Paush Maas 2019: पौष मास में सूर्य देव की उपासना का है खास महत्व, इस महीने इन व्रतों को करने से सफलता, आरोग्य, संतान सुख और सौभाग्य का मिलता है वरदान
भगवान सूर्य (Photo Credits: Facebook)

Paush Maas 2019: हिंदू पंचांग के 10वें महीने यानी पौष मास (Paush Maas) की शुरुआत 13 दिसंबर 2019 से हो गई है, जिसका समापन 10 जनवरी 2020 को होगा. पौष महीने (Paush Month) में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है, इसलिए इस महीने काफी ठंड रहती है. पौष मास की शुरुआत के साथ ही शादी-ब्याह जैसे सभी मांगलिक कार्य भी बंद हो गए हैं. अब 14 जनवरी 2020 के बाद से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी. मान्यता है कि इस मास में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता. वहीं कहा जाता है कि इस महीने सूर्य देव (Surya Dev) की उपासना करने से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. इस महीने सूर्य देव (Surya Bhagwan) की भग नाम से उपासना की जानी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार, ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है.

मान्यता है कि पौष महीने में सूर्य 11 हजार रश्मियों के साथ व्यक्ति को ऊर्जा और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं. इसके साथ ही कहा जाता है इस महीने नियमित रूप से सूर्य देव की उपासना करने से व्यक्ति साल भर स्वस्थ और संपन्न रहता है. इस महीने सूर्य अधिकतर समय धनु राशि में रहते हैं और धनु राशि के स्वामी बृहस्पति माने जाते हैं. कहा जाता है कि देव गुरु बृहस्पति इस समय देवताओं समेत सभी मनुष्यों को धर्म-सत्कर्म का ज्ञान देते हैं. लोग इस महीने सांसारिक कार्यों की जगह धर्म-कर्म में रूचि लें, इसलिए ऋषि-मुनियों ने धनुमास को खरमास या मलमास की संज्ञा दी है.

सूर्य देव की उपासना

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिए. इस महीने सूर्य को अर्घ्य देने और व्रत रखने का विशेष महत्व बताया गया है. पौष मास के हर रविवार को तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन, लाल रंग के पुष्प डालकर सूर्य देव के मंत्र "ॐ आदित्याय नमः" या ॐ घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जप करते हुए अर्घ्य देना चाहिए. इस महीने नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए. माना जाता है कि इस महीने सूर्य देव की उपासना करने से व्यक्ति को आरोग्य, संतान सुख, लंबी उम्र, सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: December 2019 Festival Calendar: विवाह पंचमी से हो रही है दिसंबर माह की शुरुआत, देखें इस महीने पड़नेवाले सभी व्रत, त्योहार और छुट्टियों की पूरी लिस्ट

पौष महीने में सूर्य की उपासना के साथ-साथ इस महीने पड़नेवाले खास व्रतों को करने का भी खास महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस महीने पड़नेवाले व्रतों को करने से व्यक्ति को सफलता, आरोग्य, संतान सुख और सौभाग्य का वरदान मिलता है.

पौष कृष्ण अष्टमी- पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने और ब्राह्मणों को भोजन कराने से व्यक्ति को उत्तम फलों की प्राप्ति होती है.

पौष कृष्ण एकादशी- पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति का कोई कार्य अधूरा नहीं रहता है और उसे सभी कार्यों में सफलता मिलती है.

पौष कृष्ण द्वादशी- पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को सुरूपा द्वादशी भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को संतान सुख, सौभाग्य और खुशहाली का वरदान मिलता है.

पौष शुक्ल द्वितीया- उत्तम आरोग्य के लिए पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरोग्य व्रत करना चाहिए. इस दिन गायों की सीगों को धोकर उसी जल से स्नान करना चाहिए और सफेद कपड़े पहनने चाहिए. सूर्यास्त के बाद द्वितीया के चंद्रमा का विधिवत पूजन करना चाहिए और ब्राह्मणों को गुड़, दही, खीर का दान देना चाहिए. ऐसे ही हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पूरे एक साल तक चंद्रमा का पूजन करने से सभी रोग नष्ट होते हैं और उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है.

पौष शुक्ल सप्तमी- पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मार्तंड सप्तमी कहा जाता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा कर उनके निमित्त हवन करना चाहिए और गोदान करना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा करने से पूरे साल उत्तम फलों की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Malmas 2019: कब से शुरू हो रहा है खरमास, इस दौरान मांगलिक कार्य क्यों होते हैं वर्जित, जानें मलमास में क्या करें और क्या नहीं

पौष शुक्ल एकादशी- पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर व्रत करने से निसंतान दंपत्तियों को पुत्र की प्राप्ति होती है.

पौस मास की पूर्णिमा- पौष महीने की पूर्णिमा तिथि से माघ स्नान का प्रारंभ होता है. पौष पूर्णिमा को सुबह गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन स्नान के बाद मधुसुदन भगवान को स्नान कराकर उन्हें मुकुट, कुंडल, तिलक, हार, वस्त्र और पुष्पमाला धारण कराकर उनकी विधिवत पूजा करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को दिव्यलोक की प्राप्ति होती है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.