
आप्रवासियों के खिलाफ सख्ती का प्रस्ताव संसद में एएफडी की मदद से पास करवा कर सीडीयू नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने बड़ा बवाल मचा दिया है. उधर एएफडी पहली बार अपने वोट से संसद में प्रस्ताव पारित कराने का जश्न मना रही है.बुधवार शाम यह गैर बाध्यकारी प्रस्ताव संसद में पारित हुआ. इसमें आप्रवासियों को देश में ना आने देने और दोहरी नागरिकता वाले नागरिकों के गंभीर अपराध में दोषी सिद्ध होने पर जर्मन नागरिकता वापस लेने की बात है.
प्रस्ताव पास होने के पहले से ही मैर्त्स की आलोचना हो रही है. गुरुवार को उनकी ही पार्टी की नेता और लंबे समय तक देश की चांसलर रहीं अंगेला मैर्केल ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने "पहली बार संसद में एएफडी के वोट से बहुमत हासिल करने" के फैसले की तीखी आलोचना की है.
मैर्केल ने याद दिलाया है कि नवंबर में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व वाले तीन पार्टियों का गठबंधन टूटने के बाद फ्रीडरिष मैर्त्स ने यह वचन दिया था कि वह एएफडी की मदद से प्रस्ताव पारित नहीं कराएंगे. मैर्केल का कहना है, "यह प्रस्ताव और उससे जुड़ा रवैया बड़ी राष्ट्रीय राजनीतिक जिम्मेदारी थी, जिसका मैंने पूरा समर्थन किया."
जर्मनी की राजनीति में फिलहाल आप्रवासन बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है. फरवरी 2025 के आम चुनाव के लिए पार्टियां अपने अपने हिसाब से इस मुद्दे को भुनाने में लगी हैं. चुनाव से पहले हुए कुछ हमलों और उनमें आप्रवासियों की संदिग्ध भू्मिका ने राजनीतिक दलों को इसका भरपूर मौका दे दिया है.
सीडीयू नेता मैर्त्स की ओर से लाया गया प्रस्ताव पहले ही विवादित था. एएफडी के समर्थन ने इस आग में और घी डाल दिया है. आप्रवासन नीति पर ही सीडीयू समर्थित एक और प्रस्ताव शुक्रवार को जर्मनी की संसद में पेश होना है. इसमें शरण के लिए जर्मनी आने वाले लोगों को रोकने की बात है. एएफडी और दो दूसरी छोटी पार्टियां पहले ही इसे समर्थन देने का एलान कर चुकी हैं.
मैर्केल ने मांग की है, "सभी लोकतांत्रिक पार्टियां साथ मिल कर राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठ कर ईमानदारी और उदारता से यूरोपीय कानूनों के आधार पर इस तरह के भयानक हमलों को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएं." पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं ने भी समस्याओं को लोकतांत्रिक संस्थानों के जरिए हल करने की मांग की है. इन नेताओं ने एएफडी की भी कड़ी आलोचना की है.
जर्मनी के चुनाव में एक करोड़ लोग वोट नहीं दे सकते
एएफडी कैंप में जश्न
बुधवार को संसद में प्रस्ताव पारित होने से उत्साहित एएफडी ने इसके बाद जर्मनी की राजनीति में "नए युग" की उम्मीद जताई है. जहां सीडीयू में सबका मूड कड़वा और मन खट्टा हो गया है वहीं एएफडी भारी संतोष में है. एएफडी के सह नेता टिनो क्रुपाला ने आरबीबी रेडियो से कहा कि जर्मनी को "राजनीति और आप्रवासन" में बदलाव की उम्मीद है.
क्रुपाला का इशारा हालिया सर्वेक्षणों की ओर था जिसमें एएफडी दूसरे नंबर पर पहुंच गई है और उसे 20 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने के आसार बताए गए हैं. क्रुपाला की दलील है कि राष्ट्रीय सीमाओं पर ज्यादा नियंत्रण की जरूरत है ताकि शरणार्थियों की भीड़ को अंदर आने से रोका जा सके.
क्रुपाला ने कहा कि देश में 2.5 लाख लोगों को "रक्षात्मक हिरासत" में लेकर देश से बाहर भेजा जाना चाहिए. इस टर्म का इस्तेमाल नाजी दौर में राजनीतिक विरोधियों को बिना मुकदमा चलाए हिरासत में लेने के लिए किया जाता था. क्रुपाला ने यह भी कहा कि एएफडी चुनाव के बाद सीडीयू/सीएसयू के साथ गठबंधन करने को तैयार है.
हालांकि चांसलर बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे मैर्त्स अब तक ऐसी संभावनाओं से इनकार करते रहे हैं. क्रुपाला ने तो यहां तक कहा कि अगर मैर्त्स एएफडी के साथ काम करने से इनकार करते हैं तो उन्हें हटा दिया जाना चाहिए.
आप्रवासियों का वोट कैसे तय कर सकता है जर्मन चुनाव के नतीजे
फ्रीडरिष मैर्त्स ने बुधवार की वोटिंग के बाद एक बार फिर एएफडी के साथ सहयोग नहीं लेने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. मैर्त्स ने टीवी चैनल एआरडी से कहा, "एएफडी के लोग आज चाहें तो अपनी जीत का जश्न माना लें लेकिन ऐसा होगा नहीं." मैर्त्स ने जोर दे कर कहा "एएफडी को मिला वोट चुनाव के अगले दिन किसी काम का नहीं होगा."
मैर्त्स ने कहा कि जो लोग नीति में बदलाव चाहते हैं उन्हें सीडीयू को वोट देना होगा. मैर्त्स ने चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी और ग्रीन पार्टी को सीडीयू और उसकी बवेरियाई सहयोगी सीएसयू की तरफ से बिल पर बातचीत का फिर से प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान होगा.
मुख्यधारा की पार्टियां एएफडी के साथ सहयोग से बचती रही हैं और उन्होंने उसे "फायरवॉल" का नाम दे रखा है. मैर्त्स ने "फायरवॉल" को गलत शब्द बताया और साथ ही कहा, "मैं नहीं चाहता कि दीवार के पीछे की आग पूरी जर्मनी में फैले यही वजह है कि हम समस्याओं का समाधान करने की तरफ जा रहे हैं."
मशहूर हस्तियों ने भी की आलोचना
जर्मनी की सैकड़ों मशहूर हस्तियों और फिल्मी सितारों ने भी एक खुला पत्र लिख कर आप्रवासियों के खिलाफ सख्ती के लिए लाए बिल का विरोध किया है. गुरुवार को यह पत्र वॉग पत्रिका के जर्मन संस्करण में छपा है. इन लोगों ने इस कदम को "वर्जना का ऐतिहासिक उल्लंघन" कहा है.
लुइजा गाफ्रॉन और योनाथन बर्लिन के शुरू किए इस पत्र पर डानिएल ब्रुल और जेला हासे जैसे कलाकारों ने भी दस्तखत किए हैं. उनके लावा कारोलीन हेरफुर्थ, फ्रित्सी बाउर, माक्सिमिलियन मुंड्ट, ब्यारने मेडल और फिलफ फ्रोसां के दस्तखत भी पत्र पर मौजूद हैं.
सीडीयू/सीएसयू के साथ ही फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी और सारा वागेनक्नेष्ट अलायंस के नेताओं को यह पत्र संबोधित किया गया है. इन तीनों पार्टियों ने शुक्रवार के बिल पर वोट देने की बात कही है और एफडी ने भी समर्थन का वादा किया है.
पत्र में लिखा है, "आप लोग धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की मदद से बुनियादी अधिकारों को कमजोर करने की धमकी दे रहे हैं और इस तरह से एएफडी को प्रभाव और ताकत हासिल करने में सहायता कर रहे हैं."
एनआर/वीके (डीपीए, एएफपी)