नयी दिल्ली, 30 जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनी के दो कर्मचारियों के खिलाफ कंपनी में कार्यरत एक इंटर्न के यौन उत्पीड़न के आरोप में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया है।
अदालत ने फैसले में इस बात का उल्लेख किया कि आंतरिक शिकायत समिति द्वारा दोनों को दोषमुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने कहा कि यदि प्राथमिकी से उत्पन्न परिणामी कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह “शक्ति का दुरुपयोग और व्यर्थ की कवायद” होगी।
उच्च न्यायालय ने अपने 25 जनवरी के आदेश में दो कर्मचारियों द्वारा दायर दो याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया।
यह माना गया कि दो कर्मचारियों के वकील द्वारा दी गई दलीलों में वजन था कि प्राथमिकी से उत्पन्न होने वाली आपराधिक कार्यवाही या अभियोजन को विशेष रूप से जारी नहीं रखा जा सकता है, जब याचिकाकर्ताओं को “आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) द्वारा दोषमुक्त किया गया था”। समिति ने अगस्त 2019 में अपनी अंतिम रिपोर्ट दाखिल की थी।
अदालत ने कहा कि महिला ने आईसीसी के समक्ष अपनी शिकायत वापस ले ली थी, लेकिन समिति ने जांच की और गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला किया।
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