सोशल मीडिया पर एआई डॉक्टरों की बात का न करें भरोसा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य और सुंदरता से जुड़ी सलाह देने वाले एआई-जनरेटेड डॉक्टरों के वीडियो बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं. हालांकि, सवाल यह है कि क्या उनके दावे सही हैं या वे लोगों की जान को खतरे में डाल रहे हैं?सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में, सफेद लैब कोट और गले में स्टेथोस्कोप पहने डॉक्टर अक्सर दांतों को सफेद करने के लिए प्राकृतिक उपचार या तरीकों के बारे में सलाह देते हुए दिखाई देते हैं. जबकि, कई मामलों में ये असली डॉक्टर नहीं होते, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसकी मदद से जेनरेट किए गए बॉट होते हैं. वे जो कुछ भी कहते हैं वह पूरी तरह सच नहीं होता. इसलिए, इन कथित डॉक्टरों की बात पर विश्वास करने से बचना चाहिए.

क्या चिया यानी सब्जा के बीज से डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है?

दावा: फेसबुक पर एआई-जनरेटेड एक बॉट ने दावा किया कि चिया के बीज से डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है. इस वीडियो को 40,000 से अधिक लाइक मिले और इसे 18,000 से ज्यादा बार शेयर किया गया. इस वीडियो पर 21 लाख लोगों ने क्लिक किया.

डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत है दावा

चिया के बीज चलन में हैं. इनमें अनसैचुरेटेड फैटी एसिड, फाइबर, अमीनो एसिड और विटामिन होते हैं. 2021 की एक अमेरिकी रिपोर्ट में पाया गया कि चिया के बीजों का सेवन करने से शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है. टाइप 2 के डायबिटीज और हाइपरटेंशन वाले लोगों में कई हफ्तों तक तय मात्रा में चिया बीज खाने के बाद ब्लड प्रेशर काफी कम पाया गया. इस वर्ष हुए एक अन्य अध्ययन से पुष्टि हुई है कि चिया के बीजों में अन्य चीजों के अलावा एंटीडायबिटीक और सूजन कम करने के भी गुण होते हैं.

क्या है जनरेटिव एआई

इससे यह जाहिर होता है कि चिया के बीज का सेवन करने से डायबिटीज से जूझ रहे लोगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ सकता है. ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी अस्पताल में डायबिटीज विशेषज्ञ आंद्रेयास फ्रिशे ने डीडब्ल्यू को बताया, "लेकिन किसी ने इलाज के बारे में कुछ नहीं कहा. इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि चिया के बीज का सेवन करने से डायबिटीज ठीक हो सकता है या इसे पूरी तरह से नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है.”

जबकि, वीडियो में ना सिर्फ गलत जानकारी फैलाई गई, बल्कि एक नकली डॉक्टर को भी दिखाया गया है. सोशल मीडिया ऐसे झूठे डॉक्टरों से भरा पड़ा है जो बेहतर स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह दे रहे हैं. कभी-कभी ये एआई डॉक्टर घरेलू उपचार के साथ-साथ सुंदरता बढ़ाने से जुड़ी सलाह भी देते हैं. जैसे, दांत को किस तरह सफेद बनाया जाए या दाढ़ी बढ़ाने से क्या फायदे हो सकते हैं.

एआई से चमकेंगे या बर्बाद होंगे वीडियो गेम्स

इनमें से कई वीडियो हिंदी में भी हैं. 2021 में एक कनाडाई अध्ययन में पाया गया कि भारत कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं पर गलत जानकारी वाला केंद्र बन गया था. आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका, ब्राजील या स्पेन जैसे देशों की तुलना में भारत में महामारी के संबंध में सबसे ज्यादा गलत जानकारी फैलाई गई. अध्ययन में बताया गया कि इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे कि इंटरनेट तक ज्यादा लोगों की पहुंच, सोशल मीडिया के इस्तेमाल में बढ़ोतरी, यूजर को डिजिटल तकनीक के बारे में कम जानकारी वगैरह.

एआई जनरेटेड डॉक्टर आमतौर पर सफेद कोट और गले में स्टेथोस्कोप या स्क्रब पहने काफी भरोसेमंद दिखते हैं. ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में मेडिकल डिवाइस रेगुलेटरी साइंस के प्रोफेसर स्टीफन गिल्बर्ट ने बताया कि एआई जनरेटेड डॉक्टर लोगों को काफी ज्यादा गुमराह कर सकते हैं.

गिल्बर्ट ने एआई पर आधारित मेडिकल सॉफ्टवेयर पर रिसर्च किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह डॉक्टर के अधिकारों की जानकारी देने के बारे में है, जो आमतौर पर सभी समाज में अहम भूमिका निभाते हैं. दवा लिखना, लोगों का इलाज करना और यहां तक कि यह भी तय करना कि कोई जीवित है या उसकी मौत हो गई है, ये अधिकार सिर्फ डॉक्टर के पास होते हैं. जिस तरह से एआई डॉक्टर जानबूझकर गलत जानकारी दे रहे हैं ये कुछ खास मकसद से किए जा रहे हैं. इनका मकसद किसी खास प्रॉडक्ट, सेवा या दवा बेचना हो सकता है.”

क्या घरेलू उपायों से मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी ठीक हो जाती है?

दावा: एआई जनरेटेड एक डॉक्टर ने इंस्टाग्राम वीडियो में दावा किया कि "सात बादाम, 10 ग्राम मिश्री, और 10 ग्राम सौंफ को पीसकर 40 दिनों तक हर शाम गर्म दूध के साथ इसका सेवन करने से मस्तिष्क से जुड़ी किसी भी तरह की बीमारी ठीक हो जाएगी.” इस अकाउंट को फॉलो करने वालों की संख्या 2 लाख से अधिक है. वीडियो को 86,000 से अधिक बार देखा गया है.

डीडब्ल्यू फैक्ट चेक: गलत है दावा

जर्मन ब्रेन फाउंडेशन के अध्यक्ष फ्रैंक एर्बगुथ ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह दावा पूरी तरह से गलत है. उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस नुस्खे से मस्तिष्क की बीमारियों में कोई फायदा होता है. जर्मन ब्रेन फाउंडेशन की सलाह है कि अगर किसी को लकवा या बोलने में समस्या जैसे लक्षण महसूस हों, तो उन्हें तुरंत इलाज कराना चाहिए.

इस वीडियो में भी दूसरे मामलों की तरह एआई जनरेटेड डॉक्टर को दिखाया गया है. गिल्बर्ट कहते हैं कि इन नकली वीडियो की पहचान करना आसान है. इन कथित डॉक्टरों की तस्वीरें स्थिर दिखती हैं. इनके चेहरे पर ज्यादा हाव-भाव नहीं होते हैं, ये सिर्फ अपना मुंह चलाते हैं. गिल्बर्ट ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि आने वाले समय में चिकित्सा क्षेत्र पर एआई का नकारात्मक असर पड़ सकता है.

वीडियो में हेरफेर करने के अलावा, एआई अन्य तरीके से भी खतरा पैदा करते हैं, जैसे कि इलाज के दौरान जालसाजी. 2019 में इस्रायली अध्ययन पर काम कर रहे रिसर्चर झूठी तस्वीर वाले सीटी स्कैन तैयार करने में कामयाब रहे. सीटी स्कैन की इन तस्वीरों में ट्यूमर को जोड़ा या हटाया जा सकता है. सामान्य शब्दों में कहें, तो किसी से पैसे ऐंठने के लिए इस फर्जी रिपोर्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.

2021 के एक अध्ययन में इसी तरह के नतीजे मिले और दिल की फर्जी धड़कन दिखाने वाले इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम तैयार किए गए. चैटबॉट से एक और खतरा यह हो सकता है कि उनके जवाब गलत होते हुए भी सही लग सकते हैं. गिल्बर्ट ने कहा, "जब लोग सवाल पूछते हैं, तो बॉट्स और ज्यादा जानकारी देते हैं. यह मरीजों के लिए काफी खतरनाक हो सकता है.”

इन तमाम खतरों के बावजूद, हाल के वर्षों में चिकित्सा के क्षेत्र में एआई की भूमिका तेजी से बढ़ी है. डॉक्टर इसकी मदद से एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड की तस्वीरों का विश्लेषण और लोगों का इलाज कर रहे हैं.

गिल्बर्ट ने कहा, "कई देशों में डॉक्टरों से सलाह लेना काफी महंगा है या सभी लोगों को यह सुविधा नहीं मिल पाती. इसलिए, लोगों तक जानकारी पहुंचना फायदेमंद साबित हो सकता है.”

हालांकि, सवाल यह है कि क्या दी गई जानकारी सही और भरोसेमंद है? इसकी जांच करने के लिए यूजर को किसी बीमारी से जुड़े लक्षणों का पता लगाना चाहिए. इसके लिए, उन्हें प्रमाणित लोगों के वीडियो देखने चाहिए या वैज्ञानिक अध्ययन पढ़ने चाहिए.