Chhoti Holi 2020: हिन्दू पंचांग के अनुसार होली (Holi) का पर्व चैत्र मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. यदि प्रतिपदा दो दिन पड़ रही है तो पहले दिन को ही धुलेंडी के तौर पर मनाया जाता है. होलिका दहन (Holika Dahan) 9 मार्च 2020 को मनाया जायेगा और अगले दिन यानी 10 मार्च को रंगों की बड़ी होली (Holi) यानी धुलेंडी (Dhulandi) मनायी जायेगी. होली के इस रंगारंग पर्व में क्या वृद्ध, बच्चे अथवा जवान सभी रंगों और पानी से सराबोर होकर होली की मस्ती में डूब से जाते हैं. इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाते हैं. बसंत ऋतु में प्रकृति में फैली रंगों की छटा को ही रंगों (Festival of Colors) से खेलकर वसंत उत्सव (Vasant Utsav) होली के रूप में दर्शाया जाता है. विशेषकर हरियाणा में इस पर्व को धुलेंडी भी कहा जाता है. यहां हम आपको होलिका दहन और होली के इतिहास के साथ-साथ इसके महत्व के संदर्भ में बता रहे हैं.
होलिका-दहन! एक रोचक कथा
होली की तरह ही होलिका-दहन के संदर्भ में भी तमाम किंवदंतियां मशहूर हैं. लेकिन सबसे बड़ी किंवदंती है श्रीहरि के अनुयायी और अनन्य भक्त प्रह्लाद की कथा. राजा हिरण्यकश्यप एक क्रूर और निर्दयी शासक था, उसे भगवान ब्रह्मा से कुछ ऐसे वरदान मिले थे, जिसकी शक्ति के कारण वह स्वयं को विश्व का सबसे शक्तिशाली योद्धा मानता था. उसने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी थी कि सभी जनता उसी की पूजा करे, जो ऐसा नहीं करेगा वह कठोर दण्ड का भागी होगा. लेकिन स्वयं राजा का बेटा प्रह्लाद श्रीहरि का भक्त होने के कारण उसने पिता की पूजा करने से साफ इंकार कर दिया.
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को तमाम कष्ट देकर मारने की कोशिश की, लेकिन श्रीहरि के इस भक्त का दुष्ट राजा कोई नुकसान नहीं कर सका. अतंतः राजा ने अपनी बहन होलिका से कहा कि तुम्हें अग्नि से नहीं जलने का वरदान प्राप्त है, तुम इसे लेकर अग्नि में बैठ जाओ और जब प्रह्लाद जल कर भस्म हो जायेगा, तब तुम सुरक्षित अग्निकुण्ड से बाहर आ जाना, लेकिन श्रीहरि का भक्त होने के कारण श्रीहरि ने उसे बचा लिया, जबकि होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गयी. इस तरह श्रीहरि ने बता दिया कि किस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत होती है.
रंगों का उत्सव यानी होलिकोत्सव
होलिका-दहन के बाद अगले दिन होली का रंगारंग उत्सव शुरू होता है. अधिकांश जगह होली दो दिन खेली जाती है. इस पर्व पर लोग एक दूसरे पर गीले रंग अथवा अबीर-गुलाल की वर्षा कर सामने वाले को रंगों से सराबोर करने का यत्न करते हैं. होली के दीवाने जगह-जगह संगीत की धुन पर थिरकते-झूमते और होली की ठिठोलियां करते हैं. लड़के एवं लड़कियां अपनी-अपनी टोलियों के साथ एक दूसरे पर रंग बरसाते हैं और मस्ती करते हैं. इसी दिन अधिकांश घरों में गुझिया और पूरनपोली के अलावा तमाम किस्म की मिठाइयां एवं नमकीन वस्तुएं बनाई जाती है. यही नहीं उत्तर भारत के घरों में भांग के पकौड़े अथवा भांग की ठंडाई परोसी जाती है. यह भी पढ़ें: Happy Holi 2020: कब है होली? यहां पढ़े रंगों के त्योहार का पूरा शेड्यूल
होली के रंग हजार
भारत के कुछ स्थानों जैसे मध्यप्रदेश के मालवा में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोर-शोर से खेली जाती है. वैसे होली की सबसे ज्यादा धूम कृष्ण की नगरी ब्रज में देखने को मिलती है, विशेष रूप से बरसाने की लट्ठमार होली तो दुनिया भर मे बहुत मशहूर है. मथुरा और वृन्दावन में 15 दिनों तक होली के रंगों की धूम रहती है. हरियाणा में भाभी देवर के बीच होली की ठिठोली की परंपरा देखी जा सकती है. महाराष्ट्र में रंगपंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है, जबकि दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है. छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में भगोरिया मनाया जाता है.
होली एकमात्र ऐसा पर्व है जब रंगों में सराबोर होने के बाद बच्चे, युवा, वृद्ध सभी हम उम्र बन कर होली के जश्न में डूब जाते है. फिर तो क्या गरीब और क्या अमीर सबकी जुबान से एक ही शब्द निकलता है बुरा ना मानों होली है.