Varuthini Ekadashi 2020 Puja : प्रत्येक एकादशी की अपनी महिमा और महात्म्य होता है. वैशाख मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को बरूथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. पद्म पुराण में उल्लेखित है कि इस एकादशी का व्रत करने से हर तरह की मनौतियां पूरी होती हैं. इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महात्म्य है. बरुथिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल गंगा-स्नान के बाद व्रत एवं पूजा करने से सौभाग्य प्राप्ति के साथ-साथ विवाह में आनेवाली सारी रुकावटें दूर होती हैं. ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति जुआ खेलने, परनिंदा करने, क्षुद्रता, चोरी, झूठ बोलने, हिंसा और क्रोध करने की प्रवृत्ति से ग्रस्त होता है. बरुथिनी एकादशी का व्रत करने से वह इन सारी विसंगतियों से मुक्ति पाता है. इस बार 18 अप्रैल (शनिवार) के दिन वरुथिनी एकादशी पड़ रही है.
व्रत एवं पूजा-विधि:
बरूथिनी एकादशी के दिन श्रीहरि अर्थात भगवान विष्णुजी के वराह स्वरूप की पूजा की जाती है. इस एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को एक दिन पूर्व यानी दशमी के दिन रात्रि-भोजन नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही दशमी के दिन उड़द, मसूर, चना, शाक, शहद, दूसरे का दिया भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु के वराह अवतार की षोडशोपचार विधि से पूजा करें. पूजा के पश्चात बरूथिनी एकादशी व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए. द्वादशी के दिन किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात सामर्थ्यवान दान-दक्षिणा देकर खुशी मन से उन्हें विदा करना चाहिए. इसके बाद ही व्रती को पारण करना चाहिए. इस दिन खरबूजे का फलाहार का विशेष महत्व बताया जाता है.
बरूथिनी एकादशी व्रत का महात्म्य:
मान्यता है कि बरूथिनी एकादशी के व्रत का फल दस हजार साल तपस्या करने के फल के समान होता है. सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र तीर्थ में स्वर्ण दान करने से जो फल मिलता है, इस व्रत को करने से वैसा ही फल मिलता है. मान्यता है कि बरुथिनी एकादशी का व्रत करने के बाद ही राजा मांधाता को स्वर्ग लोक में जगह मिली थी. इस व्रत में दान का विशेष महात्म्य माना जाता है. बरुथनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को कन्या-दान करने का पुण्य प्राप्त होता है.
पारंपरिक कथा:
प्राचीनकाल में नर्मदा तट पर मांधाता नामक एक राजा राज्य करता था. वह अत्यन्त दानशील, दयावान और तपस्वी राजा था. एक दिन राजा मांधाता इतनी कठोर तपस्या में लीन थे कि एक भालू उनका पैर चबाने के पश्चात घने जंगल की ओर घसीट कर लेता गया, इसके बावजूद वे तपस्या में ही लीन थे. जब उनकी तंद्रा टूटी तो सामने साक्षात मौत को देखकर वे घबरा गये. रक्षार्थ उन्होंने भगवान विष्णु को याद किया. राजा मांधाता की विनय पुकार सुनकर विष्णु तुरंत प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मारकर भक्त की रक्षा की. भगवान विष्णु ने राजा मांधाता से कहा, -हे वत्स मथुरा में एकादशी के दिन मेरी वाराह स्वरूप मूर्ति की विधिवत पूजा और व्रत करो. इसे तुम्हारे पैर पूर्व जैसे हो जायेंगे. यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था. विष्णुजी के कथनानुसार राजा मांधाता ने वैशाख कृष्णपक्ष के दिन वाराह स्वरूप भगवान विष्णुजी की विधिवत व्रत एवं पूजा की. ऐसा करने से उनके पैर स्वस्थ हो गये, और मोक्ष की प्राप्ति हुई.