विदेश की खबरें | पाकिस्तान : उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित सीटों पर इमरान की पार्टी के पक्ष में निर्णय सुनाया
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

इस्लामाबाद, 12 जुलाई जेल में बंद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को शुक्रवार को तब बड़ी कानूनी जीत मिली जब उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया कि उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) संसद में महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित 20 से अधिक सीटें आनुपातिक आधार पर प्राप्त करने की अर्हता रखती है।

फैसले के बाद इमरान खान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से इस्तीफा देने की मांग की है।

खान की पार्टी पीटीआई द्वारा समर्थित उम्मीदवार चुनाव चिह्न छीन लिए जाने के बाद आठ फरवरी को हुए आम चुनावों में बतौर निर्दलीय किस्मत आजमाई थी और जीत हासिल की थी। विजयी उम्मीदवारों ने गठबंधन बनाने के लिए सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) में शामिल हो गए थे, जो पाकिस्तान में इस्लामी राजनीतिक और बरेलवी धार्मिक दलों का एक राजनीतिक गठबंधन है।

सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) ने नेशनल असेंबली और प्रांतीय असेंबली में आरक्षित सीटों में उसे हिस्सेदारी न देने के पाकिस्तान निर्वाचन आयोग (ईसीपी) के फैसले को बहाल रखने के पेशावर उच्च न्यायालय (पीएचसी) के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

प्रधान न्यायाधीश काजी फैज ईसा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यीय पूर्ण पीठ ने मामले की सुनवाई की। बहुप्रतीक्षित इस फैसले को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है।

प्रधान न्यायाधीश ईसा ने मंगलवार को सुनवाई के बाद घोषणा की थी कि पीठ ने आपसी परामर्श के लिए फैसला सुरक्षित रखने का निर्णय लिया है, जिसकी घोषणा शुक्रवार को की गई।

शीर्ष अदालत की 13 सदस्यी पीठ में से आठ न्यायाधीशों ने बहुमत से चुनाव निकाय के आदेश और पेशावर उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए एसआईसी के पक्ष में फैसला सुनाया। यह फैसला न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह ने सुनाया।

फैसले में कहा गया, ‘‘पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग द्वारा एक मार्च 2024 को दिया गया आदेश संविधान के अधिकारों के विरुद्ध, विधि विपरीत है और इसका कोई कानूनी प्रभाव नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि ‘‘चुनाव चिह्न अभाव या इनकार किसी भी तरह से किसी राजनीतिक दल के चुनाव में भाग लेने (चाहे आम चुनाव हो या उप चुनाव) और उम्मीदवार खड़ा करने के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है और आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह तदनुसार कार्य करे, सभी वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करे और उन्हें लागू करे।’’

पीठ ने कहा, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ एक राजनीतिक दल है और आरक्षित सीट के लिए पात्र है। आदेश में कहा गया, ‘‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) एक राजनीतिक दल था एक राजनीतिक पार्टी बना रहेगा’’। अदालत ने पीटीआई को 15 दिनों के भीतर अपने आरक्षित सीटों के उम्मीदवारों की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए खान ने सोशल मीडिया मंच ‘ एक्स’ पर जारी पोस्ट में कहा, ‘‘अल्लाह अल हक है! (अल्लाह सत्य है)’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने बार-बार पाकिस्तान के मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा मेरे और पीटीआई के खिलाफ प्रदर्शित पूर्वाग्रह के बारे में चिंता जताई है। आज का शीर्ष न्यायालय का निर्णय हमारे रुख को मजबूत करता है।’’

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हम पाकिस्तान की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के लाखों मतदाताओं और समर्थकों को मताधिकार से वंचित करने के लिए जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत आपराधिक कार्यवाही की मांग करते हैं। सिकंदर सुल्तान राजा और ईसीपी सदस्यों को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए!’’

उन्होंने दोहराया कि प्रधान न्यायाधीश काजी फैज ईसा को उनसे या पीटीआई से जुड़े सभी मामलों से दूरी बना लेनी चाहिए।

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के राजनीतिक सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने फैसले को खारिज करते हुए कहा कि पीटीआई को वह मिला है जो उसने कभी मांगा ही नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी ने कभी आरक्षित सीटें पाने के लिए नहीं कहा था और अदालत ने उसे इसके लिए योग्य बना दिया।’’

सनाउल्लाह ने कहा कि उनकी राय है कि फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की जानी चाहिए।

जियो न्यूज की खबर के अनुसार इस फैसले के बाद पीटीआई अब नेशनल असेंबली में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी क्योंकि 23 आरक्षित सीटें मिलने के बाद इसकी सीटें संभवतः 86 से बढ़कर 109 हो जाएंगी। खबर के मुताबिक नेशनल असेंबली में विपक्षी गठबंधन के सदस्यों की संख्या भी बढ़कर 120 हो जाएगी।

आरक्षित सीटों को लेकर विवाद तब शुरू हुआ था, जब निर्वाचन आयोग ने एसआईसी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें पार्टी ने नेशनल असेंबली की 77 और चार प्रांतीय असेंबली की 156 आरक्षित सीटों में से उसे उसका हिस्सा देने का अनुरोध किया था।

निर्वाचन आयोग ने यह कहते हुए एसआईसी की अर्जी खारिज कर दी थी कि उसने बतौर पार्टी चुनाव नहीं लड़ा था और उसे संख्या बल तब मिला, जब पीटीआई समर्थित विजेता निर्दलीय उम्मीदवार उसके साथ आएं।

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