तपिश से भरी दुनिया घात लगातर इंसान का इंतजार कर रही है. यूएन की ताजा रिपोर्ट जलवायु हाहाकार की चेतावनियों से भरी पड़ी है.सैकड़ों वैज्ञानिकों और कई संस्थाओं की मदद से तैयार जलवायु रिपोर्ट, आईपीसीसी ने पेश की है. यूएन के क्लाइमेट एडवाइजरी पैनल ने यह रिपोर्ट 20 मार्च को पेश की. रिपोर्ट के मुताबिक इस सदी के अंत की बजाए अगले 17 साल में ही वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री की वृद्धि हो सकती है. 36 पन्नों की रिपोर्ट को "समरी फॉर पॉलिसीमेकर्स" नाम दिया गया है. आईपीसीसी की इस छठी रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वर्षों में जो भी गर्मी देखी गई, वह आने वाले वर्षों के मुकाबले ठंडी महसूस होगी. यानी तपिश इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी बीते वर्षों की गर्मियां उनके आगे ठंडी लगेंगी.
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कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मौजूदा हालात बने रहे तो सन 2100 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. इसका असर आधी इंसानी आबादी पर पड़ेगा. रिसर्च के मुताबिक बहुत ज्यादा गर्मी और अत्यधिक नमी जानलेवा साबित होगी. रिपोर्ट में इस्तेमाल किये गए वर्ल्ड मैप में दिखाया गया है कि दक्षिणपूर्वी एशिया और ब्राजील और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ इलाकों को भीषण गर्मी झेलनी पड़ेगी.
टाइम बम को नाकाम करें
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेष ने धनी देशों से अपील करते हुए कहा है कि वे इस "क्लाइमेट टाइम बम को नाकाम" कर सकते हैं.धनी देश 2050 के बजाए अगर 2040 तक कार्बन न्यू्ट्रैलिटी का लक्ष्य हिसाल कर लें तो हालात संभाले जा सकते हैं. रिपोर्ट का जिक्र करते हुए गुटेरेष ने कहा कि "मानवता बहुत ही पतली बर्फ पर खड़ी है और ये बर्फ भी तेजी से पिघल रही है."
वीडियो संदेश में यूएन महासचिव ने कहा, "बीते 50 साल में तापमान वृद्धि की रफ्तार पिछले 2000 साल में सबसे ऊंची थी. कम से कम 20 लाख साल बाद कार्बन डाइ ऑक्साइड (सीओ2) का घनत्व इतने ऊंचे स्तर पर पहुंचा है. क्लाइमेट टाइम बम टिकटिक कर रहा है."
जब फरवरी में ये हाल है तो जून में क्या होगा
आईपीसीसी की रिपोर्ट में साफ चेतावनी दी गई है कि दुश्वार होती जलवायु, दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ेगी. ये सामाजिक ताने बाने पर भी वार करेगी. स्विट्जरलैंड के पहाड़ी शहर इंटरलाकन में हफ्ते भर की लंबी बहस के बाद रिपोर्ट जारी की गई. रिपोर्ट जारी करने से पहले दो दिन तक जीवाश्म ईंधन को लेकर इस्तेमाल की गई भाषा पर बहस होती रही.
यूक्रेन युद्ध की वजह से पैदा हुए ऊर्जा संकट के कारण कई देशों में बिजली बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल फिर से बढ़ा है. इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन फिर से बढ़ने की आशंका है.
ताकतवर देशों हाथ मिलाओ
यूएन महासचिव, इस साल सितंबर में होने वाले क्लाइमेट एक्शन समिट की अगुवाई करेंगे. गुटेरेष का कहना है कि सम्मेलन में दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका पर बहस होगी. जी-20 देश, ग्रीनहाउस गैसों के 80 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
गुटेरेष ने कहा, "समय आ चुका है कि जी-20 के सभी सदस्य एक साझा कोशिश के लिए साथ आए, अपने संसाधन और अपनी वैज्ञानिक क्षमता के साथ पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर की किफायती तकनीक को साथ मिलाएं, ताकि 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी को हकीकत बनाया जा सके."
दुनिया में इस वक्त ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन है. अमेरिका के मुकाबले ग्रीनहाउस गैसों का दोगुना उत्सर्जन करने वाले बीजिंग ने 2060 तक कार्बन न्यूट्रल होने का वादा किया है. दूसरे नंबर पर अमेरिका है, जिसने कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए 2050 का लक्ष्य रखा है. तीसरे नंबर पर खड़े भारत ने यह लक्ष्य 2070 तक हासिल करने का वादा किया है. ये तीनों देश ग्रीनहाउस गैसों के 42.6 फीसदी हिस्से के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
ओएसजे/एनआर (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)