Valmiki Jayanti 2019: वाल्मीकि जयंती पर जानिए महर्षि वाल्मीकि की एक डाकू से प्रकांड पंडित और आदिकवि बनने की प्रेरक कथा
वाल्मीकि जयंती 2019 (Photo Credits:Facebook)

Valmiki Jayanti 2019: इंसान जिद और जुनून पर आ जाये तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं. एक डाकू से महात्मा एवं संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित बने महर्षि वाल्मिकी (Maharishi Valmiki) इसके सटीक उदाहरण कहे जा सकते हैं. घर-परिवार के भरण पोषण के लिए राह चलते राहगीरों से लूटपाट करने वाले वाल्मीकि (Valmiki) के जीवनकाल में एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब वह सारे बुरे कार्य त्यागकर संत बन जाते हैं, संस्कृत में रामायण (Valmiki Ramayan) की रचना करते हैं और खगोल विद्या तथा ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड पंडित कहलाते हैं. आखिर एक दस्यु के जीवन में कैसे हुआ ह्रदय परिवर्तन? आइये जानते हैं...

रत्नाकर उर्फ वाल्मीकि का जन्म

हिंदी पंचांग के अनुसार महाकवि वाल्मिकी का जन्म आश्विन माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था. अंग्रेजी कैलेंडर माह के अनुसार इस वर्ष महाकवि वाल्मीकि की जन्म-तिथि 13 अक्टूबर को पड़ रही है. उत्तर भारत में वाल्मीकि जयंती ‘प्रकट दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि वाल्मीकि जी महर्षि कश्यप और अदिति के नवें पुत्र प्रचेता की संतान हैं. माँ का नाम चर्षणी और भाई भृगु थे. उस समय उनका नाम रत्नाकर था. बचपन में ही रत्नाकर को कुछ भील जाति के लोग चुरा ले गये. उन्हीं की छत्रसाया में पले-बढ़े और बड़े हुए. लेकिन हालातवश वह दस्यु बन गये. परिवार की परवरिश के लिए वे राह चलते लोगों से लूटपाट करते थे और कभी-कभी उनकी हत्या भी कर देते थे.

कैसे हुआ ह्रदय परिवर्तन

एक बार महर्षि नारद मुनि कहीं जा रहे थे, वाल्मीकि ने उन्हें पकड़कर कैद कर लिया, कहा कि तुम्हारे पास जो भी मुद्रा हो दे दो. नारद जी थोड़ी देर शांत रहे, फिर उन्होंने वाल्मीकि से पूछा, तुम यह जो पाप कर्म कर रहे हो, वह किसके लिए कर रहे हो? वाल्मीकि ने बताया, मैं अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए ऐसा कर रहा हूं. नारद मुनि ने पूछा, क्या तुम्हारे परिवार के लोग तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे? वाल्मीकि ने कहा यह पाप कर्म जब मैं अपने परिवार के लिए कर रहा हूं, तो वे हमारे पाप के भी भागीदार बनेंगे. यह कोई पूछने वाली बात है? नारद मुनि ने वाल्मीकि से कहा,-एक बार तुम यह बात अपने परिवार के लोगों से पूछ कर आओ. मैं यहीं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा. तुम्हें अगर शक है कि मैं भाग जाऊंगा तो मुझे किसी पेड़ के साथ बांध दो.

वाल्मीकि घर पहुंचते हैं और घर के एक-एक सदस्य से पूछते हैं कि क्या वे उनके इस पापकर्म के भागीदार बनेंगे? सभी का एक ही उत्तर था कि पाप तुम कर रहे हो, फिर मैं भागीदार क्यों बनूं? परिजनों का जवाब सुनकर रत्नाकर को बहुत दुःख हुआ. वह उल्टे पैरों वापस आये और नारद मुनि से क्षमा मांगते हुए जीवन में दुबारा कभी गलत कार्य नहीं करने की प्रतिज्ञा ली. रत्नाकर का हृदय परिवर्तित हो चुका था. वह घर-बार छोड़कर कठिन तपस्या के लिए जंगलों में चले गये. लंबे समय तक तपस्या करने के कारण दीमकों ने इनके शरीर पर अपनी बांबी बना लिया था. बांबी का ही पर्यायवाची शब्द है वाल्मीकि. इस तरह तपस्या पूरी होने के बाद वे रत्नाकर से वाल्मीकि कहलाए. रत्नाकर की तपस्या से ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें ब्रह्मर्षि होने का वरदान देते हुए उन्हें भगवान राम के जीवन पर रामायण लिखने के लिए प्रेरित किया. यह भी पढ़ें: Valmiki Jayanti 2019: कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किसके कहने पर उन्होंने लिखी थी रामायण, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें

वाल्मीकि ने रचा प्रथम श्लोक कहलाए आदि कवि

रत्नाकर से वाल्मीकि बनने के पश्चात एक दिन वे एक नदी किनारे स्नान कर रहे थे. उन्होंने देखा कि एक वृक्ष की शाखा पर सारस पक्षियों का जोड़ा प्रेमालाप में रत था. तभी एक शिकारी ने उन पर बाण चलाया. बाण लगते ही नर सारस की मृत्यु हो गयी. वाल्मीकि को बहेलिये पर बहुत क्रोध आया. उनके मुख से अचानक यह यह श्लोक फूट पड़ा.

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥

अर्थात, अरे शिकारी, तूने काममोहित मैथुनरत सारस पक्षी की हत्या की है. तुझे जीवन में कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होगी.

दुनिया का प्रथम महाकाव्य रामायण

ब्रह्मर्षि के मुख से निकला यह श्लोक संस्कृत जगत का पहला श्लोक माना जाता है. इसी श्लोक ने उन्हें आदि कवि का दर्जा दिलाया. इसके पश्चात ब्रह्मा जी के कहने पर वाल्मीकि ने चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण की रचना की. चूंकि मह्रर्षि वाल्मीकि श्रीराम के युग के ही कवि थे, इसलिए रामायण लिखते समय वह अक्सर श्रीराम से मिले. संस्कृत रामायण को इसीलिए ज्यादा सटीक माना जाता है. महर्षि वाल्मीकि कृत इस रामायण को दुनिया का सर्वप्रथम महाकाव्य माना जाता है. रामायण में उल्लेखित है कि वनवास वापसी के पश्चात श्रीराम द्वारा पत्नी सीता का त्याग करने के बाद सीता जी को महर्षि वाल्मीकि ने ही शरण दिया था. इन्हीं के आश्रम में सीता जी ने लव और कुश जैसे तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया था. वाल्मीकि ने ही लव और कुश को ज्ञान, आध्यात्म और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दिया था.

विष्णुधर्मोत्तर पुराण में तो यह भी उल्लेखित है कि त्रेता युग में जन्में महर्षि वाल्मीकि ने ही कलियुग में गोस्वामी तुलसीदास जी के रूप में जन्म लिया और श्रीरामचरित मानस की रचना की.