नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माण्डा की पूजा-अर्चना का विधान है. शास्त्रों में माता कुष्माण्डा को सिद्धिदात्री बताया गया है. देवी पुराण में उल्लेखित है कि माता कुष्माण्डा सूर्यदेव को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं और उसी के अंदर विराजमान हैं. जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तभी इस देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी, इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा, आदि शक्ति अथवा कूष्मांडा जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है.
माता कुष्मांडा का दिव्य स्वरूप
देवी पुराण के अऩुसार माता के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं. ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है. माता कुष्माण्डा के आठ हाथ हैं, इसीलिए ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा स्थित है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. माँ कूष्मांडा सिंह पर विराजमान हैं.
महात्म्य और सुफल
देवी पुराण के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, माँ कुष्मांडा ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी. अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं. इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है. वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है. इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं. आज के दिन मां कुष्माण्डा की पूजा-अर्चना करने से ग्रहों के राजा सूर्यदेव के दोषों से मुक्ति मिलती है. धन लाभ, आरोग्यता, शक्ति, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. कूष्मांडा के साधक को नेत्र, केश, मस्तिष्क, हृदय, मेरूदंड, सिर, उदर, रक्त, पित्त, अस्थि रोगों से मुक्ति मिलती है. माँ कुष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है. अतः लौकिक, पारलौकिक उन्नति की इच्छा रखने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए.
पूजा विधि
नवरात्र के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में होता है, इसलिए इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना करनी चाहिए. पुरोहितों का मानना है कि मां कूष्माण्डा को लाल रंग के फूल अत्यंत प्रिय है, इसीलिए लाल रंग के गुलाब अथवा गुड़हल के फूल मां को अवश्य अर्पित करनी चाहिए. माता कुष्माण्डा की विधिवत पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
मां कूष्मांडा की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है. प्रत्येक साधक के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है. माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर इसका जाप करना चाहिए.
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
अर्थात हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं. हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति दिलाएं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.