Vinayak Chaturthi 2025: मार्च माह में कब है विनायक चतुर्थी व्रत? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, मंत्र, पूजा-विधि एवं पौराणिक व्रत-कथा इत्यादि!

हिंदू धर्म में फाल्गुन माह का विशेष महत्व वर्णित है. शिव पुराण में फाल्गुन मास भगवान शिव का सर्वाधिक प्रिय माह बताया गया है, क्योंकि इसी माह भगवान शिव और देवी पार्वती का आध्यात्मिक मिलन हुआ था. इसके अलावा और भी कई महत्वपूर्ण इस माह पड़ते हैं. फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करने वाले जातकों पर भगवान गणेश की विशेष कृपा बरसती है. आइये जानें इस माह विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा की मूल तिथि, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में विस्तार से...

फाल्गुन मास विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त की तिथि एवं शुभ योगों का संयोग

फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 09.01 PM (02 मार्च 2025, रविवार)

फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी समाप्तः 10.11 PM (03 मार्च 2025, सोमवार)

उदया तिथि के अनुसार 03 मार्च 29025 को विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा.

शुक्ल योग: 08.57 AM

ब्रह्म योगः पूरे दिन

इस दिन भद्रावास तथा अश्विनी नक्षत्र का योग भी बन रहा है. ज्योतिषियों के अनुसार इस योग में गणेश जी की पुजा करने से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होने की संभावना होती है.

विनायक चतुर्थी पूजा विधि

फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान कर सूर्यदेव को जल अर्पित करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें और प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर में स्थापित गणेश जी को गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान कराएं. प्रतिमा के समक्ष धूप दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश जी के ललाट पर रोली का तिलक लगाएं. यह भी पढ़ें : National Science Day 2025 Quotes: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की इन हिंदी WhatsApp Wishes, Facebook Messages, GIF Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा॥

भगवान गणेश जी को दूर्वा की गांठ, पान, सुपारी, जनेऊ, अक्षत अर्पित करें. भोग में मोदक एवं फल चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें, और अंत में गणेशजी की आरती उतारें.

विनायक चतुर्थी पौराणिक व्रत कथा

एक दिन शिवजी देवी पार्वती के साथ नदी तट भ्रमण कर रहे थे. अचानक देवी पार्वती के मन में चौपड़ खेलने की इच्छा जागृत हुई. लेकिन शिव एवं पार्वती के बीच कोई तीसरा व्यक्ति उपस्थित नहीं था, जो हार-जीत का निर्णय ले सके. तब पार्वतीजी ने गीली मिट्टी से एक बालक की रचना कर उसे मंत्रोच्चारण से जीवित किया. बालक को निर्णायक बनाकर चौपड़ का खेल प्रारंभ हुआ. खेल में पार्वती ने तीन बार शिवजी को परास्त किया, लेकिन बालक ने शिवजी को विजेता घोषित कर दिया. यह देख पार्वती ने क्रोधित होकर उसे पंगु बना दिया. बालक को अपनी भूल का अहसास हुआ, उसने देवी पार्वती से छमा याचना की, पार्वती ने कहा उनका श्राप वापस नहीं हो सकता. अलबत्ता गणेश चतुर्थी पर पूजा हेतु आई कन्याओं से व्रत-पूजा विधि पूछ कर करने से श्राप खत्म हो सकेगा. बालक ने यही किया, और इस तरह बालक श्राप मुक्त हुआ.