Lal Bahadur Shastri Punyatithi 2023: अल्प कार्यकाल में ही लाल बहादुर शास्त्री का नेतृत्व इतिहास के पन्‍नों में दर्ज
Lal Bahadur Shastri (Photo Credits: File Image)

 Lal Bahadur Shastri Death Anniversary 2023: देश के अन्नदाता और सेना को नमन करते हुए देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया. 11 जनवरी को उन्हीं लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि है. छोटी कद काठी के शास्त्री जी बुलंद फैसलों के लिए जाने जाते हैं. महात्मा गांधी के साथ लाल बहादुर शास्त्री को देश नमन कर रहा है. लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था.

देश के लगभग 18 महीने तक ही रहे थे पीएम

नौ जून, वर्ष 1964 को लाल बहादुर शास्त्री देश दूसरे प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी का कार्यकाल ऐसा नहीं है कि एक बहुत लंबा सफर रहा हो, किंतु अपने अल्‍प कार्यकाल में वे जो कुछ भी कर गए हैं, इतिहास के पन्‍नों में दर्ज है और नया इतिहास बनने के बाद भी आज भी लिखे पन्‍नों में उन्‍हें श्रद्धा से याद किया जाता है.

9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे. इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा है। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की और उसके बाद वे पूरे देश में प्‍यार से शास्त्री जी के नाम से ही पुकारे जाने लगे. वैसे देखा जाए तो उनके जीवन और अपने राष्ट्र को सर्वस्‍व समर्पि‍त कर देने के अनेक पहलु हैं, किंतु हम यहां कुछ विशेष बिन्‍दुओं को लेकर बात करेंगे

भारतीय स्‍वाधीनता आन्‍दोलन के कर्मठ सिपाही

महात्मा गांधी के सच्‍चे अनुयायी शास्‍त्री जी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाते रहे और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं.

“मरो नहीं, मारो” का दिया था नारा

बाद के दिनों में “मरो नहीं, मारो” का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया, जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा ‘जय जवान-जय किसान’ तो आज भी लोगों की जुबान पर है. यह नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी तात्‍कालीन समय में बढ़ाया था.

पाकिस्तान को दिखा दिया था आईना

लाल बहादुर शास्त्री जी को देश इसलिए भी सदैव नमन करता रहेगा क्योंकि 1965 में पाकिस्तान हमले के समय बेहतरीन नेतृत्व उन्‍होंने देश को प्रदान किया था. न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ाया, उसे अपनी कार्रवाई करने की खुली छूट दी बल्कि भारतीय जनता का उत्साह एवं आत्मबल को भी बनाए रखा। शास्त्री जी ने तीनों सेना प्रमुखों से तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?

शास्त्री के सचिव सीपी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘ए लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स’ में लिखा है, 10 जनपथ, प्रधानमंत्री का कार्यालय… समय रात के 11 बजकर 45 मिनट, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अचानक अपनी कुर्सी से उठे और अपने दफ्तर के कमरे के एक छोर से दूसरे छोर तक तेजी से चहलकदमी करने लगे.

युद्ध में मारे गए थे पाक के 3,800 सैनिक

“शास्त्री ऐसा तभी करते थे, जब उन्हें कोई बड़ा फैसला लेना होता था. कुछ दिनों बाद हमें पता चला कि उन्होंने तय किया था कि कश्मीर पर हमले के जवाब में भारतीय सेना लाहौर की तरफ मार्च करेगी. इशारा पाते ही उसी दिन रात्रि में करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरी. कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है, ऐसा करके सही सलामत वे लौट आए। इतिहास गवाह है, उसके बाद क्‍या हुआ. शास्त्री जी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और ”जय जवान-जय किसान” का नारा देकर, इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ाया. पाकिस्तान के 3,800 सैनिक मारे जा चुके थे. इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 1840 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था. ऐसे में पाकिस्तान के सामने हथियार डालने के अलावा अन्‍य कोई मार्ग शेष नहीं बचा था.

शास्त्री जी के विचारोंआज भी प्रासंगिक

देश को मिले उनके नेतृत्व और उनके विचारों को फिर हम अपने जीवन में अपनाएं, यह वर्तमान की बहुत बड़ी जरूरत है. उन्होंने कहा है कि यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया, जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए, तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा. इसलिए जितना जल्दी हो सके अपने मन से यह विचार तुरंत त्‍याग दो.

वे कई बार कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा. साथ ही उनका कहना रहता था कि देश के प्रति निष्ठा, सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कोई यह प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है. वास्‍तव में देश के पूर्व प्रधानमंत्री ”लाल बहादुर शास्‍त्री” जी के यह विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि अपने समय में रहे हैं.