चेटी चांद भारत एवं पाकिस्तान में बसे सिन्धी हिंदू समुदाय द्वारा मनाया जानेवाला महत्वपूर्ण पर्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार चेटी चांद का पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितिया को मनाया जाता है. अमूमन यह पर्व उगादी तथा गुड़ी पड़वा के अगले दिन पड़ता है. चेटी चांद वह दिन है, जब अमावस्या के पश्चात प्रथम चंद्र दर्शन होता है. चेटी चांद में चंद्रमा के प्रथम दर्शन के कारण इसे चेटी चांद के नाम से जाना जाता है. गौरतलब है इस दिन सिंधी समुदाय के इष्टदेव एवं प्रमुख संरक्षक उडेरोलाल का जन्म हुआ था. बाद में वही झूले लाल कहलाए. उन्हें घोड़वारो, जिंदपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो एवं अमरला आदि नाम से भी जाना जाता है. झूले लाल जयंती के उपलक्ष्य में ही चेटी चांद पर्व मनाया जाता है. जो सिंधियों के प्रमुख संरक्षक एवं संत भी हैं. आइए जानते हैं चेटी चांद पर्व के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट इत्यादि.. यह भी पढ़ें : Eid Mehndi Design: रमजान ईद पर ये मंडला और ट्रेडिशनल मेहंदी डिजाइन लगाकर अपने हाथों को बनाएं खूबसूरत, देखें पैटर्न
चेटी चण्ड मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा प्रारंभः 04.27 PM (29 मार्च, 2025, शनिवार)
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा समाप्तः 12.49 PM (30 मार्च, 2025, रविवार)
उदया तिथि के अनुसार 30 मार्च 2025 को चेटी चण्ड का पर्व मनाया जाएगा
चेटी चण्ड मुहूर्तः 06.38 PM से 07.45 PM
कौन हैं संत झूलेलाल?
झूले लाल का जन्म 10वीं शताब्दी में सिंध प्रांत में हुआ था. यह वह समय था, जब सिन्ध प्रांत में सुमरा वंश का शासन था. सुमरा वंश के शासक अन्य सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे, यद्यपि मिरख शाह नामक क अत्याचारी शासक, सिन्धी हिंदुओ को जबरन इस्लाम धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. इंकार करने पर उन्हें जान से मारने की धमकी देता था. कहा जाता है कि इस जबरन धर्म परिवर्तन से स्वयं की रक्षा हेतु सिन्धु नदी के तट पर वरुण देव से प्रार्थना की. 40 दिन की पूजा के पश्चात सिन्धी समाज की प्रार्थना स्वीकार्य हुई. वरुण देव ने सिन्धियों को वचन दिया कि अत्याचारी मिरखशाह से उनकी रक्षा हेतु नसरपुर नामक स्थान पर एक शिशु का जन्म होगा. उसी चमत्कारी शिशु को संत झूलेलाल के नाम से जाना जाता है.
चेटी चांद से जुड़े महत्वपूर्ण फैक्ट
* संत झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है.
इसलिए उनकी पूजा के दरमियान लकड़ी का मंदिर बनाकर उसमें लोटे से जल प्रवाहित कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है. इस मंदिर को भक्त चेटीचंड को सिर पर उठाते हैं, जिसे बहिराणा साहब कहा जाता है.
* चेटीचांद को अवतारी युगपुरुष संत झूलेलाल की जयंती के रूप में जाना जाता है.
* झूलेलाल का जन्म सद्भावना और भाईचारा बढ़ाने के लिए हुआ था. पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के अन्य प्रांतों में आकर बस हिंदुओं में झूलेलाल को पूजने का प्रचलन ज्यादा है.
* संत झूलेलाल ने एक वीर सेना का संगठन किया था, जिसके शौर्य के चलते मिरखशाह को हार मानना पड़ा. मिरखशाह झूलेलाल की शरण में आने के कारण बच गया. संत झूलेलाल संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्तर्धान हो गए.













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