
Anuja Review: नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई भारतीय शॉर्ट फिल्म ‘अनुजा’ एक मार्मिक कहानी है, जो गरीबी, बाल श्रम और सपनों की लड़ाई को सशक्त रूप में प्रस्तुत करती है. यह फिल्म 2025 के ऑस्कर में बेस्ट लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म श्रेणी में नामांकित हुई है, जो भारतीय सिनेमा के लिए गर्व की बात है. फिल्म का निर्देशन एडम जे ग्रेव्स ने किया है और इसमें मुख्य भूमिकाओं में सजदा पठान और अनन्या शानभाग नजर आती हैं. आइए जानते हैं कैसी है यह शॉर्ट फिल्म?
कहानी
फिल्म दो अनाथ लड़कियों, 9 वर्षीय अनुजा (सजदा पठान) और बड़ी बहन जैसी पलक (अनन्या शानभाग) की कहानी है, जो एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करती हैं, भले ही भारत में बाल श्रम प्रतिबंधित है. पलक के सपने बड़े हैं, लेकिन वह हकीकत से वाकिफ है. वह चाहती है कि अनुजा पढ़े-लिखे और बेहतर जीवन जिए, क्योंकि वह गणित में होशियार है.मिश्रा (गुलशन वालिया) को अनुजा की प्रतिभा का एहसास होता है और वे उसे स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित करता है. वहीं, फैक्ट्री मालिक वर्मा (नागेश भोंसले) एक व्यावहारिक व्यक्ति है, जो हालात को समझता है और अंततः अनुजा की प्रतिभा को पहचानता है.
फिल्म का क्लाइमैक्स एक दुविधा को प्रस्तुत करता है, क्या अनुजा बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाएगी या अपनी ‘दीदी’ पलक के साथ ही रहेगी? क्या अपने जीवन को बदलने के लिए हमें अपनों को पीछे छोड़ना जरूरी होता है? क्या किसी के बलिदान को नजरअंदाज करके आगे बढ़ना सही है? ये सवाल हर दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देते हैं.
ऑस्कर के लिए नामांकित फिल्म 'अनुजा' का ट्रेलर:
अभिनय
9 वर्षीय सजदा पठान ने अनुजा के किरदार में बेहतरीन प्रदर्शन किया है. उनके अभिनय में गहराई और मासूमियत झलकती है. अगर सही मार्गदर्शन मिला, तो वह भविष्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकती हैं. अनन्या शानभाग ठीक-ठाक रहीं खासकर उनका एक्सेंट फिल्म से मेल नहीं खाया. नागेश भोंसले और गुलशन वालिया ने अपने किरदारों को सहजता से निभाया. सुरक्षा गार्ड की भूमिका में जुगल किशोर भी शानदार रहे. छोटे-छोटे किरदारों में सुनीता भदौरिया, पंकज गुप्ता, सुशील परवाना और रुडोल्फो राजीव ह्यूबर्ट ने भी बेहतरीन काम किया है.
तकनीकी पक्ष
अकाश राजे की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को असलियत का एहसास दिलाती है और इसका नेचुरल टोन कहानी को और प्रभावी बनाता है. फिल्म के हर फ्रेम को इस तरह फिल्माया गया है कि यह एक डॉक्यूमेंट्री जैसी लगती है, लेकिन इसका हर दृश्य सोच-समझकर फिल्माया गया है. क्रुशन नाइक और एडम जे ग्रेव्स की एडिटिंग फिल्म को प्रभावी और संक्षिप्त बनाती है, जिससे इसकी कहानी दमदार बनती है. बैकग्राउंड म्यूजिक ज्यादा ड्रैमेटिक नहीं है, जिससे फिल्म की सादगी बरकरार रहती है.
अंतिम विचार
फिल्म के एंड क्रेडिट में दिखाए गए बिहाइंड द सीन्स आपको भावुक कर देंगे. असल में यह बीटीएस नहीं, बल्कि फिल्म देख रहे ‘सलाम बालक ट्रस्ट’ के बच्चों के दृश्य हैं, जो इस फिल्म से गहराई से जुड़े हुए हैं. फिल्म की ट्रैजिक कहानी और बच्चों की मासूम हंसी के बीच का यह अंतर विरोधाभास सा लगता है, जिसे देखकर मन में अजीब सी भावनाएं उमड़ती हैं. महज 22 मिनट लंबी इस फिल्म को एक बार जरूर देखा जा सकता है. हालांकि आयडिया फ्रेश नहीं है, इससे पहले भी इस तरह के सबजेक्ट पर फिल्में बन चुकी हैं.पर बावजूद इसके फिल्म कनेक्ट करती है और अंत तक जोड़े रखती है.