
दुनिया भर में हर साल अरबों टन खाना बर्बाद होता है, वहीं करोड़ों लोग भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं. यह स्थिति न केवल सामाजिक अन्याय का प्रतीक है, बल्कि संसाधनों की बर्बादी, पर्यावरणीय संकट और असमान विकास को भी दर्शाता है. प्रश्न उठता है, इन विरोधाभाषी पहलू को लेकर हम कितने सजग और गंभीर हैं. इन परिस्थितियों से पार पाने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ हर वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाता है, ताकि सुरक्षित, पौष्टिक एवं टिकाऊ खाद्य के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके, तथा वैश्विक खाद्य तंत्र में मौजूद विसंगतियों पर विचार इस समस्या के निदान में मदद मिले. विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर आइये जानते हैं इस बारे में कुछ रोचक जानकारियां...
खाद्य अपशिष्ट की भयावहता:
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर साल लगभग 1.3 अरब टन भोजन बर्बाद होता है. यह खाद्य पंच सितारा होटलों, घरों, रेस्तरां, खुदरा दुकानों, कृषि उत्पादनों, सरकारी गोदामों एवं आपूर्ति श्रृंखला में होता है. इसमें उपयोग न किए गए फल-सब्जियां, बचा हुआ पका भोजन, और एक्सपायरी खाद्य उत्पाद शामिल हैं. भारत जैसे सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में शादी-विवाह, धार्मिक आयोजनों एवं छोटे-बड़े होटल इंडस्ट्री में भारी मात्रा में भोजन बर्बाद होता है. जिसके प्रति सरकारी और गैर सरकारी संगठन चुप्पी साधे होते हैं. यह भी पढ़ें : Nirjala Ekadashi 2025: आज है निर्जला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पारण समय और व्रत कथा
आइने का दूसरा पहलू
वैश्विक रिपोर्ट्स बताती हैं कि लगभग 82 करोड़ लोग आज भी हर रात भूखे सोते हैं. भारत की बात करें तो यहां भी करीब 19 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं. वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index 2023 के अनुसार भारत की स्थिति चिंताजनक है). यह विरोधाभास इस बात को दर्शाता है कि भोजन की उपलब्धता समस्या नहीं है, बल्कि वितरण प्रणाली और सामाजिक असमानता ही असली चुनौती है.
सामाजिक और पर्यावरणीय परिणाम:
खाद्य अपशिष्ट से ग्रीन हाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है. खाली पेट अथवा भूख से विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्ग व्यक्तियों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है,. यह असमानता सामाजिक अशांति, शिक्षा व्यवस्था में बाधा और गरीबी के चक्र को भी बढ़ाती है.
समाधान और प्रयास
भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 5 जुलाई 2013 को लागू किया गया था. इस अधिनियम के बाद से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया जा रहा है.
नीति स्तर पर: भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 5 जुलाई, 2013 लागू किया गया है, जो गरीबों को सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराता है. FSSAI का 'Save Food, Share Food' अभियान।
सामाजिक स्तर पर: NGO और समुदाय आधारित भोजन बैंक (Food Banks) का गठन. शादी-समारोहों में बचा खाना जरूरतमंदों तक पहुँचाना.
व्यक्तिगत स्तर पर: खाना उतना ही बनाएं, जितनी जरूरत हो.
बचे हुए भोजन का पुनः उपयोग. खाद्य अपशिष्ट को खाद में बदलना.
"जब एक तरफ लोग भूख से मर रहे हों और दूसरी ओर खाना कचरे में फेंका जा रहा हो, तो यह केवल एक सामाजिक त्रासदी नहीं, बल्कि नैतिक विफलता भी है."
हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर मिलकर इस विरोधाभास को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। तभी सुरक्षित और समान खाद्य भविष्य" की कल्पना साकार हो सकेगी।