सनातन धर्म में मार्गशीर्ष सोम प्रदोष का विशेष महत्व है, क्योंकि यह सोमवार, जिसे भगवान शिव का प्रिय दिन माना जाता है और प्रदोष यानी शिवजी की आराधना के शुभ समय का दिव्य संगम है. इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा-व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, अच्छी सेहत, सुख-समृद्धि, शांति और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके अलावा, यह संतान सुख और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस वर्ष मार्गशीर्ष सोम प्रदोष व्रत 17 नवंबर 2025 को रखा जाएगा. आइये जानते हैं इसके विशेष महत्व, मुहूर्त, मंत्र, पूजा-विधि एवं व्रत कथा के बारे में... यह भी पढ़ें :Utpanna Ekadashi 2025: उत्पन्ना एकादशी व्रत कब रखा जाएगा? जानें इस दिन क्या करें और क्या करने से बचें!
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी प्रारंभः 04.47 AM (17 नवंबर 2025)
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी समाप्तः 07.12 AM (18 नवंबर 2025)
प्रदोष काल के नियमों के अनुसार 17 नवंबर 2025 को सोम प्रदोष व्रत एवं पूजा की जाएगी.
प्रदोष काल पूजा का शुभ मुहूर्तः संध्याकाल 05.29 PM से 08.09 PM तक
शुभ योगः इस दिन अभिजीत योग, प्रीति योग एवं आयुष्मान योगों का संयोग का निर्माण हो रहा है. इस योग में भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करने से साधक की हर कामना पूरी होती है.
मार्गशीर्ष सोम प्रदोष का महत्व
प्रदोष शब्द दो भागों से बना है. ‘प्र’ अर्थात श्रेष्ठ एवं ‘दोष’ यानी पाप, ये नकारात्मकता. इस तरह प्रदोष का अर्थ है वह समय और व्रत जो सारे पापों को नष्ट कर श्रेष्ठ फल देनेवाला होता है. सोमवार और प्रदोष भगवान शिव का विशेष दिन होने से इस दिन शिवजी की पूजा-व्रत करने वाले जातकों के सभी दुख और कष्ट समाप्त होते हैं, मानसिक शांति मिलती है. यह व्रत संतान-प्राप्ति की कामना की पूर्ति करती है, दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है, कुंडली के चंद्र दोष दूर होते हैं, अन्य ग्रहों की नकारात्मक शक्तियां शांत होती हैं, एवं जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन शिवलिंग का दर्शन अत्यंत पुण्यदायी होता है.
व्रत एवं पूजा-विधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान कर भगवान शिव का ध्यान करें, व्रत-पूजा का संकल्प लें. पूरे दिन उपवास रखकर शाम को पूजा की तैयारी करें. ध्यान रहे प्रदोष काल सूर्यास्त के लगभग 45 मिनट बाद तक का समय होता है. भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा का यही श्रेष्ठतम समय होता है. मुहूर्त के अनुरूप धूप-दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का 108 जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
ॐ नमः शिवाय
शिवलिंग का जल, दूध, शहद और बेल-पत्र से अभिषेक करें. शिवजी, देवी पार्वती औऱ भगवान गणेश को पुष्प, पान, सुपारी, दूर्वा, रोली, सिंदूर, फल एवं मिठाई चढ़ाएं. प्रदोष स्तोत्र या शिव चालीसा का पाठ करें. अंत में भगवान शिवजी की आरती उतारें, और प्रसाद वितरित करें.













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