
Parshuram Jayanti 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है. विष्णु पुराण के अनुसार इसी दिन ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी की कोख से भगवान विष्णु ने छठे अवतार के तहत परशुराम के रूप में अवतार लिया था. जो अपनी योद्धा भावना, अपार ज्ञान और धर्म के प्रति गहरी भक्ति के लिए जाने जाते हैं. परशुराम के बारे में सतयुग से कलयुग तक कई कथाएं मिलती है. मान्यता यह भी है कि कलयुग में मौजूद आठ चिरंजीवी देवों में एक परशुराम भी है, जो आज भी पृथ्वी पर मौजूद है. परशुराम जयंती पर आइये जानें कौन हैं परशुराम, उनका पूर्व नाम क्या था, और क्या है उनके अनुष्ठान का नियम.
परशुराम जयंती का महत्व
सात चिरंजीवी देवों में से एक, भगवान परशुराम, द्वापर युग में थे. कहा जाता है कि जब राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि से दिव्य कामधेनु छीनने का प्रयास किया, और जमदग्नि ने विरोध किया, तो कार्तवीर्य कामधेनु को छीनकर ले गये. इससे क्रोधित होकर परशुराम ने राजा का वध कर दिया. इससे क्रोधित होकर कार्तवीर्य के पुत्रों ने जमदग्नि को मारकर बदला लिया. पिता की मृत्यु के बाद, परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त करने की कसम खाई. उन्होंने क्षत्रिय कुल का इक्कीस बार संहार किया. यह भी पढ़े: Parshuram Jayanti 2025 Greetings: परशुराम जयंती पर ये WhatsApp Stickers, HD Images और Wallpapers शेयर कर दें बधाई
परशुराम जयंती 2025: मूल तिथि
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारंभः 05.31 PM (29 अप्रैल 2025, मंगलवार)
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्तः 02.12 PM (30 अप्रैल 2025, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार 30 अप्रैल 2025 को परशुराम जयंती मनाई जाएगी.
परशुराम जयंतीः पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
भगवान परशुराम की पूजा के लिए इस दिन पांच शुभ योगों का संयोग बन रहा है
ब्रह्म मुहूर्त: 04.16 AM से 04.59 AM तक
अभिजीत मुहूर्त: 11.52 AM से 12.45 PM तक
अमृत काल: 11.52 AM से 12.45 PM तक
त्रिपुष्कर योग: 05.42 AM से 05.31 PM तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: 05.42 AM से 06.47 PM तक
परशुराम का पूर्व नाम क्या था
पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम से पूर्व उनके माता पिता ने उनका नाम राम रखा था. माना जाता है कि भगवान शिव ने उन्हें शस्त्र शिक्षा दी थी. शस्त्र शिक्षा में पारंगत होने पश्चात भगवान शिव ने उन्हें उपहार स्वरूप फरसा देते हुए उनका नाम परशुराम रख दिया था, साथ ही उन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मण और श्रेष्ठ योद्धा होने का भी आशीर्वाद दिया.
परशुराम उग्र स्वभाव के क्यों थे?
पौराणिक ग्रंथों में महर्षि दुर्वासा के बाद परशुराम को सबसे क्रोधी ऋषि माना जाता है. भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था. विवाह के बाद सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की थी. तब भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु-स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष एवं तुम्हारे माता-पिता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करें. इसके बाद ही फल का सेवन करना. लेकिन सत्यवती व उनकी माँ इस नियम का पालन नहीं कर पाईं. भृगु अपनी दिव्य शक्ति सारी बात समझ गये. उन्होंने सत्यवती से कहा कि तुम लोगों ने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है. अब तेरा पुत्र ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा, और तेरी मां का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण गुणों वाला होगा. तब सत्यवती ने प्रार्थना किया कि, मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो, भले मेरा पौत्र ऐसे गुण वाला हो जाए. कुछ दिनों के बाद सत्यवती ने जमदग्नि को जन्म दिया. उनका विवाह रेणुका से हुआ. जमदग्नि के 5 पुत्र हुए, उनमें सबसे छोटे पुत्र परशुराम थे.