Chanakya Niti: जीवन थम सकता है, मगर समय सदा चलता रहता है! जानें आचार्य चाणक्य इस नीति के जरिये क्या कहना चाहते हैं!
Chanakya Niti (img: file photo)

आचार्य चाणक्य महान अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ विख्यात समाज शास्त्री भी थे, हालांकि वह अपनी कूटनीतियों के लिए भी दुनिया भर में मशहूर हैं. दरअसल आचार्य ने अपने पूरे जीवन में जो भी ज्ञान प्राप्त किया, उसे उन्होंने नीति शास्त्र के रूप में संस्कृत भाषा में संकलित एवं परिभाषित किया, जिसे चाणक्य नीति के नाम से जाना जाता है. इन्हीं नीतियों के तहत आचार्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताना चाहा है कि काल से बड़ा कोई नहीं.

कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।

कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ।॥7॥

अर्थात

समय सबसे बलवान है. काल सभी प्राणियों, सभी वस्तुओं को निगल जाता है. काल सबका विनाश कर देता है. सबके सो जाने पर भी काल जागृत रहता है, तथा काल को कोई भी अपने वश में नही कर सकता. यह भी पढ़ें : Aaj 11 October 2024 Panchang: आज का पंचांग! अष्टमी और नवमी पूजन, हवन तथा कन्या-पूजन का शुभ समय! साथ ही जानें शुभ-अशुभ मुहूर्त, सूर्योदय-चंद्रोदय एवं राहुकाल की स्थिति!

आचार्य ने चाणक्य नीति खंड 7 में यह बताने की कोशिश की है कि काल प्राणियों को निगल जाता है. काल सृष्टि का विनाश करता है. यह प्राणियों के सो जाने पर भी उनमें विद्यमान रहता है. इसका कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता. भाव यह है कि काल या समय ही सबसे बड़ा बलवान है. समय धीरे-धीरे सभी प्राणियों और संसार को भी निगलता रहता है. प्राणियों के सो जाने पर भी समय चलता रहता है.

प्रतिपल उनकी उम्र कम होती रहती है. इसे कोई टाल नहीं सकता, क्योंकि काल के प्रभाव से बचना व्यक्ति के लिए संभव नहीं है, चाहे योग-साधना किए जाएं या वैज्ञानिक उपायों का सहारा लिया जाए, तब भी काल के प्रभाव को हटाया नहीं जा सकता. समय का प्रभाव हर वस्तु पर पड़ता ही है. शरीर निर्बल हो जाता है, वस्तुएं जीर्ण और क्षरित हो जाती हैं. सभी देखते हैं कि व्यक्ति यौवन में जिस प्रकार साहसपूर्ण कार्य कर सकता था. वृद्धावस्था में ऐसा कुछ नहीं कर पाता. बुढ़ापे के चिह्न व्यक्ति के शरीर पर काल के पग-चिह्न ही तो हैं. बीते हुए काल को वापस नहीं लाया जा सकता, अर्थात बीता हुआ समय कभी नहीं लौटता. यह सर्वदा सत्य है कि काल की गति को रोकना देवताओं के लिए भी संभव नहीं. अनेक कवियों ने भी काल की महिमा का वर्णन किया है. फिलॉसफर भतृहरि ने भी कहा है कि काल समाप्त नहीं होता, वरन् मनुष्य का शरीर ही काल का ग्रास बन जाता है. यही प्रकृति का नियम है. अतः समय के महत्त्व को जानकर आचरण करना चाहिए.