माघ माह में शिव-भक्तों को एक ही तिथि में शिवजी के दो व्रत एवं पूजा का दुर्लभ अवसर मिल रहा है, एक माघ मास का प्रदोष और दूसरा शिवरात्रि है. स्कंध पुराण में भगवान शिव के व्रत एवं पूजा की अपरंपार महिमा वर्णित है. एक ही तिथि में भगवान शिव के दो विभिन्न व्रत एवं पूजा का महासंयोग दुर्लभ से ही प्राप्त होता है. माघ मास की 30 जनवरी 2022 को प्रदोष व्रत के साथ ही मासिक शिवरात्रि को महायोग निर्मित हो रहा है. यानी प्रदोष व्रत रखने वाले को शिवरात्रि व्रत का भी पुण्य-लाभ प्राप्त होगा. लेकिन इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त से पूर्व और शिवरात्रि की पूजा सूर्यास्त के पश्चात रात में तय मुहूर्त पर करना ही श्रेयस्कर माना जाता है. ज्योतिषविदों के अनुसार शिव भक्तों के लिए यह दिन महापुण्यकाल का होगा. इस दिन शिवजी का व्रत एवं विधि-विधान से पूजा करने वाले जातक की हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं. उसके गृहस्थ जीवन में तमाम सुख, सौभाग्य, आरोग्य एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है, और मृत्योपरांत मोक्ष प्राप्त होता है. आइये जानें प्रदोष व्रत एवं शिवरात्रि पूजा का महात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं प्रदोष व्रत कथा.
प्रदोष व्रत एवं पूजा का मुहूर्त
त्रयोदशी प्रारंभ 08.37 PM (29 जनवरी, शनिवार 2022) से
त्रयोदशी समाप्त 05.28 PM (30 जनवरी, रविवार 2022) तक
इस तरह प्रदोष व्रत 30 जनवरी 2022 को पड़ रहा है.
मासिक शिवरात्रि की पूजा का मुहूर्त
माघ मास कृष्णपक्ष की चतुर्दशी प्रारंभ 05.28 PM (30 जनवरी रविवार 2022) से
माघ मास कृष्णपक्ष की चतुर्दशी समाप्त 02.18 PM (31 जनवरी सोमवार 2022) तक
चूंकि शिवरात्रि की पूजा रात्रिकाल में होती है, इसलिए यह व्रत एवं पूजा 30 जनवरी को सम्पन्न किया जायेगा.
भगवान शिव की पूजा-विधि
प्रदोष व्रत एवं मासिक शिवरात्रि व्रत के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव एवं माता पार्वती का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. ध्यान रहे शिवजी के व्रत में किसी भी प्रकार से नमक का सेवन वर्जित है. प्रदोष काल एवं मासिक शिवरात्रि के शुभ मुहूर्त के अनुरूप भगवान शिव एवं माता पार्वती के समक्ष धूप-दीप प्रज्जवलित करें. इसके पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र, शमी का पत्ता, बेर फल, भांग, धतूरा, मदार पुष्प, सफेद चंदन अथवा भस्म, शहद, गंगा जल, गाय का दूध, शक्कर अर्पित करते हुए भगवान शिव के निम्न मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें. शिव चालीसा एवं प्रदोष व्रत की कथा पढ़ने के पश्चात भगवान शिव की आरती उतारें. यह भी पढ़े: Basant Panchami 2022: कब है बसंत पंचमी? क्यों करते हैं इस दिन मां सरस्वती की पूजा? जानें इस दिन का महात्म्य, पूजा-विधि, मुहूर्त एवं मंत्र!
प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ भिक्षा लेकर संध्याकाल में घर लौटती थी. एक दिन उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखा. वस्तुतः वह विदर्भ का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता की हत्या कर राज्य हड़प लिया था. उसकी माँ की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. ब्राह्मणी बालक को अपने साथ लाकर उसका भी पालन-पोषण करने लगी. एक दिन ब्राह्मणी दोनों बच्चों के साथ देव मंदिर गई. वहां उसे ऋषि शाण्डिल्य ने बालक का संपूर्ण परिचय देते हुए उसे प्रदोष व्रत करने की सलाह दी, ऋषि के सुझाव से तीनों ने प्रदोष व्रत करना शुरू किया.
एक दिन भ्रमण के दौरान उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं दिखीं. ब्राह्मणी व उसका पुत्र तो घर आ गये, मगर धर्मगुप्त अंशुमती नामक गंधर्व कन्या पर मोहित होकर उससे बात करने लगा. अंशुमती ने धर्मगुप्त से कहा कि विवाह के लिए वह उसके पिता से मिले. अगले दिन वह अंशुमती के पिता से मिला. ब्राह्मणी और अंशुमती के पिता ने दोनों का विवाह करवा दिया. यह सब ब्राह्मणी द्वारा प्रदोष व्रत रखे जाने का पुण्य-फल था. स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत, पूजा के साथ प्रदोष कथा पढने या सुनने वाले के जीवन में कभी भी दरिद्रता नहीं आती.