हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक श्रावण मास की पूर्णिमा से एक दिन पूर्व अथवा श्रावण मास के अंतिम शुक्रवार को वरलक्ष्मी का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान का विधान है. यह पूजा मुख्यतया आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर तमिलनाडु, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनाया जाता है. हिंदू धर्म में वरलक्ष्मी का विशेष महत्व होता है. इस दिन सुहागनें अपने पति और संतान के लंबे एवं स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखते हुए वरलक्ष्मी स्वरूप लक्ष्मीजी की पूजा करती हैं. वरलक्ष्मी की कृपा से घर में सुख एवं समृद्धि आती है. इस वर्ष वरलक्ष्मी की पूजा 12 अगस्त शुक्रवार को होगी. आइये जानें कौन हैं वरलक्ष्मी और क्या है इनकी पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त इत्यादि.
कौन हैं वरलक्ष्मी?
हिंदू धर्म ग्रंथों में माता लक्ष्मी को समृद्धि एवं ऐश्वर्य का पूरक माना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार वरलक्ष्मी वस्तुतः अष्ट लक्ष्मी हैं जो पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्यार, धन, बल, शांति, प्रसिद्धि, सुख, पृथ्वी और विद्या का अष्ट स्वरूप हैं. वस्तुतः वरलक्ष्मी माँ लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं. वरलक्ष्मी की पूजा एवं व्रत करने से उपयुक्त लाभ प्राप्त होते हैं, और व्यक्ति की सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं. लोग श्रद्धा एवं निष्ठा से वरलक्ष्मी की पूजा कर सकें, इसलिए इस दिन संबंधित राज्यों में वैकल्पिक अवकाश भी होता है. यह भी पढ़ें : Ashura 2022: आशुरा पर ये मैसेजेस HD Wallpapers और GIF Images के जरिए भेजकर इमाम हुसैन की कुर्बानी को करें याद
वरलक्ष्मी व्रत पूजा मुहूर्त
इस वर्ष वरलक्ष्मी पूजा के चार विभिन्न कालों में मुहूर्त का निर्माण हो रहा है. महिलाएं अपनी सुविधानुसार मुहूर्त पर पूजा-अनुष्ठान कर सकती हैं.
प्रातः पूजा का मुहूर्तः 06.14 A.M. से 08.32 A.M. तक
अपराह्न पूजा का मुहूर्तः 01.07 P.M. से 03.26 P.M. तक
संध्याकाल पूजा मुहूर्तः 07.12 P.M. से 08.40 P.M. तक
रात्रिकाल पूजा मुहूर्तः 11.40 P.M. से 01.35 A.M. तक
कैसे करें पूजा एवं अनुष्ठान!
वरलक्ष्मी पूजा के दिन पूरे घर एवं मंदिर की अच्छे से सफाई करें. सुहागन स्त्रियां स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. माँ वरलक्ष्मी का ध्यान कर व्रत एवं पूजन का संकल्प लें. घर के मुख्यद्वार एवं मंदिर के सामने रंगोली सजाएं. उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओह मुंह करके बैठें. चांदी अथवा कांस्य के कलश पर स्वास्तिक बनाएं. कलश में चावल, सिक्के, सुपारी और पांच अलग-अलग प्रजाति के हरे पत्ते रखें. कलश पर आम की पत्तियां सजायें, नारियल पर स्वास्तिक बनाकर कलश पर रखें. अब कलश को चावल के ढेर पर रखें. पास में माँ लक्ष्मी की तस्वीर रखें. इस पर गंगाजल का छिड़काव करें. धूप-दीप प्रज्जवलित करते हुए प्रथम आऱाध्य श्रीगणेश जी की स्तुति करें. अब माँ लक्ष्मी के निम्न मंत्र का जाप करें.
कुरु कुरु फट् श्रीयं देहि, ममापति निवारय निवारय स्वाहा।।
लक्ष्मीजी को सिंदूर अर्पित करें. अब पुष्प एवं अक्षत चढ़ाएं और घर पर बने गाय के दूध की मिठाई का भोग लगाएं. लक्ष्मीजी की स्तुति गान करें, और अंत में आरती उतारें.
अगले दिन प्रातः स्नान-ध्यान के पश्चात कलश के समक्ष धूप जलाएं. इसके चावल को घर के चावल के साथ मिला दें, ताकि घर में सुख-समृद्धि का वास हो. पूजा में प्रयुक्त गंगाजल को पूरे घर में छिड़काव करें. ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां नहीं आती हैं.