Ram-Bharat Milap: इस स्थान पर हुआ था राम-भरत मिलाप! जहां आज भी मौजूद है उनके पद-चिह्न, जानें क्या है काशी का लक्खा मेला?
राम भरत मिलाप, (Photo Credits: YouTube)

Ram-Bharat Milap: भगवान श्रीराम (Lord Rama), सीता (Mata Sita) और लक्ष्मण (Laxman) ने 14 वर्ष के वनवासकाल के दौरान भारत के तमाम क्षेत्रों का भ्रमण किया था. उस काल से जुड़ी अधिकांश जगहें आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं. अयोध्या से लेकर श्रीलंका तक ऐसे सैकड़ों स्थल आज भी मौजूद हैं, जहां श्रीराम (Shri Ram) के पग पड़े. ये बातें रामायण काल (Ramayan Era) को ऐतिहासिक साबित करने के लिए काफी हैं. ऐसी ही एक जगह है, कामदगिरी परिक्रमा स्थल जहां वनवास खत्म होने के बाद श्रीराम का अपने भाई भरत से मिलन हुआ था, जो आज 'भरत मिलाप' (Bharat Milap) उत्सव के रूप में लोकप्रिय है. आइये जानें क्या है पूरी कथा…

श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के चौदह वर्ष के वनगमन की पूरी कथा सुनकर उनके छोटे भाई भरत बहुत दुखी होते हैं. वे समस्त अयोध्यावासियों के साथ श्रीराम को मनाने चित्रकूट पहुंचते हैं, लेकिन पिता के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए श्रीराम अयोध्या वापस लौटने से मना कर देते हैं. तब भरत श्रीराम का खड़ाऊं सिर पर लेकर अयोध्या लौटते हैं, लेकिन इस शर्त पर कि चौदह वर्ष के खत्म होने वाली तिथि को अगर श्रीराम वापस नहीं लौटे तो वे इसी स्थल (चित्रकूट) में देह त्याग देंगे. यह भी पढ़ें: Happy Dussehra 2020: रावण की जिंदगी के 10 रहस्यमयी सच! जिसे सुन कोई भी हैरान हो सकता है!

भरत जब श्रीराम के वापस लौटने की खबर सुनते हैं तो वे अपने दल बल के साथ अयोध्या से चित्रकूट पहुंचते हैं और ज्यों ही श्रीराम सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से नीचे उतरते हैं, भरत श्रीराम के कदमों में गिर जाते हैं. तब श्रीराम भरत को उठाकर ह्रदय से लगा लेते हैं. दो भाइयों का यही प्रेम आगे चलकर भरत मिलाप उत्सव के रूप में लोकप्रिय हुआ.

कहा जाता है कि जिस स्थान पर श्रीराम और भरत का यह मिलन हुआ आज वह जगह कामदगिरी परिक्रमा स्थल के रूप में मौजूद हैं. भरत मिलाप चरण चिह्न नामक इस मंदिर में श्रीराम और भरत के पद-चिह्न आज भी मौजूद हैं. जहां भरत मिलाप के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं. इस वर्ष यानी 2020 में भरत-मिलाप का यह उत्सव 27 अक्टूबर मंगलवार को पड़ रहा है.

श्रीराम भरत के उभरे हुए पग-चिह्न का जिक्र तुलसीदास जी की श्रीरामचरितमानस में भी इस चौपाई के रूप में उल्लेखित है. .

"द्रवहि बचन सुनि कुलिश पषाना, पुरजन प्रेम न जाहि बखाना,

बीच बास करि जमुनहि आये, निरख नीरु लोचन जल छाये."

मान्यता है कि वनवास काल में जहां-जहां श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के पैर पड़े, वहां पत्थर पिघल जाते थे. यह भी पढ़ें: Vijayadashami 2020: दशहरा के शुभ दिन से जुड़ी हैं कई लोकमान्यताएं! जानें क्यों विजयादशमी पर नीलकंठ को देखना होता है शुभ, क्यों की जाती है शमी और शस्त्रों एवं वाहनों की पूजा

क्या है लक्खा मेला? 

काशी केवल भगवान शिव की प्यारी नगरी ही नहीं बल्कि यहां के राम नगर की रामलीला के साथ-साथ नाटी इमली का राम-भरत-मिलाप भी दुनिया भर में लोकप्रिय है. भरत मिलाप के इस पर्व को लक्खा मेले के नाम से भी जाना जाता है. इसका आशय यह है कि राम-भरत मिलाप देखने देश भर से एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु नाटी इमली पहुंचते हैं. इस पर्व का मंचन एक विशाल मैदान में किया जाता है. गौरतलब है कि नाटी इमली में भरत-मिलाप का उत्सव पिछले साढ़े चार सौ साल से मनाया जा रहा है, लेकिन इस बार अन्य पर्वों की तरह भरत-मिलाप पर भी कोरोना का ग्रहण छाया हुआ लगता है.