
भारत और बांग्लादेश के बीच जल विवादों को निपटाने के लिए दोनों देशों की संयुक्त नदी आयोग की टीम भारत पहुंची. लेकिन तीस्ता नदी के जल विभाजन का पेंच अब भी फंसा है.पश्चिम बंगाल के दौरे पर आई संयुक्त नदी आयोग की एक तकनीकी टीम और केंद्र व राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के बीच दो दिवसीय बैठक में गंगा नदी के पानी के बंटवारे के समझौते के मुद्दे पर तो बातचीत हुई. लेकिन दोनों देशों के बीच लंबे अरसे से विवाद की वजह बनी तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई.
भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 1996 में फरक्का में गंगा नदी के पानी के बंटवारे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसकी मियाद अगले साल पूरी होनी है. अब उस समझौते के नवीनीकरण से पहले आयोग की टीम ने अपने पश्चिम बंगाल दौरे में फरक्का का दौरा किया और वहां नदी के बहाव का अध्ययन किया. उसके बाद कोलकाता में उन्होंने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की.
दिल्ली में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पत्रकारों को बताया, "यह भारत-बांग्लादेश संयुक्त समिति की 86वीं बैठक थी. इसका गठन गंगा के पानी पर हुए समझौते को लागू करना और उस पर निगाह रखना है. ऐसी बैठकें साल में तीन बार होती हैं. उनका कहना था कि बैठक के दौरान समझौते के अलावा पानी के बहाव और द्विपक्षीय हितों से जुड़े दूसरे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई."
भारत और बांग्लादेश का संयुक्त नदी आयोग
इससे पहले बांग्लादेश की टीम ने दो दिनों तक फरक्का का दौरा कर गंगा में पानी के बहाव और दूसरे संबंधित विषयों का जायजा लिया. दोनों देशों ने वर्ष 1972 में संयुक्त नदी आयोग का गठन किया था. इस आयोग में भारत और बांग्लादेश के अलावा पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि भी शामिल हैं. फिलहाल 54 ऐसी नदियां हैं जो दोनों देशों में बहती हैं. गंगा के पानी के बंटवारे पर 12 दिसंबर, 1996 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी.य देवगौड़ा और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हस्ताक्षर किए थे. इसकी मियाद तीस साल की थी. उस समय बंगाल में ज्योति बसु के नेतृत्व वाली वाममोर्चा सरकार सत्ता में थी.
बैठक में शामिल राज्य सरकार के एक प्रतिनिधि ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "बांग्लादेश के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मोहम्मद अबुल हुसैन कर रहे थे जो संयुक्त नदी आयोग के सदस्य हैं. इसमें दूसरी बातों के अलावा गंगा के पानी पर हुए समझौते के नवीनीकरण के लिए आगामी तीन महीनों के दौरान एक संयुक्त तकनीकी समिति के गठन का फैसला किया गया. इसके अलावा बाढ़ के खतरे की पूर्व सूचना और पानी के बहाव जैसी सूचनाओं के आदान-प्रदान पर भी सहमति बनी."
संयुक्त नदी आयोग के सामने कौन कौन से मुद्दे
मौजूदा समझौते के तहत फरक्का में गंगा नदी में 75 हजार क्यूसेक पानी उपलब्ध होने की स्थिति भारत 40 हजार क्यूसेक पानी ले सकता है. लेकिन यह मात्रा 70 हजार क्यूसेक से कम होने पर दोनों देशों को बराबर पानी मिलेगा. पानी की उपलब्धता 70 से 75 हजार क्यूसेक के बीच होने की स्थिति में बांग्लादेश को न्यूनतम 35 हजार क्यूसेक पानी मिलेगा.
बैठक में शामिल एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "बैठक में गंगा के अलावा तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर भी चर्चा होनी थी. लेकिन तीस्ता पर कोई बात नहीं हुई. बैठक में पानी के अलावा प्रदूषण के मुद्दे पर भी बातचीत हुई. उनका कहना था कि बांग्लादेश के कुछ तटवर्ती इलाकों में चीनी की मिलें होने की वजह से पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में प्रदूषण फैल रहा है. बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर ध्यान देने का भरोसा दिया है."
ममता बनर्जी तीस्ता के पानी के बंटवारे पर प्रस्तावित समझौते का लगातार विरोध करती रही हैं. उनकी दलील है कि उन्हें बांग्लादेश को पानी देने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन नदी में पर्याप्त पानी रहने की स्थिति में ही ऐसा संभव है. उत्तर बंगाल के किसानों के हितों की कीमत पर कोई समझौता नहीं हो सकता. लेकिन बांग्लादेश इस पानी में बराबर का हिस्सा मांग रहा है. दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख पर अडिग होने की वजह से केंद्र की तमाम कोशिशों के बावजूद इस समस्या के समाधान की कोई राह नहीं निकल सकी है. यह विवाद देश के विभाजन जितना ही पुराना है.
लंबे समय है जारी है जल विवाद
बंटवारे के समय सर रेडक्लिफ आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत में शामिल कर दिया था. वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे का मामला के मुद्दे ने दोबारा सिर उठाया था. और वर्ष 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद इस मामले ने और तूल पकड़ लिया. उसके बाद से ही इस पर खींचतान का सिलसिला जारी है.
ममता ने इससे पहले केंद्र पर पश्चिम बंगाल सरकार को अंधेरे में रखते हुए एकतरफा तरीके से गंगा के पानी पर हुए समझौते के नवीनीकरण का प्रयास करने का आरोप लगाया था. लेकिन बाद में केंद्र ने जुलाई, 2023 में एक आंतरिक समिति बनाने का एलान किया था. उसमें बंगाल के अलावा बिहार के प्रतिनिधि भी शामिल थे. ममता बनर्जी सरकार ने उसी साल अगस्त में समिति के लिए अपने प्रतिनिधियों के नाम भेजे थे.