महिला बाल एवं विकास मंत्रालय ने साल 2008 में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. गौरतलब है कि इसी दिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर उनका समुचित विकास करना था. महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ते अपराधों की संख्या को देखते हुए जरूरी है कि वे अपनी रक्षा को लेकर बने भारतीय कानूनों की जानकारी रखें. आइये जाने महिला सुरक्षा एवं अधिकार से संबद्ध 10 महत्वपूर्ण विधि द्वारा सम्मत कानून क्या हैं?
1. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005)
इस नागरिक कानून के तहत जो महिलाओं को उनके हिंसक पति या अन्य पुरुषों से सुरक्षा प्रदान करता है. यह कानून विवाहित महिलाओं के साथ-साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है. इस कानून के जरिए अलग रह रही महिला भी अपने अब्यूज़र से मेनटेनैन्स की मांग कर सकती है.
2. कार्यस्थल पर यौन-उत्पीड़न के खिलाफ अधिनियम, 2013 (Act against Sexual Harassment of Workplace, 2013)
अदालत सेक्सुअल हैरेसमेंट को मानवाधिकार का उल्लंघन मानता है. अधिकांश मामलों में महिलाएं अपने साथ हुए गलत व्यवहार को जिम्मेदार अथॉरिटीज़ से रिपोर्ट नहीं करतीं, क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी खोने, अपमानित होने, और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को खोने का डर सताता है. यह एक्ट महिलाओं को लिंग समानता, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार व काम करने की स्थिति में समानता देता है साथ ही वर्कप्लेस पर सुरक्षा भावना के कारण उनकी भागीदारी बेहतर बनाती है, जिससे उनका आर्थिक विकास और सशक्तीकरण होगा.
3. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम,1990 (National Commission for Women Act,1990)
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए 31 जनवरी 1992 को एक लीगल बॉडी के रूप में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया है. आयोग का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के कल्याण पर ध्यान देना, संविधान और कानूनों की मदद से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना, महिलाओं की समस्याओं से निपटना और इसके लिए समाधान प्रदान करना तथा समय-समय पर भारतीय महिलाओं की स्थिति का मूल्यांकन करना. महिला के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित फंडिंग और लड़ाई के मामले को देखना है.
4. बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (The Prohibition of Child Marriage Act, 2006)
हमारे देश में लड़कियों की काफी कम उम्र में शादी के लिए मजबूर किया जाता है. भारतीय संस्कृति और परंपरा में बाल-विवाह प्रथा गहराई तक व्याप्त है. यह एक्ट बाल-विवाह को रोकने में मदद करता है. अगर दूल्हा 21 से कम उम्र का है और दुल्हन 18 वर्ष से कम है तो यह शादी बाल-विवाह अधिनियम के तहत आएगी. कम उम्र की लड़कियों की शादी के लिए विवश करने वाले माता-पिता इस कानून के तहत सजा के अधीन हैं.
5. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act,1971)
1972 में, मेडिकल टर्मिनेशन एक्ट लागू हुआ और 1975 और 2002 में इसका संशोधन किया गया. इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य गैरकानूनी और जबरन तरीके से गर्भपात और इसके परिणामस्वरूप होने वाली गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर को कम करके महिलाओं की सुरक्षा करना है.
6. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961)
हमारे देश में दहेज परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस अधिनियम के अनुसार, विवाह के समय दहेज लेना या देना अवैध बताया गया है. यहां `दहेज' का आशय किसी भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तुओं से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शादी के समय वधुपक्ष द्वारा वर-पक्ष को दिया जाता है. यह भी पढ़ें : Subhash Chandra Bose Jayanti 2022 Wishes: नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर ये विशेज HD Images और GIF Greetings के जरिये भेजकर दें पराक्रम दिवस की बधाई
7. मातृत्व लाभ अधिनियम, 1861. (Maternity Benefit Act,1861)
यह अधिनियम कामकाजी महिलाओं को कानून के तहत उल्लेखित मातृत्व लाभ देता है. प्रत्येक कामकाजी महिला जो न्यूनतम 3 महीने की अवधि के लिए किसी संगठन से जुड़ी हुई हैं, उन्हें पेड़ मैटरनिटी लीव्स और अन्य लाभ पाने का पूरा अधिकार है.
8. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 (Equal Remuneration Act,1976)
यह विशेष अधिनियम पुरुष और महिला वर्कर्स के लिए बिना कोई भेदभाव किए बिना समान पारिश्रमिक देने की सुविधा देता है. लिंग भेदभाव ना करके हर कर्मचारी को समान भुगतान का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है.
9. महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1986 (Indecent Representation of Women Act,1986)
महिलाओं द्वारा उनके ऑब्जैक्टिफिकेशन (objectification) को लेकर आवाज उठाने और जागरूक होने के कारण दूसरों को स्टैंड लेने के लिए प्रोत्साहित होने में मदद मिलती है. यह एक्ट टीवी, प्रकाशनों, लेखन, पेंटिंग, आंकड़े या प्रचार के किसी अन्य तरीके से महिलाओं की गलत छवि दिखाने को रोकने में मदद करता है.
10. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act,1956)
अमूमन पुरुष अपने माता-पिता या पैतृक संपत्ति के वास्तविक हकदार माने जाते हैं. संपत्ति को लेकर महिलाओं के पास सीमित अवसर होते हैं. 2005 में आए इस अधिनियम ने हमारे देश की महिलाओं को यह हक दिया है कि अगर कोई वसीयत नहीं बनाई गई है तो अपनी पैतृक संपत्ति पर महिलाएं समान अधिकार रखती हैं.