नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही समय बाकी है. इससे पहले कांग्रेस यूपी अध्यक्ष अजय राय ने जो कहा उससे राजनीति में उथल-पुथल मच गई है. UP कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने ऐलान कर दिया है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अमेठी से चुनाव लड़ेंगे. जैसे ही अजय राय ने ये ऐलान किया कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे. तुरंत एक सवाल सभी के मन में आया वे इस बार कांग्रेस का गढ़ स्मृति ईरानी (Smriti Irani) से छीन पाएंगे? अमेठी की लड़ाई कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. 2024 में कांग्रेस का लक्ष्य अमेठी को फिर से हासिल करना है. अमेठी के चुनावी दंगल में राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी तीसरी बार आमने-सामने होंगे. कोई भी राष्ट्रमंडल खेल कराने को तैयार क्यों नहीं है?
गांधी परिवार के लिए अहम है अमेठी
अमेठी कांग्रेस के लिए एक बड़ी जंग है क्योंकि इसी सीट से गांधी परिवार के चार सदस्यों ने अपने सियासी करियर की शुरूआत की. इनमें राहुल गांधी भी शामिल हैं. संजय गांधी के बाद राहुल गांधी अमेठी से हारने वाले गांधी परिवार के दूसरे सदस्य थे. अब राहुल गांधी 2019 की गलती नहीं दोहराना चाहते हैं लेकिन मौजूदा हालात में अमेठी की राह उनके लिए आसान होती नहीं दिख रही है.
राहुल गांधी 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अमेठी से जीतकर संसद पहुंचे थे. 2014 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी और पांच वर्ष बाद 2019 में राहुल गांधी को 50 हजार से अधिक मतों से हराकर स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी का झंडा गाड दिया. राहुल गांधी ने 2019 में केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा था. फिलहाल वह वहां के सांसद हैं.
कांग्रेस का गढ़ अब स्मृति का किला
राहुल गांधी के लिए अमेठी की राह कितनी मुश्किल है हम आपको आंकड़ों से समझाते हैं. पिछले लोकसभा चुनावों के गणित को देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी राहुल गांधी से हार गई थीं. लेकिन, कांग्रेस नेता की जीत का अंतर घट गया था. 2009 में 4 लाख वोटों से जीतने वाले राहुल 2014 में सिर्फ 1 लाख वोटों से जीते थे. स्मृति ईरानी धीरे-धीरे राहुल की जमीन खिसका रही थीं और 2019 में वह इसमें कामयाब हो गई. स्मृति ईरानी से अब यहां पार पाना राहुल गांधी के लिए आसान नहीं होगा.
जो अमेठी कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करती थी, उसे स्मृति ने अपना किला बना लिया है. सही मायनों में स्मृति की राजनीतिक पहचान अमेठी से बनी है. अमेठी जीतने के लिए स्मृति ईरानी का संघर्ष बड़ा है. 2014 में हारने के बाद भी वहां उनका फोकस अमेठी रहा जिसका नतीजा 2019 में देखने को मिला. लेकिन, राहुल गांधी ने हार के बाद ऐसा नहीं किया ऐसे में सिर्फ चुनावी माहौल में रणनीति खोजना राहुल गांधी को फिर भारी पड़ सकता है.
अमेठी में कड़ा है मुकाबला
अब एक बार फिर राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच 2024 में कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी. देखना दिलचस्प होगा कि अमेठी की जनता स्मृति ईरानी पर अपना भरोसा बनाए रखती है या फिर से राहुल गांधी को अपना नेता चुनती है. लोकसभा चुनाव में इस सीट पर पूरे देश की नजर होगी. अमेठी में राजनीतिक सरगर्मी अभी से तेज हो गई हैं.