Dr BR Ambedkar Mahaparinirvan Din 2019: दूरदृष्टा थे बाबा साहेब आंबेडकर, जानें धारा 370 के अलावा उनके और किन विचारों को अब मिली है गति
14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबडेकर जी का जन्म हुआ था

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का अधिकांश जीवन शोषित एवं वंचित समाज के लोगों के उत्थान के लिए संघर्ष करते बीता. उन्हें उनकी पीड़ा का अहसास था क्योंकि वह स्वयं भी बाल्याकाल में ना जाने कितनी बार इस तरह के दंश झेल चुके थे. चूंकि बाबा साहेब कुशाग्र बुद्धि के थे इसलिए उन्होंने अपना भाग्य की लकीर स्वयं लिखी. एक निचली जाति में जन्म लेने के बावजूद अपने दम-खम पर वह देश के संविधान निर्माता एवं आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बनें. बाबा साहेब दूरदृष्टा थे. उनके उस समय के तर्क और विचार आज भी समसामयिक लगते हैं. आइये जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही संयोग जो आज चर्चा का विषय बने हैं

‘भारत रत्न’ एवं देश के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को विश्वास था कि मध्य प्रदेश और बिहार ऐसे प्रदेश हैं कि अगर उन्हें दो विभागों में बांट दिया जाये तो इनका बेहतर विकास होगा, जिसका लाभ देश को होगा. उन्होंने 1955 में जब कांग्रेस के सामने यह बात रखी तो किसी ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं दिखाया. अंततः 45 साल के बाद दोनों ही राज्यों राज्यों का विभाजन किया गया, जिसमें मप्र से छत्तीसगढ़ और बिहार से झारखंड का निर्माण हुआ.

धारा 370 के प्रखर विरोधी अंबेडकर भी थे:

पिछले दिनों भाजपा सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने पर राजनीतिक दलों ने जिस तरह हंगामा मचाया, उसका विरोध 70 साल पहले ही बाबा साहेब कर चुके थे. संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब आंबेडकर भी अनुच्‍छेद 370 के धुर विरोधी थे. उन्‍होंने शेख अब्दुला को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि आप चाहते हैं कि भारत जम्मू कश्मीर की रक्षा करे, यहां की सड़कों का निर्माण करे, अनाज सप्लाई करे, कश्मीर को भारत के समान अधिकार मिले, लेकिन कश्मीर में भारत को सीमित शक्तियां मिले, कानून मंत्री होने के नाते मैं देश के साथ इस तरह का विश्वासघात नहीं कर सकता. उनके मना करने के बाद शेख अब्‍दुल्‍ला नेहरू के पास पहुंचे, नेहरू के निर्देश पर गोपालस्‍वामी अयंगर ने मसौदा तैयार कर धारा 370 लागू किया. ज्ञात हो कि 5 अगस्त 2019 को स्वतंत्र भारत का नया इतिहास लिखा गया. 17 अक्टूबर 1949 को संविधान में राष्ट्रपति के आदेश से जोड़े गये अनुच्छेद 370 को उसी तरीके से खत्म कर दिया गया.

कार्यावधि 14 से 7 घंटे करना:

आजादी के पूर्व यानी ब्रिटिश हुकूमत में आम भारत में 14 घंटे काम करने का विधान था. लेकिन बाबा साहेब आंबेडकर ने इसे बहुत ज्यादा माना और भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में उन्होंने भारत में काम करने का समय 14 से घटाकर 8 घंटे करने की मांग रखी, जिसे सभी ने मान लिया. कल्पना कीजिये कि अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो आज हमारा औसत कार्य दिवस प्रातः 9 बजे से रात 11 बजे तक होता. श्रमिकों को मिली इस सुविधा में बाबा साहेब आंबेडकर की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता.

रूपये का अवमूल्यन:

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में आंबेडकर ने अहम भूमिका थी. उनकी पुस्तक 'द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी-इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन’ में आरबीआई के गठन को विस्तार से बताया है. उन्होंने बताया कि कैसे अमेरिका एवं युरोपीय देशों के दबाव में मुद्रा का मान स्वर्णमान में बदल दिया गया. अर्थात कोई भी देश अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उतनी ही मुद्रा निकाल सकता है जितना सोना उसके पास हो. तब सोना व चांदी लगभग समान मूल्य के थे. अमेरिका के पास स्वर्ण का प्रचुर भंडार था. अमेरिका ने यह भी शर्त रखी कि व्यापार में वे चांदी देंगे, मगर लेंगे सोना. चांदी बेच कर सोना लेने से भारत के पास पहले कम सोना होने से स्वर्ण का भंडारण और कम होता गया.

चांदी बेचकर सोना खरीदने से चांदी भी कम होती गई. इससे रूपये की कीमत गिरती गयी, और वह स्थिति आज तक बनी हुई है. आज भी डॉलर और यूरोपीय देशों की मुद्राओं के सामने रूपये की कीमत गिरी हुई है.