International Mother Language Day: पिछले 40 वर्षों में मातृभाषा के संदर्भ में लगभग 150 शोध हुए, और निष्कर्ष निकला कि बच्चे की शिक्षा-दीक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, क्योंकि बच्चे को मां के गर्भ से ही मातृभाषा के संस्कार प्राप्त होते हैं. और पैदा होने के बाद भी बच्चा माँ से जो पहली भाषा सीखता है, वही उसकी मातृभाषा होती है. मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है. भाषाई सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषिता को बढ़ावा देने तथा विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से 21 फरवरी को ‘मातृभाषा दिवस’ मनाया जाता है. आइए जानें अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई, एवं भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए इसका क्या महत्व है.
साल 1948 में पाकिस्तान जब भारत से अलग हुआ, तो पाक सरकार ने उर्दू को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया. उन दिनों बांग्लादेश, पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और वहां की मुख्य भाषा बांग्ला थी. पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषियों को जबरन उर्दू थोपा जाना रास नहीं आ रहा था. 21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान सरकार की भाषाई नीति का कड़े स्वर में विरोध करते हुए एक व्यापक जनआंदोलन किया. इस आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तानी पुलिस ने उन पर लाठी बरसाईं, स्थिति फिर भी नियंत्रण में नहीं आई तो गोली चलवा दी, जिसमें बहुत से बांग्लाभाषी प्रेमी शहीद हो गये, लेकिन इससे उनकी मांग और आंदोलन पर किंचित असर नहीं पड़ा. विवश होकर पाकिस्तान सरकार को बांग्ला भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना पड़ा. लेकिन इस आंदोलन और पाकिस्तानी पुलिस की ज्यादतियों की गूंज दुनिया भर में पहुंच चुकी थी. आंदोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में यूनेस्को ने 1999 में 21 फरवरी को ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. तभी से प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को सारी दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है.
हिंदी विश्व की तीसरी प्रमुख मातृभाषा:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार दुनिया भर में लगभग 6900 मातृभाषाएं बोली जाती हैं. इनमें 90 प्रतिशत भाषाएं बोलनेवाले एक लाख से भी कम है. 150 से 200 भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलनेवालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा है. जबकि पांच शीर्षस्थ बोली जानेवाली भाषाओं में पहला चायनीज, दूसरी अंग्रेजी, तीसरी हिंदी, चौथी रसियन और पांचवी अरबी भाषा है.
विलुप्त होती मातृभाषाएं:
एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में करीब 6,900 मातृभाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें करीब 2,500 भाषाओं की स्थिति चिंताजनक हैं. वे या तो विलुप्त हो चुकी हैं अथवा विलुप्त होने की कगार पर हैं. भाषा किसी देश या क्षेत्र की संस्कृति का आधार मानी जाती हैं. ऐसी स्थिति में इन भाषाओं के नष्ट होने से ये संस्कृतियां भी नष्ट हो जायेंगी. एक आकलन के अनुसार दुनिया की 6 हजार भाषाओं में 4 हजार भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. इनमें से 10 फीसदी भाषाएं भारत में बोली जाती हैं.
भारत में बहु मातृभाषियों के बीच हिंदी:
भारत विविध संस्कृति और भाषाओं का देश रहा है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषाएं बोली जाती थीं, लेकिन लुप्त होती मातृभाषाओं के बाद फिलहाल फिलहाल 1365 मातृभाषाएं हैं, जिनका क्षेत्रीय आधार अलग-अलग हैं. अब बात करेंगे बहुभाषाओं की. हाल ही में हुई जनगणना के अनुसार भारत में जिनकी मातृभाषा हिंदी या बांग्ला है, उनमें बहुभाषियों की संख्या कम है. 43 करोड़ हिंदीभाषियों में 12 फीसदी द्विभाषी हैं, उनकी दूसरी भाषा अंग्रेजी है. जबकि बांग्ला बोलने वाले 9.7 करोड़ लोगों में 18 फीसद द्विभाषी हैं. हिंदी और पंजाबी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोली जानेवाली भाषा बांग्ला है. किसी समय देश में सबसे ज्यादा बोली जानेवाली मातृभाषा संस्कृत बोलने वालों की संख्या आज मात्र 14 हजार है.
गैरहिंदी देशों और प्रदेशों में हिंदी और संस्कृत की स्थिति:
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार करीब 170 देशों में किसी न किसी रूप में हिंदी पढ़ाई जाती है. आज विश्व के 32 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है. इंग्लैण्ड के सेंट जेम्स विद्यालय में 6 वर्ष तक संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है. पहले भारत के जिन राज्यों में अलग-अलग कारणों से हिन्दी का विरोध होता था, या जहां (तमिलनाडु, मिजोरम, नागालैण्ड आदि) हिंदी कम बोली जाती थी, आज उन राज्यों में भी हिन्दी स्पीकिंग क्लासेस सफलता पूर्वक चल रहे हैं.
अरूणाचल प्रदेस की राजभाषा हिन्दी है, और नागालैण्ड राज्य ने भी हिंदी को द्वितीय राजभाषा की मान्यता दे रखी है. दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा आदि की हिंदी परीक्षाओं में भारी संख्या में गैरहिंदी भाषी शामिल हो रहे हैं. वास्तव में भारतीय मातृभाषाओं को अंग्रेजी से चुनौती नहीं है, बल्कि अंग्रेजी मानसिकता वाले भारतीयों से है.