2008 Mumbai Attacks: मुंबई पर आतंकी हमले की 13वीं बरसी! क्यों और कैसे बंधक बनी मुंबई?
26/11 हमले (Photo: PTI)

मुंबई देश की 'शान' ही नहीं, बल्कि आर्थिक आधार भी है, जिस पर देश के मूलभूत विकास का दायित्व होता है. इसलिए यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि देश को बाहरी आक्रामकों से सुरक्षित रखने के लिए व्यवस्था को चाक-चौबंद करते समय हमें देश सुरक्षा के साथ-साथ मुंबई को विशेष सुरक्षा दिलाना जरूरी है, विशेषकर तब, जब हमारे अधिकांश पड़ोसी देश दुश्मन हों, और हमारे सुरक्षातंत्र पर आघात करने को तत्पर रहते हों. लेकिन 26 दिसंबर 2008 में जिस तरह से मुंबई को तीन दिन तक आतंकियों ने अपनी मुट्ठी में कैद रखा, हमारे सुरक्षा एजेंसियों की खोखली व्यवस्था की पोल खोल कर रख देती है. यहाँ हम इसी व्यवस्था की बात करेंगे, कि आखिर किन कारणों से मुंबईवासियों को तीन दिन तक आतंकियों के साये में रहना पड़ा?

आज से 13 वर्ष पूर्व 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद हमारी तटीय सुरक्षा (Costal Security) में एक बड़ी खामी उजागर हुई, जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा. इस घटना क्रम में हजारों की संख्या में लोग काल कवलित हुए. इस भयावह घटना के बाद सुरक्षा एजेंसियों की कुंभकरणी नींद टूटी. कोस्टल सिक्यॉरिटी को मजबूत बनाने के लिए इंटेलिजेंस और सुरक्षा एजेंसियों के बीच एक बेहतर और औपचारिक तालमेल सुनिश्चित किया गया. यद्यपि सुरक्षा को और बेहतर बनानेवाले कुछ प्रॉजेक्ट्स में देरी भी हो रही है, जो सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक है.

क्या पर्याप्त है आज की सुरक्षा व्यवस्था?

वर्तमान में हमारे समुद्र तटों पर सुरक्षा की थ्री लेबल की सिक्युरिटी व्यवस्था सुनी है. यह व्यवस्था नेवी, कोस्ट गार्ड और मरीन पुलिस की तालमेल मिलकर बनाई जाती है. मरीन पुलिस तटों से 12 नॉटिकल मील तक की सीमा को गार्ड करती है. गौरतलब है कि कोस्ट गार्ड 12 से 200 नॉटिकल मील और नेवी 200 नॉटिकल मील के बाद की सुरक्षा व्यवस्था संभालते हैं. यह भी पढ़ें : karnataka Legislative Council Election: कांग्रेस प्रत्याशी ने हलफनामे में 1,744 करोड़ रुपये की संपत्ति की घोषणा की

वह खौफनाक साजिश!

26 नवंबर 2008 की शाम हमेशा की तरह मुंबई अपनी रंगीनियों में नहाई हुई थी. मुंबई की लाइफ लाइन मानी जाने वाली लोकल ट्रेने, बेस्ट की बसें, टैक्सी, ऑटो इत्यादि इन रंगीनियों में चार चाँद लगा रही थीं. अचानक शहर का दक्षिणी इलाका गोलियां की तड़तडाहट से गूँज उठा, देखते ही देखते मुंबई थम-सी गई. आतंकवादियों ने मुंबई को आतंक की चादर में लपेटना शुरू कर दिया था. घटनाक्रम की शुरुआत लियोपोल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) से हुई. किसी को अहसास तक नहीं था कि यह हमला इतना भयावह हो सकता है. लेकिन धीरे-धीरे मुंबई के और इलाकों से धमाकों और गोलीबारी की खबरें फैलने लगीं. मध्यरात्रि होते-होते मुंबई की फिजाओं में आतंक का जहर घुलता रहा. हजारों मासूमो को अपनी जान गवानी पड़ी. इस घटना क्रम ने इस बात को साबित कर दिया कि देश की सुरक्षा प्रणाली में कहीं कोई बड़ी चूक हो गई थी, जिसके कारण आतंकियों को अपना काम अंजाम देना आसान हो गया था.