Chaitra Navratri 2020: चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) के पांचवें दिन देवी के स्कंदमाता (Skandmata) स्वरूप की पूजा की जाती है. स्कंदमाता हिमायल पुत्री माता पार्वती (Maa Parvati) का ही स्वरूप हैं. भक्त इन्हें माता गौरी के नाम से भी संबोधित करते हैं. भगवान स्कंद, कुमार कार्तिकेय (Kartikeya) के नाम से जाने जाते हैं और ये देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे. इनकी मां देवी दुर्गा थीं और इसी वजह से मां दुर्गा (Maa Durga) के स्वरूप को स्कंदमाता भी कहा जाता है. मान्यता है कि जिस भी साधक पर स्कंदमाता की कृपा होती है उसके मन और मस्तिष्क में स्वतः अपूर्व ज्ञान की उत्पत्ति होती है.
स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप
मां दुर्गा के पंचम स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है. भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता कहते हैं. भगवान स्कंद शिशु रूप में माता की गोद में विराजमान हैं. स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं. दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद उनकी गोद में हैं. दाहिनी निचली भुजा में कमल है. मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और सदा कमल पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहते हैं. इनका वाहन भी सिंह है. स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है. इनकी उपासना अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है.
स्कंद माता का महात्म्य
कमल पर विराजमान स्कंद माता की सवारी सिंह है, जो क्रोध का प्रतीक है. उनकी गोद में पुत्र कार्तिकेय हैं, जिसे पुत्र-मोह का प्रतीक कहते हैं. देवी का ये रूप हमें दर्शाता है कि जब हम ईश्वर को पाने के लिए भक्ति के मार्ग पर चलते हैं तो क्रोध पर हमारा पूरा नियंत्रण होना चाहिए, जिस तरह ममता की देवी स्कंद माता सिंह पर नियंत्रण रखती हैं. इसके साथ ही पुत्र-मोह का प्रतीक है, देवी का यह स्वरूप हमें सिखाता है कि सांसारिक मोह-माया में रहते हुए भी भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है. बस इसके लिए मन में दृढ़ विश्वास होना जरूरी है. देवी स्कंदमाता की पूजा करने से संतान-सुख की प्राप्ति होती है, बुद्धि और चेतना बढ़ती है.
क्या है पूजा विधान
चैत्र मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को स्कंद माता की पूजा की जाती है. सर्वप्रथम स्नान-ध्यान कर माँ पंचम स्वरूपा माँ स्कंद माता का ध्यान करें. इसके पश्चात घर में पूजा स्थल के सामने चौकी बिछाकर उस पर लाल रंग का आसन बिछाएं और उस पर स्कंद माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद परंपरागत तरीके से गंगा जल अथवा गोमूत्र से उस स्थल की शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी अथवा तांबे या फिर मिट्टी निर्मित कलश में जल भरकर चौकी के पास रखें. कलश के ऊपर दीया रखकर दीये में अक्षत भर कर रखें. अब चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी) की स्थापना कर, श्रीगणेश जी की पूजा अर्चना करने के बाद स्कंद माता के व्रत एवं पूजन का संकल्प लेते हुए निम्न मंत्र का जाप करें. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2020: आज करें ब्रह्मांड निर्मात्री मां कूष्माण्डा की पूजा! मिलती है आरोग्य एवं प्रतिष्ठा! जानें क्या है पूजा विधान!
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
तत्पश्चात वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंद माता सहित समस्त देवताओं की षोडशोपचार विधि से पूजा करें. इसमें उपयुक्त देवी देवताओं का आह्वान करते हुए आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, प्रदक्षिणा, मंत्र एवं पुष्पांजलि आदि करते हुए निम्न मंत्रों का जाप करें.
देवी स्कंद माता का मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
पूजा सम्पन्न होने के पश्चात मां दुर्गा की आरती उतारकर भक्तों को प्रसाद वितरित करें.
संतान प्राप्ति के लिए करें इस मंत्र का जाप
पंचमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी स्कन्द माता हैं. स्कंद माता कार्तिकेय की माँ हैं, इसलिए संतान की चाहत रखने वाली माताओं के लिए इस व्रत का बहुत महात्म्य है. स्कंद माता की विधिवत पूजा करने के पश्चात निम्न मंत्र का जाप करते हुए माता से संतान पूर्ति की कामना करें. ये मंत्र इस तरह हैं
'ॐ स्कन्दमात्रै नम:'
ज्योतिषियों को विश्वास है कि इस तरह संतानहीन माता को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. स्कंद माता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की भी स्वमेव उपासना हो जाती है. स्कंद माता की उपासना से उपासक की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.