Mohini Ekadashi 2020 Muhurat: सनातन धर्म में मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) व्रत का बड़ा महत्व है. इस व्रत को करने से अक्षुण्य-पुण्य की प्राप्ति होती है एवं सारे पापों का नाश होता है. मान्यता है कि समुद्र-मंथन के बाद जब अमृत पीने के लिए देव एवं असुरों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, तब भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने मोहिनी (Mohini) रूप धरकर सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, जिससे सारे देवता अमर हो गये. धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि जिस दिन श्रीहरि मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे, उस दिन एकादशी थी. श्रीहरि के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है. यह व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi Vrat) 3 मई को पड़ रही है.
व्रत एवं पूजा विधि
वैशाख शुक्लपक्ष की एकादशी की प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहन कर व्रत का संकल्प लें. घर के मंदिर के सामने स्वच्छ चौकी बिछाकर उस पर लाल रंग का आसन बिछायें और इस पर भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. विष्णु जी की पूजा शुरू करे से पूर्व गणेश जी का ध्यान एवं पूजन करें. अब विष्णु जी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें. अब तुलसी का पत्ता, फल, फूल एवं अक्षत के साथ खोये की मिठाई चढ़ाएं.
ऐसा करते हुए ओम ब्रह्म बृहस्पताय नमः अथवा ओम नमः भगवते वासुदेवाय का जाप निरंतर करते रहें. पूजा के समापन से पूर्व विष्णुजी की आरती उतारें. तत्पश्चात सूर्यदेव को जल अर्पित कर मोहिनी एकादशी की कथा सुनें अथवा सुनाएं. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम ने भी मोहिनी एकादशी का महत्व संसार को बताने के लिए यह व्रत किया था. पद्मपुराण के अनुसार इस व्रत की कथा पढ़ने और सुनने मात्र से हजारों गो-दान के समान पुण्य प्राप्त हो होता है, जबकि व्रत करके कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
एकादशी तिथि- 3 मई 2020 (रविवार)
एकादशी प्रारंभ- 03 मई, (रविवार) प्रातः 09.09 बजे से
एकादशी समाप्त- 04 मई, रविवार प्रातः 06.12 बजे तक
पारण- 4 मई, सोमवार 01.13 बजे से 03.50 बजे तक यह भी पढ़ें: Varuthini Ekadashi 2020: सौभाग्य एवं दीर्घायु प्राप्त होती है, तथा विसंगतियों से मुक्ति मिलती है! जानें बरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा-विधि, महात्म्य एवं कथा!
पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में भद्रावती नामक एक बहुत सुंदर एवं सुशिक्षित नगर था. इस नगर पर धृतिमान नामक राजा राज करते थे, वे बहुत पुण्यात्मा एवं दान-पुण्य करते थे. उसी तरह उनकी प्रजा भी बहुत आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थी. इसी नगर में धनपाल नामक एक वैश्य था. धनपाल श्रीहरि के अनन्य भक्त थे. श्रीहरि के आशीर्वाद से उनके पांच पुत्र थे. सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि. जैसा नाम वैसी ही उसकी प्रवृत्ति भी थी. जबकि शेष चार पुत्र पिता की तरह दान-पुण्य करने वाले थे. धृष्टबुद्धि की कुप्रवृत्तियों से परेशान होकर पिता ने घर से बाहर निकाल दिया. घर से निकाले जाने के पश्चात धृष्टबुद्धि दर-दर की ठोकरें खाने लगा. उसे खाने के भी लाले पड़ने लगे. एक दिन भटकते-भटकते वह कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम पहुंचकर महर्षि कौण्डिल्य के चरणों में गिर पड़ा.
अपने बुरे कर्मों के लिए पश्चाताप करने के कारण उसमें कुछ साकारात्मक परिवर्तन आने लगे. उसने महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई, और इससे बाहर निकलने का उपाय पूछा. महर्षि ने मोक्ष प्राप्ति के मार्ग बताते हुए कहा, वैशाख शुक्ल की एकादशी के दिन उपवास रखते हुए श्रीहरि की पूजा करों तो तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी. धृष्टबुद्धि ने महर्षि के निर्देशानुसार वैसा ही किया. इसके बाद उसे सारे पाप-कर्मों से छुटकारा मिला और देह त्यागने के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई.