APJ Abdul Kalam Death Anniversary 2019: मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्हें पढ़ाई के लिए करना पड़ा था अखबार बेचने का काम, पढ़ें उनका सफर
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Photo Credit- Twitter)

'सपने सच हों इसके लिए सपने देखना जरूरी है, महान सपने देखने वालों के सपने हमेशा श्रेष्ठ होते हैं' ऐसी महान सोच रखने वाले भारत के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न से सम्मानित वैज्ञानिक व इंजीनियर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) की आज यानी 27 जुलाई को पुण्यतिथि (APJ Abdul Kalam Death Anniversary 2019) है. अपने गहन सोच की वजह से जीवन में कई उपलब्धियों को हासिल करने वाले मिसाइल मैन (Missile Man) डॉ. कलाम (Dr.Kalam) ने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में भारत का मान बढ़ाया. देश के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग में हुआ था.

हमेशा अपने महान विचारों और सोच से युवाओं व बच्चों का हौसला बढ़ावे वाले कलाम का पूरा नाम अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था. उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन में आने वाली तमाम चुनौतियों का डटकर सामना किया. इन चुनौतियों को मात देते हुए वे 'मिसाइल मैन' और 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में लोकप्रिय हुए. चलिए डॉ. कलाम की पुण्यतिथि पर नजर डालते हैं उनके जीवन के सफर पर...

ऐसा था उनका बचपन...

कलाम का परिवार छोटी-बड़ी मुश्किलों से हमेशा ही जूझता रहा, इसलिए उन्हें बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया था. उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी, इसलिए वे केरोसिन तेल का दीया जलाकर पढ़ाई किया करते थे. आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बजे उठते थे और नहा कर गणित पढ़ने के लिए चले जाते थे. पढ़कर आने के बाद वे नमाज अदा करते थे और सुबह आठ बजे तक रामेश्वरम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जाकर अखबार बेचते थे. बचपन में ही आत्मनिर्भर बनने की तरफ उनका यह पहला कदम था.

ऐसे की उन्होंने पढ़ाई...

कलाम बचपन से ही अपनी पढ़ाई के लिए रामेश्वरम की सड़कों पर दौड़-दौड़कर अखबार बेचा करते थे. जब वे 19 साल के थे, तब उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध की उथल-पुथल को महसूस किया. उस युद्ध की आग रामेश्वरम के द्वार तक पहुंच गई थी. इन परिस्थितियों में भोजन के साथ सभी जरूरी चीजों का अभाव था. बावजूद इसके शिक्षा के रास्ते में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की. वे एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आए. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया और वहां से उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.

मिसाइल क्रांति की ओर कदम...

साल 1962 में डॉ. कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आए. उन्हें प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान SLV-III बनाने का श्रेय प्राप्त है. इसके बाद उन्होंने स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया. उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं. यही वजह कि अब्दुल कलाम भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक भी माने जाते हैं.

डॉ. कलाम ने 20 साल तक इसरो में काम किया और करीब 20 साल तक उन्होंने रक्षा शोध और विकास संगठन यानी डीआरडीओ में भी काम किया. वे 10 साल तक डीआरडीओ के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों का निर्माण स्वदेशी तकनीक से किया. यह भी पढ़ें: जन्मदिन विशेष: मिसाइलमैन डॉ. अब्दुल कलाम जो युवाओं के लिए बने प्रेरणा, जानें उनके जीवन से जुड़ी 10 रोचक बातें

मिसाइल मैन से राष्ट्रपति तक का सफर...

भारत के मिसाइल मैन 18 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित हुए, उन्हें बीजेपी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसका समस्त दलों ने समर्थन किया था. 25 जुलाई 2002 को उन्होंने देश के राष्ट्रपति पद की शपथ ली और 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हुआ.

मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान...

डॉ. कलाम को साल 1981 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा, इसके बाद साल 1990 में उन्हें पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. भारत के सर्वोच्च पद पर नियुक्त होने से पहले भारत रत्न पाने वाले डॉ. कलाम देश के तीसरे राष्ट्रपति हैं, उनसे पहले यह सम्मान सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुस्सैन को मिला था.

गौरतलब है कि डॉ. कलाम के पिता पेशे से नाविक थे और वे मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे. पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार का गुजारा करने के लिए पिता की आमदनी कम पड़ती थी, ऐसे में बचपन से ही कलाम अपनी जिम्मेदारियों को उठाने लगे थे. देश की प्रगति और विकास को नई दिशा देनेवाले डॉ. कलाम ने 27 जुलाई 2015 को शिलांग में अंतिम सांस ली और दुनिया को अलविदा कह गए.