Holi 2019: ‘लट्ठमार’, ‘छड़ीमार’ रंगों और ‘फूलों’ आदि की होली के बाद मथुरा (Mathura) के बलराज नगर (Balraj Nagar) में आयोजित बलदाऊ जी का ‘हुरंगा’ (Bajdau Ji ka Huranga) भी विश्व भर में लोकप्रिय है. हुरंगा (Huranga) का यह पर्व होली (Holi) के दूसरे दिन मनाया जाता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से भक्तों और पर्यटकों की भारी भीड़ यहां इकट्ठा होती है. कहा जाता है कि इसके लिए एक खास किस्म का गुलाल बनाया जाता है और इसकी तैयारी एक माह पूर्व से ही शुरु हो जाती है. आखिर क्या है हुरंगा और इसकी पृष्ठभूमि चलिए जानते हैं.
मथुरा जनपद से लगभग 21 किमी दूर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है बलदेव शहर. बलदेव यानी श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी का नगर. बलराज शहर की ओर चलते हुए रास्ते में गोकुल एवं महावन आदि जो प्राचीन स्थल नजर आते हैं, उनके वर्णन पुराणों में भी मिलते हैं. पुराणों में यह स्थान विद्रुमवन के नाम से उल्लेखित है. यहां भगवान श्री बलराम एवं उनकी पत्नी ज्योतिष्मति रेवती जी की विशाल प्रतिमा देखी जा सकती है. भवन रूपी यह मंदिर एक दुर्ग की तरह चारों ओर से ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है.
हुरंगे की परंपरा
हुरंगे यानी होली के अगले दिन प्रातः 5 बजे मंदिर का कपाट खुल जाता है. बाहर परिसर में लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ इकट्ठी होती है. प्रांगण में तिल रखने तक की जगह नहीं होती. आस्था के सैलाब की तस्वीर कुछ ऐसी होती है कि हुरंगा देखने के लिए लोग मंदिर की छतों और कंगूरों तक पर बैठे मिलते हैं. 12 बजे हुरंगा शुरु हो जाता है. चारों तरफ से अबीर-गुलाल और टेसू फूलों से तैयार केसरिया रंगों की बौछार शुरु हो जाती है.
यहां आयी भाभियां और देवर सर्वप्रथम बलदेव जी के मुख्य भवन की परिक्रमा करते हैं. जैसे ही मुख्य भवन के अंदर से केसरिया झंडे लिए दरबान प्रांगण में पहुंचते हैं, वहां मौजूद भाभियां ब्रज की पारंपरिक वेशभूषा में आये देवरों के कपड़े फाड़ना शुरु करती हैं. देवर अपने कपड़े बचाने की कोशिश करते हैं, मगर भाभियों की चुस्ती-फूर्ती के सामने अंततः उन्हें नतमस्तक होना पडता है. यह भी पढ़ें: Holi 2019: ब्रज की होली के विभिन्न रंगों में शामिल है 'चतुर्वेदी समाज का डोला', जानिए इसकी खासियत
भाभियां हाथ आये फटे कपड़ों को टेसू के फूलों से तैयार रंगों में भिगोकर उसका कोड़ा बनाती हैं और देवरों पर बरसाती हैं. उधर देवर भी कोड़ों की मार का जवाब बाल्टियों में भरे रंगों से भाभियों को भिगो कर देते हैं. यह हंसी भरी होली की ठिठोली देर शाम तक चलती है. देवर-भाभी की इस तीखी-मीठी नोक-झोंक और कपड़े फाड़ने के कारण इसे ‘कपड़ा फाड़ होली’ भी कहते हैं.
क्या है हुरंगा?
ब्रज में यूं तो पूरे फाल्गुन मास तक राधा-कृष्ण की होली की धूम रहती है, लेकिन होली के दूसरे दिन बलदेव शहर में आयोजित हुरंगे की खास बात यह है कि यहां बलदाऊ जी की नगरी होने के कारण केवल देवर-भाभी की होली खेली जाती है. इसे होली का व्यापक रूप होने के कारण इसे ‘हुरंगा’ कहा जाता है. इस हुरंगे का एक प्रचलन यह भी है कि इसमें सिर्फ बलदेव के पाण्डेय समाज की महिलाएं और पुरुष ही शामिल होते हैं.