Chanakya Niti: मनुष्य के ये 3 दुश्मन उसे बर्बाद कर सकते हैं, जानें चाणक्य इनसे बचने के क्या तर्क दे रहे हैं!

  आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त) लिखित चाणक्य नीति जिसे कौटिल्य नीति भी कहा जाता है, का मुख्य विषय मानव मात्र को जीवन के प्रत्येक पहलुओं की व्यावहारिक शिक्षा देना है. 'चाणक्य नीति', प्राचीन भारतीय राजनीतिक और आर्थिक ग्रंथ है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हमारा मार्गदर्शन करता है.

संक्षेप मेंचाणक्य नीति जीवन के सभी पहलुओं को शामिल करती हैजिसमें राजनीतिअर्थशास्त्रनैतिकतासामाजिक संबंधऔर शिक्षा इत्यादि शामिल हैं, यह एक व्यापक मार्गदर्शक ग्रंथ है जो व्यक्तियों और राष्ट्रों दोनों के लिए उपयोगी है. सैकड़ों साल पूर्व लिखी इसकी नीतियां आज भी समसामयिक लगती हैं. यहां ऐसे ही एक श्लोक की बात करने जा रहे हैं, जहां चाणक्य ने बताया है कि एक आम इंसान के ये तीन दुश्मन उसे कैसे बर्बाद कर सकते हैं, साथ ही उसके निराकरण की भी बात की है. यह भी पढ़ें : Raksha Bandhan 2025: 95 साल बाद रक्षाबंधन पर बन रहा है महासंयोग, इस मुहूर्त में राखी बांधना होगा बेहद शुभ

नाऽस्ति कामसमो व्याधिर्नाऽस्ति मोहसमो रिपुः।

नाऽस्ति कोपसमो वह्निर्नाऽस्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥

  अर्थात काम (इच्छा वासना) के समान कोई रोग नहीं, मोह माया (अज्ञान, आसक्ति) के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई अग्नि नहीं है, और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं है.

इस श्लोक का सार यही है कि कामक्रोध और मोह ये तीनों ही मनुष्य के लिए सबसे हानिकारक तत्व हैंऔर ज्ञान के माध्यम से ही इन तीनों शत्रुओं पर विजय प्राप्त किया जा सकता है.

  आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के पांचवे अध्याय के एक श्लोक में मानव जीवन में काम, क्रोध और मोह जैसे विकारों का उल्लेख करते हुए बताने की कोशिश की है कि काम मनुष्य का सबसे प्रबल शत्रु है. यह एक ऐसा असाध्य रोग हैजिसके वशीभूत होकर मनुष्य अकसर अपनी बुद्धि और विवेक गंवा देता हैइसकी वजह से  उसका शरीर शीघ्रता से निर्बलता की ओर अग्रसर होता जाता है. मोह शत्रु के समान मनुष्य का नाश कर देता है. पुत्र-मोह से वशीभूत होकर ही महाभारत जैसा विनाशकारी युद्ध हुआ, जब योद्धाओं ने अपनों की हत्या की. इसी प्रकार क्रोध भयंकर अग्नि के समान हैजो अपनी लपटों से मनुष्य को बार-बार प्रताड़ित करता है रहता. इसके दुष्प्रभाव से मनुष्य का मन-मस्तिष्क क्षण-प्रतिक्षण जलता रहता है. आचार्य चाणक्य ने इन तीनों ही विकारों के नाश हेतु ज्ञान को सर्वोत्तम साधन या माध्यम बताया है. चाणक्य कहते हैं कि केवल ज्ञान ही वह तथ्य जिसके द्वारा मनुष्य उपयुक्त तीनों विकारों को शांत करके जीवन में सुख की प्राप्ति कर सकता है.