनीतिक दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए आत्मघाती कदम उठा रहे हैं.
आत्मघाती हमलों के पीछे प्रतिद्वंद्वी गुट
एस राजरत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ फेलो और जिहादी नेटवर्क के विशेषज्ञ अब्दुल बासित ने डीडब्ल्यू को बताया कि 2007 में आतंकी समूह टीटीपी का गठन हुआ था. इसके बाद से यह पाकिस्तान में आत्मघाती हमलों को अंजाम दे रहा है. उन्होंने कहा, "टीटीपी के अलावा आईएसआईएस-के उत्तरी वजीरिस्तान स्थित कमांडर हाफिज गुल बहादुर का गुट और हाल ही में गठित तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान, आत्मघाती हमलों में शामिल है. साथ ही, बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने भी इस्लामी आतंकवादियों की राह पर चलते हुए आत्मघाती विस्फोट को युद्ध रणनीति के रूप में अपनाया है.”
इस्लामाबाद स्थित सिक्यॉरिटी थिंक-टैंक, पाकिस्तान इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्यॉरिटी स्टडीज की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2023 की पहली छमाही में एक दर्जन से अधिक आत्मघाती हमले हुए हैं. इसमें पेशावर की एक मस्जिद में हुआ विस्फोट भी शामिल है, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए थे. शुरुआत में इस विस्फोट की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के कमांडर ने ली थी, लेकिन बाद में टीटीपी प्रवक्ता ने इससे इनकार कर दिया था.
इसी तरह 18 जुलाई को पेशावर में हुए आत्मघाती विस्फोट में आठ लोग घायल हो गए थे. 20 जुलाई को खैबर जिले में हुए आत्मघाती विस्फोट में चार पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई थी. इसके ठीक पांच दिन बाद, एक मस्जिद में आत्मघाती हमलावर को गिरफ्तार करने के दौरान एक अन्य पुलिस अधिकारी की मौत हो गई थी.
लंबे समय से हो रहे आत्मघाती हमले
1990 के दशक के मध्य से पाकिस्तान में कई आत्मघाती हमले हुए हैं. हालांकि उस दौरान अधिकांश बम विस्फोट की घटना को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों और सांप्रदायिक संगठनों ने अंजाम दिया था. नवंबर 1995 में आतंकवादियों ने इस्लामाबाद में मिस्र के दूतावास को निशाना बनाया था, जिसमें 17 लोग मारे गए थे. बम विस्फोट के तार अयमान अल-जवाहिरी और उस समय के मिस्र के इस्लामिक जिहाद आतंकवादी संगठन से जुड़े थे.
मई 2002 में कराची में एक बस में आत्मघाती विस्फोट में 11 फ्रांसीसी इंजीनियरों सहित 14 लोगों की मौत हो गई थी. जून 2002 और मार्च 2006 में कराची में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर भी आत्मघाती हमले हुए थे. इसमें एक अमेरिकी राजनयिक और कई अन्य लोगों की मौत हो गई थी.
यहां तक कि 2003 और 2004 में पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों को भी निशाना बनाया गया था, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और पूर्व प्रधानमंत्री शौकत अजीज भी शामिल हैं. हालांकि, ये दोनों हमले में बच गए थे. 2005 में, पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-झांगवी ने बलूचिस्तान प्रांत के झाल मगसी जिले में पीर राखील शाह और इस्लामाबाद में बारी इमाम की दरगाहों पर आत्मघाती हमले किए थे.
लाल मस्जिद पर प्रतिबंध के बाद हुआ टीटीपी का उदय
जून 2007 में इस्लामाबाद की कट्टरपंथी लाल मस्जिद में शरण लिए हुए आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान के बाद पाकिस्तान में संगठित आत्मघाती आतंकवाद ने जड़ें जमा लीं. इस घेराबंदी के दौरान हुई दोतरफा गोलीबारी में 100 से अधिक आतंकवादी और सुरक्षा बल के 11 लोग मारे गए थे. इसके कई महीनों बाद टीटीपी एक आतंकवादी संगठन के रूप में उभरकर सामने आया.
पेशावर में रहने वाले पत्रकार फखर काकाखेल ने इस्लामी आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर काफी रिपोर्टिंग की है. वह कहते हैं, "यह पाकिस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि टीटीपी ने एक-के-बाद-एक कई आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया. सेना, सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों और नागरिक सभाओं को निशाना बनाया गया, जिससे समाज में भय का माहौल कायम हो गया.”
ये हमले तेजी से बढ़ते गए. 27 दिसंबर, 2007 को इसी तरह के एक आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई. पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक, 2008 में देश में 59 आत्मघाती हमले हुए.
सैन्य अभियान से कम हुए हमले
2014 में पाकिस्तान की सेना ने ‘जर्ब-ए-अज्ब' नाम से बड़ा अभियान शुरू किया. इसका उद्देश्य टीटीपी और अल-कायदा से जुड़े अन्य आतंकी समूहों का खात्मा करना था. इसके बाद आत्मघाती हमलों की संख्या कम हुई. पाकिस्तान इंस्टिट्यूट फॉर पीस स्टडीज के अनुसार, 2019, 2020, और 2021 में क्रमशः चार, तीन और पांच आत्मघाती हमले हुए.
पत्रकार फखर काकाखेल कहते हैं, "जर्ब-ए-अज्ब अभियान, अमेरिकी ड्रोन हमलों में शीर्ष नेताओं की मौत और आंतरिक कलह की वजह से टीटीपी बिखर गया और इसके ज्यादातर सदस्य 2020 के अंत तक पड़ोसी अफगान प्रांतों में चले गए.”
आतंकियों का बढ़ा मनोबल
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद टीटीपी फिर से एक बड़ा खतरा बन गया है. 25 जुलाई को जारी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, "कई अलग-अलग समूहों के साथ मिलने के बाद टीटीपी फिर से पाकिस्तानी क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से उनका मनोबल बढ़ गया है. यह समूह सीमा से लगे शहरी क्षेत्रों को निशाना बना रहा है”
विशेषज्ञ कहते हैं कि बाजौर में हाल ही में हुआ आत्मघाती हमला बेशक पाकिस्तान में आतंकवादी समूह के बढ़ते प्रभाव को दिखाता है. बासित ने कहा, "जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ता है, आत्मघाती आतंकवाद भी बढ़ता है. हालांकि जर्ब-ए-अज्ब जैसे अभियान से ये घटनाएं कम होती हैं.”