Diwali 2019 Bhai Dooj: भाई को मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है बहन का प्रेम! जानें कैसे इस रोचक कथा से
भारत में दिवाली पर्व के सबसे आखिरी दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है (Photo Credits: Pexels)

Bhai Dooj 2019: हिंदू धर्म एवं संस्कृति में भाई बहन के रिश्ते को सबसे मधुर और पाक माना गया है. भाई बहन के रिश्ते को सजीव बनाने के लिए हमारे यहां रक्षा बंधन और भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की द्वितीया पर मनाये जाने वाले भाई दूज को ही को ही यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है इस वर्ष यानी 2019 में भाई दूज का पर्व 29 अक्टूबर को सेलीब्रेट किया जायेगा. इस दिन बहन भाई के स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन के लिए उसे शुभ मुहूर्त में टीका लगाती है.

कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की द्वितिया के दिन बहन प्रातःकाल उठकर स्नान ध्यान कर अपने भाई की दीर्घायु, स्वस्थ एवं उसकी समृद्धिपूर्ण जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना करे. इसके पश्चात शुभ मुहूर्त पर उसकी पूजा करे. बहन का आशीर्वाद पाने के लिए भाई कितनी भी दूर क्यों न हो, इस अवसर पर वह बहन के हाथों से टीका करवाने के लिए जरूर आता है.

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भाई की ऐसे करें पूजा:

सर्वप्रथम बहनें भाई को एक खूबसूरत-सी चौकी पर बिठाती है, उसके सर पर नया रूमाल रखकर उसे रोली और अक्षत का टीका लगाती है. इसके पश्चात भाई के हाथों पर एक जटावाला नारियल और नारियल पर थोड़ा-सा फूल, एक चांदी का सिक्का रखती है. इसके पश्चात भाई की हाथों पर रखे हुए नारियल पर फूलों से जल का हल्का-सा छिड़काव करती है और ईश्वर से उसके दीर्घायु एवं सेहतमंद जीवन के लिए प्रार्थना करते हुए कहती है, गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना का नीर बढ़े, मेरे भाई की उम्र बढ़े. इसके पश्चात वह भाई की आरती उतारती है. मान्यता है कि ऐसा करने से भाई को निरोगी काया मिलती है और वह दीर्घायु प्राप्त करता है. इसके पश्चात भाई बहन की हर तरह से सुरक्षा करने का वचन देते हुए उसे उसकी पसंद को ध्यान में रखकर उपहार भेंट करता है.

भाईदूज का शुभ मुहूर्त:

तिथिः 29 अक्टूबर 2019

भाईदूज तिलक मुहूर्तः 01.11 मिनट से 03.23 मिनट तक

दिवतीय तिथि प्रारंभः रात्रि 09.07 मिनट तक (28 अक्टूबर 2019)

दिवतीय तिथि समाप्तः रात्रि 09.20 मिनट तक (29 अक्टूबर 2019)

पारंपरिक कथा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना का जन्म भगवान सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से हुआ. यमुना की बड़ी इच्छा थी कि उसका भाई यमराज उसके घर पर आकर भोजन करे और बहन को आशीर्वाद दे. किंतु व्यस्तता के कारण यमराज चाहकर भी बहन के घर नहीं जा पाते. एक दिन प्रातःकाल यमुना अपने घर के द्वार पर अपने भाई यमराज को देखती है तो खुशी से फूली नहीं समाती. वह भाई का खूब सेवा-सत्कार करती है. इसके बाद उन्हें अपने हाथों से बनाया स्वादिष्ट भोजन करवाती है. बहन के सेवा-सत्कार से यमराज प्रसन्न हो जाते हैं. वह बहन यमुना से कोई भी वर मांगने के लिए आग्रह करते हैं तो यमुना कहती है, यम भइया आप इसी तरह प्रतिवर्ष आज के दिन हमारे घर पर भोजन करने अवश्य आयें.

इस दिन जो भी बहन भाई को तिलक कर भोजन कराये, उसे कभी भी आप यानी मृत्यु का भय नहीं रहे. यम यमुना की बातों से प्रसन्न होकर ‘तथास्तु’ कहकर यमलोक को प्रस्थान कर गये. मान्यता है कि वह कार्तिक शुक्लपक्ष की पूर्णिमा का दिन था. इसीलिए प्रत्येक वर्ष इसी दिन भाई-बहनों का यह पवित्र पर्व मनाया जाता है. ऐसा करने से भाई को मृत्यु का भय नहीं रहता.