Vinayak Chaturthi 2019: गणेश जी (Lord Ganesha) के 108 नामों में एक नाम है ‘विनायक’ और हिंदी मास की चतुर्थी की तिथि चूंकि गणेश जी के जन्म से संबद्ध है, इसलिए इस दिन को ‘विनायक चतुर्थी’ (Vinayak Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. कुछ गणेश भक्त विनायक चतुर्थी को ‘वरद विनायक’ के रूप में भी पूजते हैं. सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक माह दो चतुर्थी पड़ती है, एक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘वरद विनायक’ चतुर्थी कहते हैं. आइये जानें कि पौष मास में विनायक चतुर्थी (Paush Vinayak Chaturthi) की पूजा का विधान एवं इसके पीछे कौन सी कथा सुनने का प्रचलन है.
विनायक चतुर्थी का महात्म्य
पौष मास (30 दिसंबर 2019) में विनायक चतुर्थी के दिन श्री गणेश जी की दिन में दो बार पूजा-अर्चना का विधान है. पहली पूजा अपराह्न के समय और दूसरी पूजा मध्याह्न काल में की जाती है. मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन प्रातःकाल स्नानादि करके व्रत रखते हुए गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और गणेश जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
षोडशोपचार विधि से करें पूजा
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल रंग का वस्त्र धारण करें. सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं. इसके पश्चात एक छोटी चौकी को स्वच्छ कर उस पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाकर अपने सामर्थ्य अनुसार स्वर्ण, रजत, पीतल या फिर शुद्ध मिट्टी से बनी प्रतिमा स्थापित करें. धूप. दीप, नैवेद्य, पुष्प, रोली, अक्षत और दूब चढ़ा कर षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करें. प्रतिमा पर सिंदूर चढाते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ‘ॐ गं गणपतयै नम:’
प्रतिमा पर 21 दूर्वा दल चढ़ाएं. मान्यता है कि गणेश जी को दूर्वा बहुत पसंद है और इसके बिना गणेश जी की पूजा पूरी नहीं होती. लड्डू भी गणेश जी का प्रिय भोजन है, पूजा करते हुए उन्हें 21 लड्डुओं का भोग चढाएं. पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें.
सायंकाल के समय गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्त्रनामावली, गणेश चालीसा, गणेश पुराण आदि का पठन करें. इसके बाद संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्रीगणेश जी की आरती करें. स्वयं भोजन करने से पूर्व ब्राह्मण अथवा गरीब को भोजन करा कर यथायोग्य दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें. यह भी पढ़ें: Vinayak Chaturthi Vrat In Year 2020: विनायक चतुर्थी के व्रत से होती मनोवांछित फलों की प्राप्ति, साल 2020 में कब-कब पड़ रही है यह पावन तिथि, देखें पूरी लिस्ट
व्रत कथा
एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शिव कैलाश पर्वत से भोगावती नदी पर गए थे. उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बना कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसे पुत्र मानते हुए गणेश का नाम दिया. उन्होंने गणेश से द्वार पर ही पहरा देने का आदेश देते हुए कहा, -पुत्र जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं, किसी को भीतर मत आने देना.
इधर भोगावती नदी से स्नान कर जब शिव घर के भीतर प्रवेश करने लगे, तो बाल गणेश ने उन्हें रोका. हैरान शिवजी ने इसे अपमान मानते हुए क्रोधित हो अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. घर में प्रविष्ठ करते हुए वे अत्यंत क्रोध में थे. पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं. उन्होंने तुरंत दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को भोजन करने का आग्रह किया.
दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पूछा, 'यह दूसरी थाली क्यों लगाई है? पार्वती जी ने उन्हें बताया कि पुत्र गणेश बाहर बैठा पहरा दे रहा है, यह थाली उसी की है. यह सुनकर शिव जी चौंक गए. उन्होने पार्वती जी को बताया कि, उन्होंने तो उसका सिर धड़ से अलग कर उसका वध कर दिया है.
शिवजी के मुख से यह सुन पार्वती जी क्रोध से व्याकुल होकर विलाप करने लगीं. उन्होंने प्रण किया कि जब तक उनका पुत्र गणेश जीवित नहीं होगा, वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी. पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर मृत गणेश के सिर से जोड़कर उसे पुनर्जीवन प्रदान किया. इसके बाद ही उन्होंने पुत्र गणेश एवं पति शिव के साथ भोजन ग्रहण किया.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.