Chanakya Niti 2025: लक्ष्मी ब्राह्मणों के घर क्यों नहीं वास करतीं? जानें आचार्य चाणक्य क्या कहते हैं!
Chanakya Niti (img: file photo)

आचार्य चाणक्य उर्फ कौटिल्य अपने समय के एक महान शिक्षाविद्, कुशल राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे. उन्होंने तमाम विषयों पर रचनाएं लिखीं. उनकी रचनाओं में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे नीति शास्त्र या चाणक्य नीतिशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है. इस नीति शास्त्र में आचार्य ने जीवन के विभिन्न पहलुओं मसलन राजनीति, समाज, व्यक्तिगत आचार-विचार और नैतिकता पर अपने विचार उद्घृत किये हैं. चाणक्य नीति का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस काल में था, जब यह लिखा गया. आइये जानें इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने क्या कहना चाहा है. यह भी पढ़ें : Vinayak Chaturthi 2025: मार्च माह में कब है विनायक चतुर्थी व्रत? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, मंत्र, पूजा-विधि एवं पौराणिक व्रत-कथा इत्यादि!

पीतः क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभो येन रोषाद् आबाल्याद् विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते वैरिणी मे।

गेहूं मे छेदयन्ति प्रतिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं तस्मात् खिन्ना सदाहं द्विजकुलनिलयं नाथ युक्तं त्यजामि।।

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के बीच एक विशेष संवाद को बताने की कोशिश की है. चाणक्य के अनुसार एक बार एक बार भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से प्रश्न किया था कि आप ब्राह्मणों से असंतुष्ट क्यों रहती हैं? प्रत्योत्तर में देवी लक्ष्मी ने कहा था, हे स्वामी, महर्षि अगस्त्य ने क्रोध में भरकर मेरे पिता अर्थात सागर को पी लिया था. जबकि महर्षि भृगु ने आपके वक्ष स्थल (सीने) पर लात से प्रहार किया था. ब्राह्मणजन मेरी तुलना में देवी सरस्वती की पूजा करते हैं, इसलिए देवी सरस्वती से मेरा जन्मजात वैर है. ब्राह्मणजन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए मेरे निवास स्थानों से कमल पुष्प तोड़कर मेरा घर उजाड़ते रहते हैं. यही कारण है कि मैं ब्राह्मणों से असंतुष्ट रहती हूं, और उनके घरों में वास नहीं करती हूं.

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य सफाई देते हैं, कि ब्राह्मण कभी भी लक्ष्मी यानी धन को महत्व नहीं देते. उनके लिए ईश्वर भक्ति से बढ़कर कुछ भी नहीं है.