Ganeshotsav 2019: महाराष्ट्र (Maharshtra) को गणपति (Ganpati) की जन्म भूमि माना जाता है, इसलिए यहां गणेश जी के जन्मदिवस की खास तैयारी होती है. गणेश चतुर्थी के अवसर पर उनके भक्त दर्शन के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं. मान्यता है कि इन पंडालों में गणपति का वास है. गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) का दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है, लेकिन कुछ खास पंडाल जहां अपनी साज-सज्जा के लिए मशहूर हैं. वहीं ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त को बप्पा (Bappa) खाली हाथ नहीं जाने देते. इनमें प्रमुख हैं मुंबई के लाल बाग चा राजा, पुणे के दगडूसेठ हलवाई गणपति मंदिर और नागपुर के टेकड़ी गणेश मंदिर के गणपति. गणेश चतुर्थी के दिन यहां का जश्न और भव्यता देखते बनता है. अपने आऱाध्य गणपति बप्पा का दर्शन करने यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं, लंबी लाइनों में घंटों खड़े रहते हैं. चतुर्थी से चतुर्दशी तक चलने वाले इस महापर्व पूरा शहर रंग और संगीत के लय में डूबा रहता है. इन सभी जगहों पर प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था चुस्त और चौकस रहती हैं. इन तीन महत्वपूर्ण गणेश पंडाल के अलावा भी कुछ और ख्यातिप्राप्त गणेश पंडाल के बारे में हम आपको बतायेंगे.
लाल बाग के राजा का दर्शन के लिए हर चुनौती स्वीकार करते हैं भक्त
हमेशा की तरह इस बार भी लालबाग के राजा का सिंहासन सज चुका है. 2 सितंबर सोमवार के दिन से गणपति के इस सिंहासन पर विराजते ही भक्तों के दर्शन, मन्नत एवं प्रसाद का सिलसिला शुरू हो जाएगा. लालबाग के राजा का मुंबई के अन्य गणेश मंडलों की तुलना में ज्यादा महात्म्य बताया जाता है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में बतायी जाती है. मुंबई के उपनगर परेल के लालबाग चा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना 1934 में हुई थी. इस वर्ष 86वें वर्ष में प्रवेश करेंगे मुंबई के लालबाग के राजा. इस गणेश मंडल का गठन तब हुआ था, जब लोकमान्य तिलक ब्रिटिश शासन के खिलाफ की लोगों की जागृति के लिए “सार्वजनिक गणेशोत्सव” को इसका मंच बना रहे थे. यहा धार्मिक कर्तव्यों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया जाता था. यह भी पढ़ें: गणेश चतुर्थी 2019 में कब है? जानिए गणेशोत्सव का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
‘लालबाग के राजा’ को ‘मन्नतों का गणेश’ भी कहा जाता है. लालबाग के राजा के दर्शन के लिए प्रतिदिन दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां आनेवाले बताते हैं कि उन्हें बप्पा का दर्शन पाने में 15 से 20 घंटे लगते हैं, लेकिन दर्शन के बाद सारी थकान गायब हो जाती है. गणेश चतुर्थी के दिन ‘लालबाग के राजा’ का दर्शन करने वालों में सिनेमा जगत के तमाम मशहूर फिल्मी सितारे भी होते हैं. ये प्रातःकाल ही यहां पहुंचकर गणेश जी की पूजा कर अपने मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं. बताया जाता है कि गत वर्ष मंडल को 51 करोड़ का बीमा मिला था.
लालबाग के राजा की प्रसिद्धी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक गणेशोत्सव में भक्त 20 से 25 करोड़ से अधिक का चढ़ावा चढ़ाते हैं. ज्यादातर चढावा सोने के आभूषणों का होता है. 10वें दिन लाल बाग के राजा का जब विसर्जन होता है तो गिरगांव चौपाटी पहुंचने में 8 से 10घंटे लग जाते हैं.
दगडू शेठ हलुवाई गणेश मंडल और बाल गंगाधर तिलक का स्वतंत्रता आंदोलन
महाराष्ट्र स्थित पुणे के बुधवार पेठ में श्रीमंत दगडू शेठ हलवाई मंदिर का गणेशोत्सव अपनी दिव्य एवं अलौकिक छटा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां आनेवाले भक्त का भगवान गणेश सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. ऐसा माना जाता है कि गणेशोत्सव में यहां के गणपति का दर्शन किये बगैर आपका गणेशोत्सव पूरा नहीं होता. कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग सवा सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. गणेशोत्सव पर कलात्मक ढंगे से सुसज्ज भव्य पंडाल किसी का भी मन मोह लेता है, लेकिन उससे भी अद्भुत होता है बप्पा का साज-श्रृंगार. यहां पर भगवान गणेश की 7.5 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी प्रतिमा है. बताया जाता है कि प्रतिमा की साज-सज्जा में 8-10 किग्रा सोना लगाया जाता है.
इस मंदिर की पृष्ठभूमि में एक रोचक कहानी है. दरअसल दगड़ू हलवाई पुणे में वर्षों से मिठाई का कारोबार कर रहे हैं. उऩका व्यवसाय खूब फलफूल रहा था. एक दिन प्लेग की महामारी का शिकार बनकर उनके बेटे की मौत हो गई. इससे वे टूट से गये थे. किसी संत ने उनसे कहा कि वे गणेश जी का एक मंदिर बनवा दें तो उन्हें शांति प्राप्त होगी. तब दगड़ू शेठ और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई ने गणेश मंदिर का निर्माण करवा दिया. मंदिर का निर्माण होने के बाद उनके नाम-दाम-काम में वृद्धि होने के बाद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने यहां विशाल गणेश महोत्सव का आयोजन शुरू किया.
दशाभुज मंदिर, पुणे
पुणे के ही कारवे रोड पर स्थित दशाभुज मंदिर की भी विशेष मान्यता है. यहां के पंडाल की साज-सज्जा पर करोड़ों रूपये खर्च होते हैं. यहां की गणेश प्रतिमा भी अद्भुत और दिव्य होती है. दशाभुज के गणपति की पृष्ठभूमि की एक प्रचलित कहानी है. मान्यतानुसार आदिकाल में जब ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर रहे थे. उसी दौरान मधु-कैटभ नामक राक्षस ने उनके सृष्टि निर्माण के कार्य में बाधा डालनी शुरू की, एक तरफ ब्रह्मा सृष्टि के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण कर रहे थे, दूसरी तरफ मधु कैटभ उन वस्तुओं को नष्ट कर कहा था. तब ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर भगवती कैटभी और भगवान मधुसूदन मधु कैटभ का वध कर दिया. मधु कैटभ की मृत्यु के पश्चात गणासुर, रुद्र केतु और उसके पुत्र नारांतक ने सृष्टि को हानि पहुंचानी शुरू कर दी. देवों ने भयाक्रांत होकर मां दुर्गा की स्तुति की.
महादुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने देवों की रक्षार्थ सुरभि के गोबर से दशभुजा गणेश की रचना कर उन्हें अपना वाहन सिंह के अलावा अस्त्र-शस्त्र सौंपने के बाद सभी राक्षसों का अंत करने का आदेश दिया. दशभुजा गणेश ने सभी राक्षसों का संहार कर देवों में शांति का सृजन किया. इस तरह असुरों का अंत कर गणपति ‘दशभुजा आदिदेव गणपति’ कहलाए.
सायन 23 कैरेट वाले 70 किलो सोने से सुसज्ज गणपति
मुंबई के सायन पूर्व स्थित जीएसबी गणेश सेवा मंडल का यह पंडाल हर वर्ष कुछ नये और दिव्य तरीके से गणपति बप्पा को प्रस्तुत करता है. मान्यता है कि यहां के गणपति बप्पा की महिमा भी अपरंपार है, यही वजह है कि लाल बाग के राजा का दर्शन करने के पश्चात अधिकांश श्रद्धालु सायन स्थित इस गणेश पंडाल पर अवश्य पधारते हैं, और बप्पा से अपने हर कष्टों के निवारण हेतु प्रार्थना करते हैं एवं मन्नत मानते हैं. गत वर्ष इस गणेश पंडाल की खूब चर्चा थी. क्योंकि इस वर्ष यहां के मंडल ने इस पंडाल में गणपति प्रतिमा को 70 किलो सोने से सजाया गया था. वह भी 23 कैरेट के शुद्ध सोने से. गणपति बप्पा के इस भव्य एवं दिव्य स्वरूप को देखने के लिए लाखों दर्शकों की भीड़ जुटी थी, जबकि इसकी सुरक्षा के लिए पूरे पंडाल में ड्रोन इस्तेमाल किये गए, जिसके लिए एक सुरक्षाकक्ष भी बनाया गया था. इस वर्ष हर गणेश भक्त बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है कि देखें इस बार यह मंडल बप्पा को किन खूबियों के साथ प्रस्तुत करता है. यह भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi 2019: गणपति बप्पा को मोदक ही क्यों पसंद है! घर बैठे बनाएं, किस्म-किस्म के स्वादिष्ट मोदक
पुणे के अन्य मशहूर गणपति पंडाल
पुणे के पांच और भी गणपति मंडप पर बप्पा की धूम और महात्म्य लोगों को यहां आने के लिए प्रेरित करती है. इन्हें गणपति का जन्म स्थल माना जाता है. पांच मनचे गणपति अलग-अलग जगहों पर स्थित हैं:
1. कसबा पेठ में कसबा गणपति
2. अप्पा बलवंत चौक में तांबडी जोगेश्वरी
3. लक्ष्मी रोड पर गुरुजी तालीम
4. तुलसी बाग में तुलसी बाग गणपति
5. नारायण पेठ में केसरी वाडा गणपति
गौरतलब है कि राज्य के इन पंडालों में दूर-दूर से लोग अपने आराध्य की एक झलक पाने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि इन पंडालों में विराजमान बाप्पा के दर्शन मात्र से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं.