Jyeshtha Purnima 2021: वट पूर्णिमा व्रत (Vat Purnima Vrat) मुख्यतया विवाहित महिलाओं (Married Women) द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. आइये जानें क्या है वट पूर्णिमा (Vat Purnima) का महत्व, तिथि, समय एवं पूजा विधि? वट पूर्णिमा का यह पर्व विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जिनका प्रचलन मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण राज्यों में ज्यादा देखने को है. यह त्यौहार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है. वट पूर्णिमा का यह व्रत एवं अनुष्ठान सत्यवान की धर्मनिष्ठ पत्नी सावित्री को समर्पित है, जिसने अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवन दान के लिए यमराज को अपने तर्कों से पराजित कर सफलता हासिल की थी, इसलिए वट पूर्णिमा के दिन सुहागन महिलाएं पतिव्रता सावित्री को याद करते हुए वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा और प्रार्थना करती हैं, ताकि सत्यवान की तरह उनके पति को भी दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त हो.
वट पूर्णिमा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शुभ?
वट पूर्णिमा प्रारंभ प्रातः 03.09 बजे से (24 जून 2021)
वट पूर्णिमा समाप्त दोपहर: 12.09 बजे (25 जून 2021)
वट पूर्णिमा का महत्व
भविष्योत्तर पुराण, स्कंद पुराण एवं महाभारत में वट पूर्णिमा के महत्व को विस्तार से समझाया गया है. इस दिन सावित्री अपने पति के प्रति त्याग, समर्पण और पतिव्रता की भूमिका निभाते हुए पति को पुनर्जीवित करने के लिए यमराज से तर्क कर विजय प्राप्त करती है. वट पूर्णिमा पर व्रत एवं पूजा अनुष्ठान करने से दांपत्य जीवन खुशहाल एवं समृद्धिशाली होता है. विवाहित महिलाओं को पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है.
फर्क वट अमावस्या और वट पूर्णिमा में!
गौरतलब है कि लगभग एक पखवारे पूर्व ज्येष्ठ अमावस्या के दिन उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में जो वट-वृक्ष की पूजा-अनुष्ठान किया जा चुका होता है, उससे बहुत ज्यादा अलग नहीं है वट पूर्णिमा का यह पर्व. फर्क है तो केवल तिथि एवं क्षेत्र का. वट पूर्णिमा का यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के अधिकांश क्षेत्रों में किया जाता है. यह भी पढ़ें: Vat Purnima 2021 Messages: वट पूर्णिमा पर इन शानदार हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Quotes, GIF Images के जरिए दें शुभकामनाएं
ऐसे करें वट पूर्णिमा का पूजा-अनुष्ठान?
वट पूर्णिमा के दिन विवाहित महिलाएं तमाम रीति-रिवाजों के साथ वट पूर्णिमा की पूजा करती है. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर पर तिल और आंवला का लेप लगा कर स्नान करती हैं. स्नान-ध्यान के पश्चात वे स्वच्छ वस्त्र धारण कर वट पूर्णिमा व्रत एवं पूजा का संकल्प लेती हैं. वट पूर्णिमा के उपवास में कुछ लोग निर्जल उपवास रखते हैं तो कुछ लोग फलाहार रहते हैं.
पूजा अनुष्ठान शुरु करने से पूर्व वे आभूषण, सिंदूर आदि के साथ श्रृंगार करती हैं. इसके बाद पवित्र वृक्ष वट (बरगद के पेड़) की पूजा करती हैं. मान्यता है कि इस वृक्ष में त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का वास होता है. पूजा अनुष्ठान में महिलाएं पवित्र बरगद की जड़ों में ताजे फल, तुलसी, पीला सूत, फूल, चावल और अन्य पवित्र वस्तुएं चढ़ाती हैं. समर्थ महिलाएं गरीबों को वस्त्र, भोजन, पैसे और अन्य वस्तुओं का दान करती हैं.