Bilkis Bano Gangrape के दोषियों की रिहाई के खिलाफ पूर्व नौकरशाहों ने CJI को लिखा पत्र

नई दिल्ली, 27 अगस्त: बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ 134 पूर्व सिविल सेवकों (Former Bureaucrats) ने शनिवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को एक खुला पत्र लिखा. Sonali Phogat Murder Case: CBI करेगी सोनाली फोगट की हत्या की जांच? CM मनोहर लाल ने Goa सरकार को लिखा पत्र

पूर्व नौकरशाहों की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है, "हम आपको लिख रहे हैं, क्योंकि हम गुजरात सरकार के इस फैसले से बहुत व्यथित हैं और क्योंकि हम मानते हैं कि यह केवल सर्वोच्च न्यायालय ही है, जिसके पास प्रमुख अधिकार क्षेत्र है और इसलिए जिम्मेदारी है कि वह इस भयानक गलत निर्णय को सुधारे."

उन्होंने लिखा कि बिलकिस बानो ने कथित तौर पर अपनी जान को खतरा होने के कारण पिछले कुछ वर्षों में लगभग 20 बार घर बदले हैं. जेल से दोषियों की प्रसिद्ध रिहाई के साथ, बिलकिस बानो के लिए आघात, पीड़ा और नुकसान की संभावना काफी बढ़ जाएगी. यह भी चौंकाने वाली बात है कि जल्दी रिहाई की मंजूरी देने वाली सलाहकार समिति के 10 सदस्यों में से पांच भारतीय जनता पार्टी के हैं, जबकि शेष पदेन सदस्य हैं.

पत्र में कहा गया है कि यह निर्णय की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण प्रश्न को उठाता है, और प्रक्रिया और उसके परिणाम दोनों को खराब करता है.

"बिलकिस बानो की कहानी, जैसा कि आप जानते हैं, अपार साहस और ²ढ़ता की कहानी है. 18 फरवरी, 2002 को दाहोद जिले के अपने गांव से पांच महीने की गर्भवती, 19 वर्षीय बिलकिस अपने परिवार और अन्य लोगों के साथ भाग गई, जब लगभग 60 मुस्लिम घरों में आग लगा दी गई थी, वे छप्परवाड़ गांव के बाहर खेतों में छिप गए जहां हथियारबंद लोगों ने उन पर हमला किया."

इसमें कहा गया है कि बिलकिस, उसकी मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया और उसकी तीन साल की बेटी का सिर फोड़ दिया गया. बाद में, आठ लोग मृत पाए गए और छह लापता थे. बिलकिस नग्न और बेहोश पाई गई थी.

गौरतलब है कि गोधरा में 2002 में ट्रेन में आगजनी के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था. उस समय वह गर्भवती थी. इस दौरान जिन लोगों की हत्या की गई थी, उनमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी और बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था.

सात पन्नों के पत्र में कहा गया है, "यह साहस की एक उल्लेखनीय कहानी है कि यह पीड़ित युवती, अपने अत्याचारियों से छिपकर, अदालतों से न्याय मांगने में कामयाब रही."