HC on Sex After Fake Marriage Promise: शादी का झूठा वादा यौन संबंधों के लिए सहमति पाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता- हाईकोर्ट

मुंबई, 27 फरवरी: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने बलात्कार के एक मामले में एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि शादी का झूठा वादा यौन संबंधों के लिए सहमति प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि इस तरह का धोखा "तथ्यों की गलत धारणा" के बराबर है, जिससे नाबालिग पीड़िता की सहमति कानूनी रूप से अमान्य हो जाती है. न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने आरोपी के इस बचाव को खारिज कर दिया कि संबंध सहमति से बने थे, इस बात पर जोर देते हुए कि नाबालिग पीड़िता के साथ उसके इरादे शुरू से ही बेईमान थे. यह भी पढ़ें: Bombay HC Judgement: नाबालिग से पासपोर्ट रखने का अधिकार नहीं छीना जा सकता; पुणे की छात्रा को बॉम्बे हाईकोर्ट से राहत

यह मामला मई 2019 में एक 16 वर्षीय लड़की द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर से उपजा है, जिसने उस व्यक्ति पर शादी के बहाने बार-बार उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया था. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता ने कहा कि आरोपी ने उसे शादी का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में जब वह गर्भवती हो गई तो उसने इनकार कर दिया. इसके बाद उसने पुलिस से संपर्क किया, जिसके कारण उसे गिरफ्तार किया गया और उसके बाद मुकदमा चलाया गया. भंडारा की एक विशेष अदालत ने उसे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दोषी पाया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई.

फैसले को चुनौती देते हुए, आरोपी ने तर्क दिया कि संबंध सहमति से था और धोखा देने का कोई जानबूझकर इरादा नहीं था. हालांकि, न्यायमूर्ति जोशी-फाल्के ने उसके दावों को खारिज कर दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि उसके कार्यों में "झूठे बहाने के तहत बहकाना" शामिल था, जो यौन उत्पीड़न के बराबर था. न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि पीड़िता इस गलतफहमी में थी कि आदमी उससे शादी करना चाहता था, और धोखे से यौन कृत्यों के लिए उसकी सहमति अमान्य हो गई.

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि नाबालिग की सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है जब इसे ऐसे धोखाधड़ी के माध्यम से प्राप्त किया जाता है. डीएनए रिपोर्ट ने पीड़िता के दावों का समर्थन किया, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला मजबूत हुआ. रिपोर्ट के अनुसार, भंडारा ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी नाबालिग पीड़िता से शादी करने के अपने वास्तविक इरादे को दर्शाने वाला कोई सबूत पेश करने में विफल रहा. न्यायमूर्ति जोशी-फाल्के ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी के कार्यों से उसकी "दोषपूर्ण मानसिक स्थिति" झलकती है, जिससे उसके अपराध के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता.