देहरादून: भारत में धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिश की जाती है. जिसके बाद कुछ ऐसी घटनाएं होती है जो इंसानियत पर सवाल खड़े कर देती है. लेकिन इसके विपरीत आज भी हमारे देश में कुछ ऐसे लोग मौजूद है जो नफरत फैलानेवालों को करारा जवाब देते है या फिर यूं कहें अपने काम से एक मिसाल के तौर पर सामने आते है. ऐसे लोग अमन और शांति चाहते है इनके लिए सबसे ऊपर सिर्फ इंसानियत होती है. ऐसे ही एक वाकये के बारें में हम आपको बताना चाहते है. फ़िलहाल रमज़ान का पाक महीना चल रहा है. जिसे नेकियों का महीना कहते है. लोग रोज़ा रखते हैं. इस दौरान सूरज के निकलने के बाद से लेकर उसके डूबने तक कुछ खाते-पीते नहीं है. बता दें कि देहरादून के एक आदमी ने अपना रोज़ा तोड़ा लेकिन सबका दिल जीत लिया.
आरिफ खान नामक शख्स ने रोजा तोड़कर एक युवक की जान ही नहीं बचाई, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं। साथ ही मजहब के नाम पर इंसान और इंसानियत को बांटने वालों की बोलती बंद कर दी.
जानकारी के अनुसार मैक्स अस्पताल में भर्ती अजय बिजल्वाण (20) की हालत बेहद गंभीर हो गयी. लीवर में बीमारी के चलते अजय का प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगा और शनिवार की सुबह तक पांच हज़ार से भी कम हो गयी इलाज कर रहे डॉक्टरों ने पिता खीमानंद बिजल्वाण से कहा कि अगर ए-पॉजिटिव ब्लड नहीं मिला तो जान को खतरा हो सकता है.
तमाम कोशिशों के बावजूद भी कोई डोनर नहीं मिला. इसके बाद खीमानंद के रिश्तेदारों ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर मदद मांगी. जिसके बाद मामले की जानकारी नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट राइट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरिफ खान को सोशल मीडिया से ये ख़बर मिली. आरिफ बिना देर किए खून देने को तैयार हो गया जिसके बाद डॉक्टरों ने आरिफ से कहा कि खून देने से पहले आप कुछ खाना पड़ेगा, यानी की रोजा तोड़ना पड़ेगा.
इसके बाद आरिफ खान तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उनके खून देने के बाद चार लोग और भी पहुंचे. इस पुरे वाकये पर आरिफ खान ने कहा कि अगर मेरे रोजा तोड़ने से किसी की जान बच सकती है तो मैं पहले इंसानियत निभाऊंगा. मेरे लिए तो यह सौभाग्य की बात है कि मैं किसी के काम आ सका. आरिफ ने आगे कहा कि रमजान में जरूरतमंदों की मदद करने का बड़ा महत्व है.