Bach Baras 2022: बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार हर साल भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को बछ बारस (Bach Baras 2022) या गोवत्स द्वादशी (Govats Dwadashi) पर्व मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 23 अगस्त मंगलवार को पड़ रहा है. वैसे यह दिन विशेष रूप से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वादशी को और कार्तिक कृष्ण पक्ष को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है. इस त्योहार के अन्य नाम बच्चे दुआ (Bachha Dua) और वासु द्वादशी (Vasu Dwadashi) हैं. ज्ञात हो कि भारत के अधिकांश भागों में भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है. यह भी पढ़ें: Lalbaugcha Raja 2022 Darshan: जानें कैसे पहुंचे मुंबई के प्रसिद्ध लालबागचा राजा पंडाल, ये रहा पूरा रूट
कई पुराणों में गाय के शरीर के अंगों में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत विवरण मिलता है. पद्म पुराण में गाय माता का वर्णन पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का वास है. उनके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदैव विराजमान रहते हैं. गाय के पेट में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा, माथे में रुद्र, सींगों के सामने इंद्र, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, आंखों में सूर्य और चंद्रमा, दांतों में गरुड़, जीभ में सरस्वती, अपान (गुदा), मूत्र में सभी तीर्थ- स्थान में गंगा जी, रोम में ऋषि गण, पीठ में यमराज, दक्षिण दिशा में वरुण और कुबेर, बाईं ओर महाबली यक्ष, मुख में गंधर्व हैं. नाक के आगे सांप, खुरों के पीछे अप्सराएं विराजमान रहती है.
अन्य पुराणों में वर्णन में लिखा है कि बछ बारस, गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण मास की कृष्ण द्वादशी को किया जाता है. भाद्रपद मास की गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की पूजा की जाती है. यह पर्व संतान की कामना और सुरक्षा के लिए किया जाता है. इसमें गाय-बछड़े और बाघ-बाघी की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है. शाम को व्रत के दिन गाय को बछड़े के साथ पूजन कर कथा सुनाई जाती है, फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
व्रत कथा:
बछ बारस की प्रचलित कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है कि एक गाँव में एक साहूकार अपने सात पुत्रों और पौत्रों के साथ रहता था. उस साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन, कई सालों तक वह तालाब नहीं भरा. उसने पंडित को बुलाकर तालाब न भरने का कारण पूछा. पंडित ने कहा कि इसमें पानी तभी भरा जाएगा जब आप या तो अपने सबसे बड़े बेटे या अपने सबसे बड़े पोते की बलि देंगे. तब साहूकार ने अपनी बड़ी बहू को पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी. इसी बीच गरज के साथ बादल छा गए और तालाब पूरी तरह भर गया.
इसके बाद बारिश हुई और सभी ने कहा कि हमारा तालाब भर गया है, इसकी पूजा करें. साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया था. उसने नौकरानी से कहा कि गेहुनला पकाओ. साहूकार के अनुसार गेहुनला का मतलब गेहूं का धान था. नौकरानी समझ नहीं पाई. दरअसल गेहुनला एक गाय के बछड़े का नाम भी था. बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब की पूजा करने आई थी. तालाब की पूजा करने के बाद सबसे बड़े बेटे के बारे में पूछा. तब उसका बड़ा पुत्र मिट्टी में लिपटा हुआ तालाब से निकला और बोला, माता, मुझे भी प्रेम करो. तभी सास-बहू एक-दूसरे को देखने लगीं. सास ने बहू को बलि के बारे में सब कुछ बता दिया. तब सास ने कहा, लेकिन बरस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारे बच्चे को वापस कर दिया.
जब वह तालाब की पूजा कर घर लौटी तो देखा कि बछड़ा नहीं है. साहूकार ने दासी से पूछा, बछड़ा कहाँ है? तो नौकरानी ने कहा कि तुमने इसे पकाने के लिए कहा था. साहूकार ने कहा, एक पाप अभी उतरा है, दूसरा पाप चढ़ गया है. साहूकार ने पके बछड़े को मिट्टी में दबा दिया. शाम को जब गाय वापस लौटी तो उसने अपने बछड़े की तलाश शुरू की और फिर मिट्टी खोदने लगी. तब बछड़ा मिट्टी से बाहर आया. जब साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया.
उसने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पीने में व्यस्त है. तब साहूकार ने पूरे गाँव में यह बात फैला दी कि हर बेटे की माँ बछ बारस का व्रत रखे. हे बछबरों की माता, हमें वही दे जो साहूकार की बहू को दिया गया था. यहाँ कथा सुनकर सबकी मनोकामना पूर्ण होती है. कुछ स्थानों पर कथा में यह भी उल्लेख मिलता है कि घेटाला और मूंगला दो बछड़े थे, जिन्हें दासी द्वारा काटा और पकाया गया था, इसलिए इस दिन गेहूं, मूंग और चाकू तीनों का उपयोग वर्जित है.