सनातन धर्म में हर पूर्णिमा का महत्व होता है, लेकिन आश्विन मास की पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा कहते हैं, को हिंदू पंचांग में सबसे शुभ पूर्णिमा बताया गया है, जो आर्थिक, धार्मिक और आयुर्वेदिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होता है. यह पूर्णिमा मानसून की समाप्ति और शरद ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है, जो कृषि की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है. कुछ स्थानों पर शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस वर्ष 6 अक्टूबर 2025 को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा. आइये जानते हैं, इसके आध्यात्मिक एवं आयुर्वेदिक महत्व के बारे में साथ ही जानेंगे इसे रास पूर्णिमा क्यों कहा जाता है. यह भी पढ़ें : Durga Puja 2025: कब शुरू हो रहा है दुर्गा पूजा? जानें ‘बिल्व निमंत्रण’ से ‘सिंदूर खेला’ तक विभिन्न रस्म एवं उनके महत्व!
शरद पूर्णिमा पूजा का मुहूर्त
आश्विन पूर्णिमा प्रारंभः 12.23 PM (06 अक्टूबर 2025)
आश्विन पूर्णिमा समाप्तः 09.16 बजे AM (07 अक्टूबर 2025)
चंद्रोदय कालः 05.33 PM से 05.40 PM तक
विभिन्न स्थानों पर चंद्रोदय का समय भिन्न हो सकता है
शरद पूर्णिमा का महत्व एवं विभिन्न अनुष्ठान
शरद पूर्णिमा पर परंपराओं के अनुरूप विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं.
स्वास्थ्यवर्धक केसर की खीरः पुरानी परंपराओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात बहुत से लोग केसर की खीर बनाकर रात भर खुली चांदनी में रखते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से चंद्रमा की किरणें खीर को स्वास्थ्यवर्धक बनाती है. रात भर चांदनी में रखने के बाद इस खीर को अगले दिन सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.
क्या है कोजागरी पूजाः शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी घरों में प्रवेश करती हैं, और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. देवी लक्ष्मी के स्वागत स्वरूप भक्त अपने घरों की सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं, प्रसाद में केसर की खीर चढ़ाते हैं. माता लक्ष्मी का मंत्रोच्चारण के साथ उनकी पूजा करते हैं. 'कोजागरी' का अर्थ है ‘कौन जाग रहा है.’ मान्यता है कि इस रात्रि जागरण एवं लक्ष्मी-पूजा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं.
आयुर्वेदिक महत्वः आयुर्वेदिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखी खीर का सेवन करने से पित्त और एसिडिटी मसलन एसिडिटी, पेट में जलन और स्किन रैशेज से राहत मिलती है. यही नहीं शरद पूर्णिमा की रात की किरणें दमा के रोगियों के लिए भी लाभकारी होती हैं, यह आंखों के इंफेक्शन में राहत देने में सहायक होती है. चंद्रमा का मन से गहरा संबंध माना जाता है. चांदनी रात में खीर का सेवन करने से मानसिक शांति मिलती है, और तनाव कम होता है.
शरद पूर्णिमा को 'रास पूर्णिमा' क्यों कहा जाता है?
मान्यता है कि इस रात चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त होता है, उसकी किरणों से अमृत बरसता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार उसी रात भगवान कृष्ण ने वृंदावन स्थित यमुना तट पर गोपियों के साथ रास नृत्य किया था. जिसे 'महारास' भी कहते हैं, यह महज सांसारिक नृत्य नहीं, बल्कि दिव्य घटना भी मानी जाती है, क्योंकि श्रीकृष्ण ने गोपियों की इच्छा की पूर्ति करते हुए हर गोपियों के साथ नृत्य किया था. यह रासलीला आध्यात्मिक प्रेम, भक्ति और दिव्य मिलन का प्रतीक मानी जाती है, जो दर्शाती है कि ईश्वर हर भक्त के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ता है. यह दिवस श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम और भक्ति के उत्सव स्वरूप मनाया जाता है.













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