सनातन धर्म में व्रत एवं उपवास की परंपरा ऋषि-मुनियों के समय से चली आ रही है. इसमें एकादशी का महात्म्य तो सबसे ज्यादा रहा है. साल में कुल चौबीस एकादशियां होती हैं, हर एकादशी का अपना महत्व होता है. कार्तिक मास में कृष्णपक्ष में पड़नेवाली एकादशी जिसे रमा एकादशी कहते हैं उसका भी विशेष महात्म्य होता है. बात करते हैं रमा एकादशी व्रत के महात्म्य, एवं पूजा विधान तथा इससे मिलनेवाले सुफल की. इस वर्ष 24 अक्टूबर 2019 रविवार के दिन रमा एकादशी का संयोग बना है.
क्या है रमा एकादशी-
कार्तिक मास को भगवान विष्णु का मास माना जाता है. यद्यपि इन दिनों विष्णु भगवान योग-निद्रा के बाद कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन जागते हैं. ऐसे में कृष्णपक्ष में आनेवाले अधिकांश पर्वों का संबंध माता लक्ष्मी से जुड़ा होता है. इसमें दीपावली को माता लक्ष्मी का सबसे बड़ा पर्व माना जा सकता है, यही वजह है कि माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना कार्तिक कृष्णपक्ष एकादशी से उनका उपवास शुरू हो जाता है. माता लक्ष्मी का ही एक नाम ‘रमा’ है, इसीलिए इस दिन को रमा एकादशी भी कहते हैं. एक बार युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण से इस व्रत के संदर्भ में पूछे जाने पर उन्होंने बताया था कि इस व्रत को करने से लक्ष्मीजी की विशेष कृपा बरसती है, व्यक्ति सुख, शांति एवं समृद्धि का सुख भोग कर स्वर्गलोक सिधारता है.
व्रत एवं पूजा विधान-
कार्तिक मास की दशमी से ही रमा एकादशी का व्रत शुरू हो जाता है. यानी दशमी को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि करने के बाद रमा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की विधिवत धूप, दीप, प्रसाद, पुष्प एवं फलों से पूजा करते हैं. इस दिन तुलसी पूजन का भी विशेष महात्म्य है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप स्वरूप भगवान व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
रमा एकादशी का महात्म्य-
जो व्यक्ति रमा एकादशी व्रत करता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं, उसके जीवन में आयी सभी बाधाएं दूर होती हैं. इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है. रमा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति धर्म, अर्थ एवं मोक्ष के साथ पुरुषार्थ की प्राप्ति करता है.
रमा एकादशी व्रत तिथि व शुभ मुहूर्त-
पारणः प्रात: 06:32 बजे से 08:45 बजे तक (25 अक्टूबर 2019)
एकादशी तिथि आरंभः 01:09 बजे (24 अक्टूबर 2019)
एकादशी तिथि समाप्तः 22:19 बजे (24 अक्टूबर 2019)
रमा एकादशी की पौराणिक कथा-
एक समय मुचुकुंद नामक राजा थे. वह बहुत धर्म-कर्म करते थे. वह विष्णु जी के अनन्य भक्त भी थे. उनकी कन्या चंद्रभागा का विवाह हुआ राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था. एक दिन कार्तिक मास की दशमी के दिन शोभन अपने ससुराल आये. उसी दिन राजा ने घोषणा करवाई कि एकादशी के दिन सभी उपवास रखेंगे. शोभन भूख सहन नहीं कर सकता था. फिर भी शोभन को उपवास रखना पड़ा. पारण के दिन सूर्योदय से पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा पिता के घर रहने लगी. उधर एकादशी का व्रत करने से शोभन को मंदरांचल पर्वत पर कुबेर जैसा दिव्य राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के विप्र सोम तीर्थ यात्रा करते-करते हुए उस दिव्य नगर में पंहुचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को पहचान लिया. शोभन ने भी उसे पहचान लिया और चंद्रभागा के बारे में पूछा. सोम ने शोभन से पूछा कि यह सब कैसे हुआ. शोभन ने रमा एकादशी व्रत की महिमा बतायी, लेकिन उसे चिंता थी कि विवशतावश किये इस उपवास का फल स्थाई नहीं होगा. यह बात आप चंद्रभागा को जरूर बताना. तीर्थयात्रा कर सोम चंद्रभागा से मिले, और सारा हाल बताया. चंद्रभागा सोम के साथ वाम ऋषि से मिले. महर्षि के मंत्र और चंद्रभागा द्वारा एकादशी व्रत के प्रताप से वह भी पति के पास जा पंहुची. अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया. श्रीकृष्ण ने एकादशी व्रत का महात्म्य बताते हुए यह भी कहा कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है.