नयी दिल्ली, 13 जनवरी उद्योग संगठन साल्वेंट एक्सट्रैटर्स एसोसिएशन (एसईए) ने बृहस्पतिवार को कहा है कि रिफाइंड और कच्चे पाम तेल (सीपीओ) के बीच आयात शुल्क का अंतर कम होने की वजह से घरेलू रिफाइनिंग उद्योग का काम धंधा खत्म हो सकता है। उसने मांग की है कि केंद्र फिर से रिफाइंड पाम तेल के आयात पर रोक लगाए और दोनों तेलों के बीच 11 प्रतिशत के पहले के शुल्क अंतर को बहाल करे।
सरकार ने दिसंबर 2021 में, घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए आरबीडी पामोलिन और आरबीडी पाम तेल पर आयात शुल्क में 5.5 प्रतिशत की कमी कर दी थी।
इस कटौती के साथ, रिफाइंड पाम तेल और कच्चे पाम तेल (सीपीओ) के बीच आयात शुल्क का अंतर कम होकर 5.5 प्रतिशत रह गया।
आम तौर पर भारत, खाद्य तेलों का एक प्रमुख आयातक देश है जो वैश्विक बाजार से बड़े पैमाने पर सीपीओ खरीदता है और इसे घरेलू बाजार में परिष्कृत करता है। लेकिन दोनों तेलों के बीच शुल्क अंतर कम होने से व्यापारी रिफाइंड पाम तेल की ओर रुख कर रहे हैं।
केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे को लिखे पत्र में, मुंबई स्थित सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘हम सरकार से कच्चे और रिफाइंड पाम तेल के बीच 11 प्रतिशत के शुल्क अंतर को बहाल करने की अपील करते हैं। इससे दोनों तेलों के बीच शुल्क में 11 प्रतिशत का अंतर स्थापित होगा।’’
उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार तत्काल प्रभाव से या कम से कम एक अप्रैल, 2022 से प्रतिबंधित सूची के तहत आरबीडी पामोलिन और रिफाइंड पाम तेल के आयात को फिर से रखे।
उन्होंने कहा, ‘‘इससे घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को प्रतिस्पर्धा का एक समान अवसर मिलेगा और यह हमारे प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ के दृष्टिकोण के अनुरूप होगा।’’
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