‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ के इस अवसर पर पहली जरूरत है हमारे देश की खाद्य सुरक्षा और उससे जुड़ी व्यवस्था, संभावनाएं एवं समस्याओं पर नजर रखने की. खाद्य सुरक्षा का मूल अर्थ है, देश की जनता के लिए किसी भी हालात में भोजन की उपलब्धता. उस पर उसकी पहुंच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य. जब भी अनाज के उत्पादन या उसके वितरण पर किसी भी वजह से और किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होती है, तो इसका सीधा असर गरीब तबके पर पड़ता है. किसी भी देश में खाद्य सुरक्षा उसकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर करती है.
क्या है खाद्य सुरक्षा
सहज जीवन जीने के लिए भोजन उतना ही जरूरी है जितना श्वास लेने के लिए ऑक्सीजन यानी शुद्ध वायु की. लेकिन खाद्य सुरक्षा का आशय पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी ही नहीं बल्कि उससे कहीं अधिक है. खाद्य सुरक्षा के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना निहायत जरूरी है.
* खाद्य उपलब्धता का आशय देश में खाद्यान्न का वर्तमान उत्पादन, खाद्य की आयात व्यवस्था और सरकारी अनाज के भंडारों में जमा पिछले वर्षों का कुल स्टॉक है.
* सही समय पर जरूरतमंदों तक पर्याप्त खाद्यान्नों की आपूर्ति निर्विरोध बनी रहे.
* खाद्यान्न सामर्थ्य यानी जरूरतमंदों तक भोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु भंडारण के अनुरूप पर्याप्त धन उपलब्ध हो.
प्राकृतिक आपदाएं और खाद्य सुरक्षा पर नियंत्रण
किसी भी दैवीय आपदा में अनाजों की उपज पर असर पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे में जिस क्षेत्र में दैवीय आपदा का असर होता है, वहां खाद्यान्नों की कमी हो ही जाती है. खाद्य की कमी एवं बढ़ती मांग के कारण खाद्यों पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा तकलीफ आर्थिक रूप से विपन्न लोगों पर पड़ता है. वे बढ़ी हुई कीमतों पर खाने-पीने की चीजें खरीदने में असमर्थ होते हैं. अगर यह आपदा बड़े हिस्सों में आती है तो समस्याएं भी बड़ी और अधिक समय तक बनी रह सकती हैं. परिणामस्वरूप भूखमरी के हालात पैदा होते हैं. इस पर सही समय पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो यही अकाल का रूप ले सकती है.
खाद्यान्न समस्याएं अब पहले जैसी नहीं रहीं
एक समय था जब दुनियाभर में भारत की गरीबी बिकती थी. आए दिन भुखमरी, अकाल जैसी आपदाएं हमारे देश में मुंह उठाती रहती थीं. विदेशों में इसे बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन आज हालात हमारे पक्ष में बन रहे हैं. हमारा आपूर्ति विभाग खाद्यान्न समस्याओं पर काफी हद तक नियंत्रण रखने में सफल हुआ है. अकाल और भुखमरी जैसी समस्याओं को पीछे छोड़कर भारत खाद्य भंडारण में काफी हद तक समर्थ हो चुका है. निरंतर बढ़ती आबादी के बावजूद अन्न भण्डारों में पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने का हममें सामर्थ्य है. किसी भी आपात परिस्थितियों से निपटने के लिए हमारे भंडारण में पर्याप्त अनाज मौजूद है. आज केंद्र का आपूर्ति विभाग कमजोर एवं गरीब परिवार को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने में समर्थ है. हमारे भंडारण में सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाओं के माध्यम से आर्थिक रूप से गरीबों विशेषकर बच्चों और महिलाओं के लिए पर्याप्त आहार और पोषण की व्यवस्था है. देश की लगभग सवा सौ करोड़ से भी अधिक लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि अनुसंधान एवं विकास ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे फसल, बागवानी और पशु-पक्षी उत्पादों के कुल उत्पादन और उत्पादकता में क्रांतिकारी वृद्धि हुई है.
एक कड़वा सच यह भी
अन्न भंडारण के पर्याप्त साधनों के बावजूद इस कड़वी सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि भूखमरी और कुपोषित में हमारे देश के आंकड़े अच्छे नहीं हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में लगभग 24000 लोग प्रतिदिन भूख से मरते हैं. इस संख्या का एक तिहाई हिस्सा भारत का माना जाता है. यानी भूख से मरने वाले करीब 24000 में 18000 बच्चे है. इसका एक तिहाई हिस्सा यानी 6000 बच्चे भारत के हैं. एक तरफ देश के गरीब तबकों में भुखमरी है. वहीं प्रशासन की लापरवाही से लाखों टन अनाज बारीश की भेंट चढ़ जाता है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष सुरक्षित भंडारण के अभाव में गेहूं सड़ने से करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान होता है. तमाम योजनाएं बनती हैं, मगर कागजों से यर्थाथ तक नहीं पहुंच पातीं. अगर इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए तो हमारे देश में कोई भूखा नहीं मरेगा.