महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गोवा एवं छत्तीसगढ़ के कुछ महत्वपूर्ण पर्वों में एक है बैल पोला, जिसे पोला, मोथा पोला, तन्हा पोला, पिठौरी अमावस्या या कुशाग्रहणी के नाम से भी जाना जाता है. इस अवसर पर कृषि कार्य से जुड़े बैलों एवं अन्य पालतू पशुओं के प्रति कृतज्ञता एवं सम्मान किया जाता है. इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं, सजाते हैं, बैलों के सींगों पर रंग लगाते हैं और उन पर गुब्बारे बांधते हैं. सपरिवार द्वारा उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. उन्हें पूरे नगर में घुमाया जाता है और हर घरों में उन्हें विशेष भोजन कराया जाता है. संध्याकाल के समय गीत-संगीत का रंगारंग कार्यक्रम पेश किया जाता है. लोग खुशियां मनाते हैं.
कब मनाया जाएगा बैल पोला (When is Bail Pola)
हमेशा की तरह इस वर्ष भी भाद्रपद (भादों) माह की अमावस्या को बैल पोला का पर्व 2025 मनाया जाएगा. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह पर्व 23 अगस्त 2025, शनिवार को पड़ रहा है. यह भी पढ़ें : Pithori Amavasya 2025: 22 अगस्त को मनाई जायेगा पिठोरी अमावस्या का पर्व, जानें पितृ पूजा का खास मुहूर्त
बैल पोला का महत्व (Why is Bail Pola celebrated?)
बैल पोला का यह पर्व कृतज्ञता और समानता का प्रतीक है, जो हल चलाने, परिवहन और ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने में बैलों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करता है. इसके साथ ही यह पर्व सांस्कृतिक श्रद्धा और आध्यात्मिक आदर्शों, दोनों में निहित—बैलों को धर्म, भगवान शिव के वाहन (नंदी) और ब्रह्मांडीय शक्ति से भी जोड़कर देखा जा सकता है. यह पर्व सामुदायिक बंधनों को मजबूत करने और पशु कल्याण के प्रति सम्मान बढ़ाने में इसका पारिस्थितिक-सांस्कृतिक महत्व है.
बैल पोला सेलिब्रेशन
बैल पोला पर्व से एक दिन पूर्व बैलों के पूरे शरीर पर हल्दी, उबटन और सरसों के तेल से मालिश करते हैं. बैल पोला पर्व के दिन मवेशियों को खेती के निराई-गुड़ाई एवं जुताई के काम से मुक्त रखा जाता है. इस दिन किसान मवेशियों को देव तुल्य माना जाता है. सुबह-सवेरे उन्हें स्नान कराया जाता है, उन्हें सजाते हैं, उनके गले में घंटियों की माला, कपड़े और छल्ले पहनाते हैं. मस्तक पर कुमकुम लगाते हैं, और उनकी आरती उतारी जाती है. इस दिन ग्रामीण इलाकों में बैल सजावट प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है. मान्यताओं के अनुसार इस पर्व पर महिलाएं अपने मायके आती हैं. उनकी उपस्थिति में घरों में मिट्टी के बैलों की प्रतिमा की पूजा की जाती है. इस दिन हर घरों में पूरन पोली, खीरापाट, बाजरा भाकरी, पिठला, शींगदाना लड्डू, खिचड़ी, खीर और मोदक जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाते और एक-दूसरे को खिलाते हैं, तथा एक दूसरे को बधाई देते हैं.
बैल पोला की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जब कंस की जेल में कृष्ण रूप में अवतार लिया, और कंस को जब यह बात पता चली तो उसने भगवान कृष्ण को मारने के लिए कई शक्तिशाली राक्षस भेजे. लेकिन उन्हें जब कोई सफलता नहीं मिली, तब कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए पोलासुर नामक राक्षस को भेजा. पोलासुर बैल का रूप धारण करके पशुओं के समूह में जा मिला. भगवान श्रीकृष्ण ने पशुओं के समूह में भी उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. इसी वजह से इस पर्व का नाम पोला पड़ा. तभी से हिंदू समुदाय में बैल पोला का पर्व मनाया जा रहा है.













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